वाराणसी, 27 जून 2025: काशी की पावन धरती पर शुक्रवार से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की रथयात्रा का तीन दिवसीय महोत्सव धूमधाम से शुरू हुआ। भोर की मंगला आरती और दिव्य श्रृंगार के साथ रथ पर विराजमान प्रभु के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े। मान्यता है कि रथ पर प्रभु के दर्शन मात्र से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
56 भोग और औषधीय परंपरा
मंगला आरती के दौरान प्रभु को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए गए। पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि ‘बीमारी लीला’ के बाद प्रभु स्वस्थ होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। इस दौरान उन्हें औषधीय परवल का जूस और काढ़ा भोग के रूप में चढ़ाया जाता है, जो इस उत्सव की अनूठी परंपरा है।
लख्खा मेले की चहल-पहल
काशी का रथयात्रा मेला देश के ऐतिहासिक लख्खा मेलों में शुमार है। लाखों श्रद्धालु हर साल इस उत्सव में शिरकत करते हैं। मेले में ग्रामीण संस्कृति की जीवंत छटा देखने को मिलती है। चरखी, ननखटाई, खिलौनों की दुकानें और पारंपरिक स्टॉल रात तक चहल-पहल से गुलजार रहते हैं, जो काशी की सांस्कृतिक धरोहर को और जीवंत बनाते हैं।
पालकी यात्रा और नगर भ्रमण
26 जून को अस्सी स्थित मंदिर से प्रभु की भव्य पालकी यात्रा निकाली गई, जो नगर भ्रमण के लिए रवाना हुई। 27 से 29 जून तक चलने वाली रथयात्रा में हर सुबह भोर से मंगला आरती के साथ भक्तों को दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
1857 की क्रांति के बाद मंदिर का राजस्व बंद होने के बावजूद, पं. बेनीराम के वंशज आज भी इसकी देखरेख और पूजा-अर्चना का दायित्व निभा रहे हैं। यह परंपरा काशी की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
यह रथयात्रा महोत्सव केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि काशी की सांस्कृतिक समृद्धि और सामाजिक एकता का भव्य उत्सव भी है। श्रद्धालु प्रभु जगन्नाथ की कृपा और मेले की रौनक में खोए नजर आए।