वाराणसी, 25 जून 2025: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के एक फर्जीवाड़ा मामले में पुलिस की मनमानी पर कड़ा रुख अपनाते हुए आरोपी को सशर्त अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा, “गिरफ्तारी आखिरी विकल्प होनी चाहिए, न कि पहली कार्रवाई।” इस फैसले ने एक बार फिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक संतुलन के महत्व को रेखांकित किया है।
मामला वाराणसी के कैंट थाना क्षेत्र से जुड़ा है, जहां आरोपी ने गिरफ्तारी के डर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याची ने दलील दी कि इस मामले में सह-आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है और उनका केस भी समान आधार पर टिका है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों—सुशीला अग्रवाल बनाम दिल्ली राज्य और जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार—का हवाला देते हुए कहा, “जेल अपवाद है, जमानत नियम।”
हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अनदेखी को गंभीर माना। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी तभी हो, जब यह अनिवार्य हो। राज्य सरकार ने याचिका का विरोध किया, लेकिन कोर्ट ने संतुलित रुख अपनाते हुए आरोपी को राहत दी।
न्यायिक संदेश: यह फैसला न केवल कानूनी अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि संविधान में निहित व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता को भी मजबूती देता है। हाईकोर्ट का यह कदम पुलिस कार्रवाइयों में मनमानी पर लगाम लगाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।