कैसे उखड़ने लगे नक्सलियों के पांव
विवेक शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार और स्थंभकार लेखक
भारत में लंबे समय से नक्सलियों की हिंसा के कारण मासूम लोग अपनी जान से हाथ धोते रहे हैं। ये बीती सरकारों के लिए सिरदर्द रहे हैं। पर केन्द्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इनके पैर उखड़ने लगे हैं। वे कहते हैं कि नक्सलवाद यदि एक विचार है तो इसे बदलने के लिए काम करना चाहिए और यदि विद्रोह है तो इसे कुचलने के लिए काम करना चाहिए। 2014 में जब नरेंद्र मोदी को देश का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी बीजेपी ने दी तो उन्होंने अपनी दूसरी ही रैली में बस्तर में जाकर माओवादियों को ललकारते हुए कहा था- “लोकतंत्र को स्वीकार करिए। सभी समस्याओं का सबसे अच्छा समाधान यही है। बम, बंदूक और पिस्तौल खून-खराबा तो कर सकते हैं, लेकिन नया जीवन नहीं दे सकते। हमें खून नहीं, पसीना बहाना है। हमें इस धरती को हरा-भरा बनाना है, लाल नहीं।”
11 साल बाद जब गृह मंत्री अमित शाह यह घोषणा करते हैं कि 2026 तक देश से नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा, तो इसमें प्रधानमंत्री मोदी की दृढ़ता दिख रही है।
यह सही है कि पूर्वी भारत में नक्सल आंदोलन की शुरुआत मुख्य रूप से गरीबी के कारण हुईं। तब की भारत सरकार ने राज्यों के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्हीं दिनों देश में जंगल माफिया, पत्थर माफिया, लकड़ी माफिया, खनिज माफिया पैदा होने लगे। धीरे धीरे समस्या गहराई तक पहुँचने लगी। फिर यही माफिया अंतर-राज्यीय सीमाओं पर खुले आम अपनी गैरकानूनी गतिविधियों का संचालन करने लगें। खुफिया अड्डे बनाकर भारी मात्रा में असलहे जमा करने लगें और फिर सीधे सरकार को चुनौती देने लगें। हथियारों के बल पर अपने अपने क्षेत्र में साम्यवादी शासन भी चलाने लगें।
कहने की आवश्यकता नहीं कि नक्सली नेताओं ने राजनीतिक नेताओं को भी अपने दवाब में ले लिया और अपने लिए एक बौद्धिक गैंग की आड़ भी तैयार कर ली। यह बौद्धिक गैंग उनके हर खून खराबे को जमीनी संघर्ष का स्वरूप प्रदान करने लगा, जहां हत्या और लूट मार को किसानों और गरीबों के प्रति शोषण के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे कथित बुद्धिजीवियों को ही शहरी नक्सली का नाम दिया। गृह मंत्री अमित शाह ने यह कहने में कोई हिचक नहीं दिखाई कि कांग्रेस इन शहरी नक्सलियों को सरंक्षण देती रही है। बीजेपी नेतृत्व ने इन शहरी नक्सलियों के खतरनाक एजेंडे का पर्दाफाश पूरी दुनिया के सामने किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा – हर कोई देख सकता है कि कांग्रेस उन लोगों के साथ कितनी निकटता से खड़ी है, जो भारत के लिए अच्छे इरादे नहीं रखते हैं।”
बीजेपी नेतृत्व ने वाम विचार धारा को ध्वस्त करने के लिए लोकतांत्रिक तरीकों का बखूबी इस्तेमाल किया। उनके गढ़ में जाकर उनकी ही विचारधारा को चुनौती दी। जनता को पूरी तरह से जागरूक करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और अंत में उन्हें जनता के जरिए ही हाशिये पर बिठा दिया। 2014 के चुनाव में जब मोदी प्रधनमंत्री पद के उम्मीदवार बने तो उसी साल वामपंथी सांसदों की संख्या 24 से घटकर 10 हो गई और फिर 2019 के आम चुनाव में लोक सभा में वामपंथियों संख्या 4 रह गई। राष्ट्रवाद के आगे दक्षिणपंथी विचारधारा धराशायी होने लगी। सीपीआई, सीपीआई-मार्क्सवादी और सीपीआई-मार्क्सवादी-लेनिनवादी की राजनीति को देश ने एक तरह से खारिज करना शुरू कर दिया। एक समय वह भी था जब 2004 के आम चुनाव में वामपंथियों ने लोकसभा की 61 सीटें जीती थी। अब केरल के अलावा वाम मोर्चा कहीं भी खड़ा होने की स्थिति में नहीं है। बीजेपी नेतृत्व ने वाम मोर्चे के अहंकार, आत्मसंतुष्टि, भ्रष्टाचार और उनकी राजनीतिक हिंसा को मुद्दा बनाया और उन्हें राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक बना दिया।
