अनिता चौधरी
क्या ईरान परमाणु संपन्न देश बन जाता तो… यह “सुपर न्यूक्लियर इस्लामिक बम होता ”
भारत के पड़ोस में पाकिस्तान , मालदीव, बंग्लादेश, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया सभी इस्लामिक देश क्या यह भारत की चौहद्दी के लिए खतरा था ।
यहाँ सुपर इस्लामिक बम का अर्थ समझना जरूरी है । इस बम का उपयोग इस्लामिक मुद्दे सुलझाने के लिए होता। यानि मुस्लिम देशों की जो भी मांगें हैं , ईरान सबका सरदार होता , पाकिस्तान उसके पीछे और फिर इस इस्लामिक न्यूक्लियर बम के दम पर पूरी दुनिया से ब्लैकमेलिंग होती ।
ईरान -इजराइल युद्ध में अमेरिका की एंट्री के साथ ही इस युद्ध को लेकर वैश्विक स्थिति वीभत्स होती जा रही है । अगर समझौता नहीं होता और शांति बहाल नहीं होती है तो तीसरा विश्व युद्ध निश्चित सा होता जा रहा है । अमेरिका की एंट्री के साथ ही विश्व अब दो गुटों में बांटता जा रहा है । इजराइल ट्रंप की पोस्टर्स और बैनर के माध्यम से धन्यवाद बोल रहा है और रूस और चीन ईरान के समर्थन में खुल कर मैदान में गई । ऐसे में याद आता है 2014 से पहले का वैश्विक समीकरण । सन 2014 से पहले भारत जैसे परमाणु संपन्न देश को भी आतंकी पाकिस्तान जैसा देश भी अपने परमाणु बम की गीदड़ भभकी दिखाता रहा है और वैश्विक पटल पर अपनी मनमर्जी करने की कोशिश करता रहा । ये स्थिति तब थी जबकि भारत एक परमाणु संपन्न देश है तो सोचिए गैर परमाणु देशों का क्या हाल होता इन मुस्लिम परमाणु देश को डील करने में । दरअसल ईरान अगर परमाणु संपन्न देश होता है तो उसका ये परमाणु बम ‘दुनिया के लिए “सुपर न्यूक्लियर इस्लामिक बम होता ”
इस्लाम के नाम पर यह बम केवल मुस्लिम देशों को ही नहीं मिलता बल्कि यह नॉन स्टेट एक्टर्स को भी मुहैया करवाया जाता । यानि किसी देश के वो क्षेत्र जो मुस्लिम बहुल हो चुके हैं और एक अलग इस्लामिक देश चाहते हैं । उन क्षेत्रों के अलगाववाद के नाम पर तोड़ा जाता और फिर आज़ादी के नाम पर टेररिस्ट ग्रुपों को भी यह बम दिया जाता । यानि कश्मीर, केरल, हैदराबाद के अलगाववादियो, रोहिंग्या, चेचेन्या मुस्लिमों को भी यह बम मिल सकता था ।
अधिकांश भारतीयों और भारतीय मीडिया को ईरान की पॉलिटिक्स का 5% भी नहीं पता… 1979 के बाद ईरान कैसा है इसको जानने की जहमत भी नहीं उठाना चाहते भारत के लोग । ईरान में मुल्लाह रेजीम की शुरुआत में आयतुल्ला खुमैनी ने एक एतिहासिक नारा दिया था , “ना शरकीए ना गरबीए… हुकूमते इस्लामिए… ”
हिन्दी में समझे तो ना पूर्व ना पश्चिम सिर्फ इस्लामी हुकूमत! इसका मतलब है ना पश्चिम के काफिरों को जीने देंगे ना पूर्व के काफिरों को जीने देंगे । पूरी दुनिया पर सिर्फ इस्लाम का राज होगा । ईरान के आयतुल्ला खुमैनी एक कट्टर इस्लामवादी शासक हैं जो दुनिया भर में इस्लामिक प्रॉक्सी खड़े करना चाहते है । दुनिया भर की राजनीति में इस्लामिक जगत का हस्तक्षेप हो यही उनका उद्देश्य है । पूरी दुनिया मे माडर्न इस्लामिक आतंकवाद की शुरुआत करने वाला ईरान ही है । 1979 के बाद वाला ईरान,मुल्लाह रेजीम वाला ईरान ,हमास, हिजबुल्ला, हिजबुल्ला मुजाहिदीन वाला ईरान । क्या क्या कहें इसे । ईरान ने हर आतंकी चाहे वो संगठन हो या देश सबको खड़ा किया है ।
जो जो ईरान ने कहा था वो सब कुछ भारत में हुआ । कश्मीर मुद्दे पर भारत की राजनीति में ईरान OIC अरब का हस्तक्षेप हुआ । इस्लामिक देशों की ब्लैकमेलिंग हुई और 1989-90 से कश्मीरी अलगाववाद की शुरुआत हुई जिसको ईरान का जबरदस्त समर्थन था । जब आयतुल्ला के निर्देशों पर कश्मीर के शिया धर्मगुरुओं ने श्रीनगर में बहुत बड़ी मजलिस बुलाई गई थी और उस मजलिस में पहली बार कश्मीर की आजादी का बिगुल फूंका गया था । उसके बाद कश्मीर में क्या क्या हुआ हम सभी जानते हैं । कश्मीरी अलगाववाद को अगले अढ़ाई दशकों तक ईरान की फंडिंग होती रही । यही नहीं वाले मुस्लिम आंदोलन में खामनई ने खुलकर समर्थन किया था ।
