वाराणसी, 30 जून 2025: प्राच्य विद्या के संरक्षण के लिए 1791 में स्थापित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के आधा दर्जन विभागों पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। इन विभागों में छात्रों की संख्या दहाई से भी कम होने के कारण राजभवन ने शिक्षक नियुक्तियों पर अघोषित रोक लगा दी है। साथ ही, विश्वविद्यालय से सभी विभागों में पढ़ रहे छात्रों की सूची मांगी गई है।
विश्वविद्यालय के 22 विभागों में कुल 112 शिक्षक पद स्वीकृत हैं, लेकिन 82 पद रिक्त हैं। मीमांसा, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, प्राकृत जैनागम, न्याय और संस्कृत प्रमाणपत्रीय जैसे विभागों में छात्रों की संख्या बेहद कम है। इनमें से कई विभाग शिक्षकविहीन हो चुके हैं। तीन अप्रैल को विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद ने शिक्षक नियुक्तियों के लिए विज्ञापन की स्वीकृति दी थी, लेकिन राजभवन ने छात्र संख्या के आधार पर नियुक्तियों के औचित्य पर सवाल उठाते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया।
राजभवन ने संकेत दिया है कि जिन विभागों में दस से कम छात्र हैं, उन्हें बंद किया जा सकता है। इससे प्राच्य विद्या के संरक्षण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। न्याय वैशेषिक विभाग के प्रो. रामपूजन पांडेय ने कहा, “विश्वविद्यालय की स्थापना प्राच्य विद्या के संरक्षण के लिए हुई थी। यदि एक भी छात्र किसी विभाग में पढ़ रहा है, तो यह उद्देश्य पूरा हो रहा है।”
कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि शिक्षकों की कमी के कारण ही छात्र संख्या घटी है। “वर्तमान में 112 स्वीकृत पदों के सापेक्ष केवल 30 शिक्षक बचे हैं। हमने राजभवन से नियुक्तियों के लिए अनुमति मांगी है, लेकिन उन्होंने विभागवार छात्रों का विवरण मांगा है।”
1791 में बनारस संस्कृत पाठशाला के रूप में शुरू हुआ यह संस्थान 1956 में राज्य विश्वविद्यालय बना और 1974 में इसका नाम संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय पड़ा। अब शिक्षकों की कमी और राजभवन के रुख ने इसके गौरवशाली इतिहास पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो प्राच्य विद्या के संरक्षण का यह गढ़ खतरे में पड़ सकता है।
सवाल यह है कि क्या प्राच्य विद्या का यह ऐतिहासिक केंद्र अपनी विरासत बचा पाएगा?