लखनऊ, 7 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक नन्ही सी लड़की, पंखुड़ी त्रिपाठी, की पढ़ाई को लेकर सियासी घमासान मच गया है। आर्थिक तंगी से जूझ रही पंखुड़ी ने अपनी फीस माफी के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुहार लगाई थी। लेकिन, कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। सीएम के आश्वासन के बावजूद जब फीस माफ नहीं हुई, तो समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव ने मौके का फायदा उठाते हुए योगी सरकार पर तंज कसा और पंखुड़ी की पढ़ाई के लिए मदद का हाथ बढ़ाया। मगर, इस कहानी में ट्विस्ट तब आया जब पंखुड़ी ने अखिलेश की मदद ठुकरा दी और कहा, “हमारे सीएम साहब बहुत अच्छे हैं। हमें उन पर पूरा भरोसा है। जो अच्छा होगा, उसी से मदद लेंगे।”
पंखुड़ी का यह बयान आग में घी का काम कर गया। अखिलेश यादव ने इसे सत्ता का दबाव करार देते हुए योगी सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “पंखुड़ी के बयान के पीछे सत्ता का डर साफ झलकता है। जब हमने मदद का प्रस्ताव रखा, तभी सरकार को फीस जमा कराने की याद क्यों आई? यह बीजेपी का दिखावा नहीं तो और क्या है?” अखिलेश यहीं नहीं रुके। उन्होंने बीजेपी पर बच्चों के जरिए सियासत करने का आरोप लगाया और कहा, “पहले बच्ची और उसके गरीब परिवार को फीस माफी के लिए दर-दर भटकाया गया, फिर सत्ता के दबाव में मनमाफिक बयान दिलवाए गए। यह निंदनीय है।”
अखिलेश ने यह भी सवाल उठाया कि अगर सरकार वाकई उदार है, तो वह पूरे प्रदेश के निजी स्कूलों में बच्चों के शोषण को क्यों नहीं रोकती? उन्होंने उस घटना का भी जिक्र किया जब एक बच्ची की झोपड़ी पर बुलडोजर चलाया गया था। दूसरी ओर, सीएम योगी के आदेश के बाद पंखुड़ी का स्कूल में दाखिला हो गया है, और चार महीने बाद वह फिर से स्कूल जा सकी है। इसके लिए उसके परिवार ने सीएम का आभार जताया।
यह पूरी घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि क्या बच्चों की मासूम दुनिया को सियासत का अखाड़ा बनाना जायज है? पंखुड़ी की कहानी सिर्फ एक बच्ची की पढ़ाई की जद्दोजहद नहीं, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच की उस रस्साकशी का प्रतीक है, जहां मासूम बच्चे अनजाने में मोहरे बन जाते हैं। अखिलेश की अपील साफ है- “बच्चों के मुंह से सियासत न कराएं।” लेकिन, क्या यह अपील सियासी शोर में सुनी जाएगी, या फिर यह भी एक और पोस्ट बनकर रह जाएगी? पंखुड़ी के उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ यह सवाल हर किसी के मन में गूंज रहा है।