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Tuesday, July 8, 2025

इटावा कांड: जातीय सियासत में सपा का दांव, ब्राह्मण वोट खिसकने का खतरा?

लखनऊ, 2 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में इटावा के दांदरपुर की घटना ने नया तूफान खड़ा कर दिया है। यादव कथावाचकों के साथ मारपीट, सिर मुंडवाने और अपमानजनक व्यवहार का मामला अब जातीय रंग ले चुका है। आरोपों के केंद्र में ब्राह्मण समुदाय है, और समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस मुद्दे पर खुलकर पीड़ित यादव कथावाचकों का पक्ष लिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सपा प्रमुख अखिलेश यादव का यह ‘एंटी-ब्राह्मण’ रुख उनकी पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है?

अखिलेश का तंज और यादव संगठनों का मोर्चा

इटावा में यादव कथावाचकों मुकुट मणि यादव और संत यादव के साथ हुई घटना के बाद अखिलेश यादव ने तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “सच्चे कृष्ण भक्तों को कथा कहने से रोकना अपमान है। प्रभुत्ववादी और वर्चस्ववादी लोग घोषणा करें कि वे पीडीए का दान-चढ़ावा स्वीकार नहीं करेंगे।” अखिलेश के इस बयान के बाद अहीर रेजिमेंट और अन्य यादव संगठनों ने ब्राह्मणों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लेकिन इस आक्रामक रुख ने सियासी हलकों में सवाल उठा दिए हैं कि क्या सपा का यह दांव उल्टा पड़ सकता है?

ब्राह्मण वोट: यूपी की सत्ता का चाबी

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता भले ही करीब 10% हैं, लेकिन 100 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। फैजाबाद, वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर जैसे जिलों में इनका प्रभाव साफ दिखता है। इतिहास गवाह है कि ब्राह्मण वोट जिसके साथ गया, सत्ता उसी की बनी। कांग्रेस, बीजेपी और बसपा, सभी ने समय-समय पर इस वोट बैंक को साधकर सत्ता हासिल की। 2017 में 83% और 2022 में 89% ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया, जबकि सपा को महज 7% वोट मिले।

सपा का ब्राह्मणों से पुराना नाता

सपा का ब्राह्मणों के साथ भी रिश्ता रहा है। 2012 में अखिलेश की अगुवाई में सपा की जीत में ब्राह्मण वोटों की अहम भूमिका थी। 2022 में सपा के पांच ब्राह्मण विधायक जीते, और लोकसभा चुनाव में बलिया से सनातन पांडेय सांसद बने। सपा ने हमेशा ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की, लेकिन इटावा कांड के बाद अखिलेश का ‘प्रभुत्ववादी’ तंज ब्राह्मणों को नाराज कर सकता है।

सियासी जोखिम और संतुलन की चुनौती

पिछले साल देवरिया में प्रेम यादव की हत्या और ब्राह्मण परिवार की लिंचिंग के मामले में अखिलेश ने दोनों पक्षों से मुलाकात कर संतुलन बनाए रखने की कोशिश की थी। लेकिन इटावा कांड में उनका खुलकर एक पक्ष लेना सवाल उठा रहा है। क्या यह रणनीति सपा के लिए बैकफायर करेगी? क्या ब्राह्मण वोट बीजेपी की ओर और मजबूती से खिसक जाएंगे?

आगे क्या?

इटावा कांड को जातीय रंग देने का सपा का दांव कितना कारगर होगा, यह तो समय बताएगा। लेकिन यूपी की सियासत में ब्राह्मण वोटों की ताकत को नजरअंदाज करना सपा के लिए महंगा साबित हो सकता है। जैसे-जैसे 2027 का विधानसभा चुनाव नजदीक आएगा, सपा के इस कदम का असर सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना रहेगा।

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