वाराणसी, 28 जून 2025: केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में एक सनसनीखेज बयान देकर सियासी हलचल मचा दी। संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्दों को हटाए जाने की चर्चा पर अपनी राय रखते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल ‘सर्वधर्म सद्भाव’ है, न कि धर्मनिरपेक्षता। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन शब्दों को संविधान में आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था और अब इनकी प्रासंगिकता पर विचार करने का समय आ गया है।
चौहान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “मैं बाबा विश्वनाथ की पावन धरती पर हूं। भारत एक प्राचीन और महान राष्ट्र है, जिसका मूल भाव ‘सर्वधर्म सद्भाव’ है। हजारों साल पहले भारत ने कहा था, ‘एकम सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’—सत्य एक है, विद्वान उसे अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते हैं। स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो में यही संदेश दिया था कि हर रास्ता अंततः परमात्मा तक ले जाता है।”
उन्होंने आगे कहा, “धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं है। आपातकाल में संविधान में जोड़ा गया यह शब्द अब हटाए जाने पर विचार की जरूरत है।” समाजवाद पर भी चौहान ने तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “भारत का मूल विचार है—’अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’—यह सारी दुनिया एक परिवार है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘जियो और जीने दो’ हमारी संस्कृति का आधार है। इसलिए समाजवाद जैसे शब्द की भी कोई जरूरत नहीं।”
चौहान के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर उनके समर्थक इसे भारतीय संस्कृति के मूल्यों की पुनर्स्थापना की दिशा में एक कदम बता रहे हैं, वहीं विपक्षी दलों ने इसे संविधान के मूल ढांचे पर हमला करार दिया है। इस बयान के बाद वाराणसी से लेकर दिल्ली तक सियासी सरगर्मी बढ़ गई है।
क्या होगा अगला कदम?
शिवराज सिंह चौहान के इस बयान के बाद अब सबकी नजरें केंद्र सरकार और संसद के अगले कदमों पर टिकी हैं। क्या संविधान से इन शब्दों को हटाने की दिशा में कोई ठोस प्रस्ताव आएगा? यह सवाल अब देश की सियासत में गूंज रहा है।