राजनीतिक रूप से एक विजय हासिल करने के साथ साथ प्रधान मंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने वाम रक्त क्रांति को भी देश से समाप्त करने का बीड़ा उठाया। सबसे पहले वामपंथ के पारंपरिक समर्थकों को उनसे अलग करने की रणनीति बनाई। खासकर ग्रामीण इलाकों में सुधार के कई कार्यक्रम शुरू किये गए। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की योजना बनाई गई। फिर मोदी सरकार ने माओवादी उग्रवाद से निपटने के लिए व्यापक योजना बनाई। माओवादी विद्रोह का मुकाबला करने के लिए स्थानीय लोगों को सशक्त बनाया गया। मोदी सरकार ने स्पष्ट रूप से घोषणा की कि नक्सलवाद के प्रति ज़ीरो टोलेरेन्स रखेंगे। यह प्रण किया गया कि 31 मार्च, 2026 तक वामपंथी उग्रवाद को पूरी तरह से खत्म कर देंगे। फिर गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सुरक्षा अभियान, विकास और पुनर्वास एक एकीकृत योजना लागू की गई। ऑपरेशन कगार चला कर सैकड़ों नक्सलियों का खात्मा किया गया और हजारों को आत्मसमर्पण के लिए तैयार किया गया। परिणाम भी सामने आया। 2014 में जहां 126 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे वहीं 2025 में केवल 6 सबसे अधिक प्रभावित जिले ही बच गए हैं।
नक्सल प्रभावित जनजातीय क्षेत्रों में स्कूलों और स्वास्थ्य सेवा केंद्रों का व्यापक विस्तार किया गया। हथियार डाल चुके नक्सलियों के लिए पुनर्वास नीति अपनाकर माओवादियों को मुख्यधारा में फिर से शामिल होने का मार्ग प्रशस्त किया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने बल, सुशासन और समावेशी आउटरीच का एक त्रिस्तरीय फार्मूला अपनाकर नक्सलवाद को खत्म करने का समयबद्ध कार्यक्रम तैयार कर लिया है।जो हथियार डालने के लिए तैयार नहीं हो रहे, उन्हें खत्म करने का अभियान दिन रात चलाया जा रहा है। केवल इसी साल 200 से अधिक हथियारबंद नक्सलियों का सफाया किया जा चुका है। इसके अलावा 600 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है। आकड़े बताते हैं कि 30 मई 2025 तक 2824 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। नक्सलवाद के खिलाफ अभियान को सबसे बड़ी सफलता तब मिली जब 14 मई, 2025 को सुरक्षा बलों ने नक्सलवाद के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन चलाया। छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर स्थित कर्रेगुट्टालु हिल (केजीएच) पर किये गए इस अभियान में 31 नक्सली मारे गए।
ताजा हालत ये है कि मोदी सरकार ने नक्सलियों को तबहा कर दिया है। जो आदिवासी नक्सलियों के समर्थन में होने के लिए मजबूर किये गए थे वे ही अब नक्सल के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। आदिवासी अधिकारों के लिए काम जिस गति से हो रहा है, उससे नक्सल समस्या को एक तय समय सीमा में हल करने के प्रति विश्वास पैदा होने लगा है केवल हथियारों से समाजवाद आ सकता है, इस धारणा को बदलने में सफलता मिल रही है। मोदी के यह अपील की कि ‘पृथ्वी को लाल नहीं हरा बनाओ’..परवान चढ़ रही है।