नई दिल्ली, 25 जून 2025: आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में एक काला दिन दर्ज हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर लोकतंत्र की नींव को हिलाकर रख दिया। यह वह दौर था जब संविधान, न्यायपालिका और नागरिक अधिकारों को सत्ता के सामने कुचल दिया गया।
क्या हुआ था उस रात?
प्रयागराज हाईकोर्ट ने रायबरेली चुनाव में अनियमितताओं के आधार पर इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया था और उन पर 6 साल तक चुनाव लड़ने की रोक लगा दी थी। सत्ता से बेदखल होने के डर से इंदिरा गांधी ने आनन-फानन में आपातकाल लागू कर दिया। देर रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से हस्ताक्षर करवाकर देश के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। विपक्षी नेता, जैसे जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी, रातों-रात जेल में डाल दिए गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगा, प्रेस पर सख्त सेंसरशिप थोपी गई, और संविधान में तानाशाही को मजबूत करने वाले संशोधन किए गए, जिसने प्रधानमंत्री को न्यायपालिका से भी ऊपर रख दिया।
लोकतंत्र पर हमला, जनता का आक्रोश
आपातकाल के 21 महीनों में देश एक अनकही दहशत में जकड़ा रहा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिन गई, विरोध की आवाजें दबा दी गईं। लेकिन सत्य और लोकतंत्र को लंबे समय तक कैद नहीं किया जा सका। विपक्ष, सामाजिक संगठनों और भूमिगत आंदोलनों ने जनता में जागरूकता फैलाई। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी ने देशव्यापी आंदोलन को हवा दी, जिसने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने की नींव रखी।
1977 में लोकतंत्र की जीत
1977 के आम चुनाव में जनता ने इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को करारी शिकस्त दी। जनता पार्टी की सरकार बनी, और मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। आपातकाल हटाया गया, और लोकतंत्र की बहाली हुई। यह जीत न केवल एक राजनीतिक बदलाव थी, बल्कि भारतीय जनता की ताकत और लोकतंत्र के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक थी।