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Monday, June 23, 2025

बांग्लादेश में बेकाबू हिंसा: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को भीड़ ने बेरहमी से पीटा, जूतों की माला पहनाई!

ढाका, 23 जून 2025: बांग्लादेश की राजधानी में हाल ही में एक ऐसी घटना ने सबको हिलाकर रख दिया, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नुरुल हुदा पर उत्तरा में उनके घर के बाहर उग्र भीड़ ने क्रूर हमला बोला। वायरल वीडियो में दिख रही दिल दहलाने वाली तस्वीरें हैं। जूतों से पिटाई, गले में जूतों की माला, अंडों की बौछार और गालियों की बारिश—यह सब उस शख्स के साथ हुआ, जो कभी देश के चुनावों का जिम्मेदार था।

घर से घसीटा, बेइज्जती की हद पार

वायरल वीडियो बीते गुरुवार की बताई जा रही है। शाम करीब 7:30 बजे उत्तरा सेक्टर-5 में नुरुल हुदा के फ्लैट के बाहर छात्रों और आम लोगों की भीड़ जमा हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक, भीड़ ने उन्हें जबरन घर से बाहर खींच लिया। वीडियो में दिख रहा है कि एक शख्स ने उनका कॉलर पकड़कर ढकेला, तो किसी ने गले में जूतों की माला डाल दी। इतना ही नहीं, माला से जूता निकालकर उनके सिर और गाल पर तड़ातड़ वार किए गए। भीड़ अंडे फेंक रही थी और “स्वेच्छासेबक उत्तरा” के नारे लगा रही थी। हैरानी की बात? पास खड़ा पुलिसवाला मूकदर्शक बना तमाशा देखता रहा।

क्यों भड़की हिंसा?

यह हमला तब हुआ, जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने नुरुल हुदा समेत 19 लोगों पर शेर-ए-बांग्ला नगर थाने में मुकदमा दर्ज किया। उन पर 10वीं, 11वीं और 12वीं संसदीय चुनावों को जनादेश के बिना कराने का आरोप है। इस सूची में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भी शामिल हैं। बीएनपी और विपक्षी दल लंबे समय से शेख हसीना सरकार के दौरान हुए चुनावों को अनुचित ठहराते रहे हैं। नुरुल हुदा, जो 2017 से 2022 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे, उन पर भी गंभीर सवाल उठते रहे हैं।

पुलिस की भूमिका पर सवाल

पुलिस ने आखिरकार हस्तक्षेप कर जूतों की माला हटाई और नुरुल हुदा को हिरासत में लिया, लेकिन सवाल यह है कि हमला होने के दौरान पुलिस ने बीच-बचाव क्यों नहीं किया? एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भीड़ ने नुरुल हुदा की जमकर बेइज्जती की।

सोशल मीडिया पर हंगामा

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो ने बांग्लादेश की सियासत में तूफान मचा दिया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर देश में ऐसी क्रूरता को कौन बढ़ावा दे रहा है? क्या यह हिंसा सिर्फ सियासी बदले की आग है, या इसके पीछे कुछ और है? यह घटना न सिर्फ बांग्लादेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि इंसानियत के मायने भी पूछ रही है।

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