तिरुवन्नामलाई, 26 जून 2025: तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई से एक दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई है, जहां एक रिटायर्ड फौजी ने अपनी बेटियों के अपमान और परिवार के उपेक्षापूर्ण रवैये से आहत होकर अपनी 4 करोड़ रुपये की संपत्ति मंदिर को दान कर दी। यह कहानी न केवल भावनात्मक है, बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर सवाल खड़ा करती है कि क्या बच्चों की परवरिश में माता-पिता की कुर्बानी का यही अंजाम होना चाहिए?
10 साल से अकेले रह रहे विजयन
65 वर्षीय पूर्व सैनिक एस. विजयन, जो तिरुवन्नामलाई जिले के केशवपुरम गांव के रहने वाले हैं, पिछले एक दशक से अकेले जीवन बिता रहे हैं। उनकी पत्नी से मतभेद के बाद परिवार का साथ छूट गया, और उनकी बेटियों ने भी उनकी सुध लेना बंद कर दिया। हाल के महीनों में बेटियों द्वारा संपत्ति पर दबाव डालने और अपमानित करने की घटनाओं ने विजयन को इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अरुलमिगु रेणुगाम्बल अम्मन मंदिर को दान करने का फैसला कर लिया।
दान पेटी में मिले 4 करोड़ के दस्तावेज
24 जून को मंदिर कर्मचारियों ने जब दान पेटी (हुंडी) खोली, तो सिक्कों और नोटों के बीच 4 करोड़ रुपये कीमत के दो प्रॉपर्टी दस्तावेज मिले। इनमें एक 3 करोड़ रुपये की संपत्ति मंदिर के पास की है, जिसमें 10 सेंट जमीन और एक मंजिला मकान शामिल है, जबकि दूसरी 1 करोड़ रुपये की संपत्ति है। दान पेटी में एक हस्तलिखित नोट भी मिला, जिसमें विजयन ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अपनी मर्जी से यह दान किया है। मंदिर के कार्यकारी अधिकारी एम. सिलंबरासन ने बताया कि यह पहली बार है जब मंदिर को इस तरह का दान मिला है।
कानूनी प्रक्रिया बाकी
मंदिर प्रशासन के अनुसार, दान पेटी में दस्तावेज मिलने से संपत्ति पर स्वामित्व अपने आप मंदिर को नहीं मिल जाता। इसके लिए विजयन को औपचारिक रूप से दान को HR&CE विभाग में पंजीकृत कराना होगा। तब तक दस्तावेज सुरक्षित रखे जाएंगे। सीनियर अधिकारियों को इसकी सूचना दे दी गई है, जो आगे का फैसला लेंगे।
विजयन का अटल फैसला
विजयन ने दृढ़ता से कहा, “मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा। मेरे बच्चों ने मेरी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी मेरा अपमान किया। मैं मंदिर के अधिकारियों से बात कर संपत्ति को कानूनी रूप से मंदिर के नाम करूंगा।” बचपन से ही रेणुगाम्बल अम्मन के भक्त रहे विजयन का यह कदम उनके गहरे आध्यात्मिक विश्वास को भी दर्शाता है।
परिवार की कोशिश नाकाम
सूत्रों के अनुसार, विजयन का परिवार अब संपत्ति वापस पाने की कोशिश में जुटा है, लेकिन विजयन के इस फैसले ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। यह घटना उन परिवारों के लिए एक सबक है, जो अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करते हैं।
सवाल जो रह गया
विजयन की कहानी यह सवाल छोड़ जाती है कि क्या बच्चों को सिर्फ संपत्ति का हकदार समझा जाना चाहिए, या माता-पिता के प्रति उनका कर्तव्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है? यह समाज के लिए एक चेतावनी है कि बुढ़ापे में सहारा न मिलने की पीड़ा इंसान को कितना बड़ा फैसला लेने पर मजबूर कर सकती है।