लखनऊ, 5 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के पोस्टर ने सियासी और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। यह पोस्टर शिया धर्मगुरु मौलाना यासूब अब्बास के आवास अवध प्वाइंट पर लगाया गया है, जिसमें खामेनेई के साथ शिया समुदाय के अन्य धार्मिक चेहरों की तस्वीरें भी शामिल हैं। इस घटना ने शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है, खासकर तब जब हाल ही में ईरान-इजरायल के बीच 12 दिनों तक चली जंग की गूंज अभी थमी नहीं है।
परंपरा या सियासी संदेश?
मौलाना यासूब अब्बास ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि यह कोई राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि शिया समुदाय की सालों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि हैदरी टास्क फोर्स की ओर से हर साल ऐसे पोस्टर लगाए जाते हैं, और इस बार भी लखनऊ के कई इलाकों में ये पोस्टर नजर आए हैं। हालांकि, कुछ लोग इसे ईरान के प्रति समर्थन के तौर पर देख रहे हैं, जिससे यह मामला और संवेदनशील हो गया है।
ईरान-इजरायल जंग से जोड़ा जा रहा कनेक्शन
पोस्टर का समय भी सवालों के घेरे में है। हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच चले सैन्य संघर्ष में दोनों देश अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इस दौरान लखनऊ में मौलाना यासूब अब्बास के नेतृत्व में शिया समुदाय ने सड़कों पर उतरकर इजरायल और अमेरिका के खिलाफ प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पोस्टर जलाए और ईरान के समर्थन में नारेबाजी की थी। मौलाना ने केंद्र सरकार से भी ईरान का साथ देने की अपील की थी।
सुरक्षा एजेंसियां सतर्क, सोशल मीडिया पर वायरल
पोस्टर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं, जिसके बाद सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। हालांकि, प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। इस बीच, मौलाना यासूब ने दोहराया कि पोस्टर का उद्देश्य धार्मिक है और इसका ईरान-इजरायल तनाव से कोई लेना-देना नहीं।
यूपी के मुसलमानों का ईरान से रिश्ता
गौरतलब है कि जंग के दौरान यूपी के कई मुस्लिम तीर्थयात्री ईरान में फंस गए थे। शिया समुदाय का ईरान से गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव रहा है, और लखनऊ में इस तरह के प्रदर्शन पहले भी देखे गए हैं। लेकिन मौजूदा वैश्विक हालात को देखते हुए यह पोस्टर विवादों में घिर गया है।
लखनऊ में यह घटनाक्रम न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चर्चा का विषय बन गया है। सवाल यह है कि क्या यह वाकई एक धार्मिक परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरा सियासी संदेश छिपा है? फिलहाल, इस रहस्य पर से पर्दा उठना अभी बाकी है।