वाराणसी, 7 जुलाई 2025: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार वजह है बौद्ध धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा को 69 साल बाद डॉक्टर ऑफ लेटर्स (D.Litt) की डिग्री की दूसरी प्रति प्रदान करना। यह सम्मान उनके 90वें जन्मदिवस के मौके पर दिया गया, जो न केवल एक डिग्री की बहाली है, बल्कि भारत-तिब्बत के सांस्कृतिक रिश्तों और शांति के प्रति सम्मान का प्रतीक बन गया है।
1956 का वह गौरवशाली पल
साल 1956 में, जब तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था, BHU ने दलाई लामा को उनकी शांति और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए D.Litt की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। लेकिन 1959 में चीन के तिब्बत पर कब्जे के बाद दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। इस उथल-पुथल में उनकी मूल डिग्री कहीं खो गई, और यह सम्मान केवल यादों में रह गया।
धर्मशाला से शुरू हुई कहानी
पिछले महीने BHU की कुलसचिव डॉ. सुनीता चंद्रा जब धर्मशाला के मैक्लॉडगंज स्थित तिब्बती संग्रहालय पहुंचीं, तो उन्होंने वहां दलाई लामा को मिले सम्मानों की प्रदर्शनी देखी। इनमें BHU की D.Litt डिग्री की सिर्फ एक तस्वीर थी, मूल प्रति नहीं। इस खोज ने एक ऐतिहासिक पहल की नींव रखी। संग्रहालय प्रबंधन से बातचीत के बाद BHU ने फैसला किया कि दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर उन्हें यह डिग्री दोबारा सौंपी जाएगी।
BHU की संवेदनशील पहल
डॉ. सुनीता चंद्रा के पति और BHU के संयुक्त रजिस्ट्रार डॉ. अवधेश कुमार ने इस मुद्दे को कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय कुमार के सामने रखा। विश्वविद्यालय ने तुरंत इस दिशा में कदम उठाया। तय कार्यक्रम के तहत, BHU के प्रतिनिधियों ने डिग्री की दूसरी प्रति तैयार की और इसे तिब्बती संस्थान के कुलपति प्रो. वांगचुक दोर्जे नेगी को सौंपा। अब यह डिग्री धर्मशाला के संग्रहालय में ससम्मान प्रदर्शित होगी, जहां यह दलाई लामा के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
सांस्कृतिक विरासत का सम्मान
यह घटना केवल एक खोई हुई डिग्री की बहाली नहीं है। यह भारत और तिब्बत के बीच गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रिश्तों का उत्सव है। दलाई लामा के अनुयायियों के लिए यह एक भावनात्मक उपलब्धि है, जो शांति, करुणा और मानवता के प्रति उनके संदेश को और मजबूत करती है। BHU का यह कदम एक बार फिर साबित करता है कि सांस्कृतिक विरासत का सम्मान समय और परिस्थितियों की सीमाओं से परे है।