आयतुल्ला खामनई के पर्सनल इंटरेस्ट में दुनिया के 4 मुद्दे सबसे पहले थे…
1) कश्मीर की आजादी।
2) रोहिंग्या के लिए रखाइन स्टेट की आजादी। 3) हमास के लिए ग्रेटर फिलिस्तीन।
4) हिजबुल्ला के लिए लेबनान।
बहुत से लोगों को भ्रम है के ईरान-भारत केशीर्ष नेतृत्व में गहरे रिश्ते हैं जबकि ऐसा हरगिज भी नहीं है ईरान का शीर्ष नेतृत्व आज तक कभी भी भारत के साथ सीधे संपर्क में नहीं रहा । आयतुल्ला खुमैनी हो या आयतुल्ला खामनई हो इन दोनों के भारत से सौहार्द पूर्वक संबंध नहीं रहे। 1979 के बाद वाले इस्लामिक ईरान में सिर्फ एक रफसानजानी ही ऐसा राष्ट्रपति होता था जो भारत के साथ संबंधों के पक्ष में था, अन्यथा ईरान सरकार में कभी भी भारत हितैषी नेता नहीं रहा। हमारे आपसी संबंध केवल मजबूरी के हैं वो भी तब जब ईरान पर दुनिया भर से सैंक्शन लगे, ईरान अनाज/भोजन और तेल के खरीददार ग्राहकों को तरसने लगा तो भारत को तेल बेचना उसकी मजबूरी था।
वहीं दूसरी तरफ रूस, चीन और पाकिस्तान के आर्मी चीफ के साथ आयतुल्ला खामनई के रिश्तों को देखो, किस गर्मजोशी से ईरानी आयतुल्ला इनसे मिलता है और मौजूदा स्थिति में ये साफ़ है कि अगर विश्व युद्ध होता है तो इन देशों का रूख किस तरफ़ होगा ।
ईरान जो सऊदी, दुबई से भी अमीर है और जिसके पास तेल/गैस के भंडार खाड़ी देशों से जरा भी कम नहीं है लेकिन आख़िर क्यों फिर भी ईरान के लोग गरीबी और पिछड़ी आर्थिक हालात के शिकार हैं ? इसलिए क्योंकि ईरान में मुल्ला खामनाई के रेजीम में दुनिया भर के प्रॉक्सी/आतंकियों का खर्चा ईरान उठाता है । तेल/गैस से कमाया पैसा देश और जनता पर नहीं आतंकवाद पर खर्च करता है ईरान । यानि ईरान सरकार अपनी आमदनी का 80% हिस्सा दुनिया भर के इस्लामिक आतंकवाद पर खर्च कर देती है। जबकि शाह ईरान के समय तेल/गैस का पैसा देश और जनता पर लगता था और जनता वहाँ की शरीयत से नहीं बल्कि मानवता के लिए जीती थी इसीलिए तब ईरान के रिश्ते इसराइल और पश्चिम के देशों से अच्छे थे ।
लेकिन इस मौजूदा युद्ध की स्थिति में ईरान ने एक बार फिर चालाकी दिखाते हुए दुनिया की नब्ज पर हाथ रख दिया है। ईरान में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर दिया गया है । लेकिन इस स्थिति में भी भारत अपनी कूटनीति से इस परेशानी और ईरान के जाल। से बाहर है । होर्मुज ही वो रास्ता है जिससे दुनिया का तेल गुजरता है।इस रास्ते के बंद होने से अब पूरी दुनिया खौफ में है, लेकिन भारत ने इस स्थिति के लिए पहले से तैयारी कर ली थी ।
आइए जानते है यूरोप कैसे तेल के लिए मछली की तरह तड़पेगा और भारत की तैयारी क्या है?
होर्मुज जलडमरूमध्य एक बहुत ही संकुचित लेकिन सबसे अहम समुद्री रास्ता है, जहां से दुनिया का लगभग एक चौथाई तेल व्यापार होता है।ये रास्ता केवल 33 किलोमीटर चौड़ा है, लेकिन इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अगर यह बंद होता है, तो पूरी दुनिया की तेल आपूर्ति लड़खड़ा सकती है।यूरोप अमेरिका समेत ईरान के इस कदम के पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है। खबर है कि ईरान यहाँ बारूद बिछाने जा रहा है।
ईरान ने एक और बड़ा कदम उठाते हुए बाब अल मंडेब नामक चोकपॉइंट को भी नियंत्रित कर लिया है। ये वह रास्ता है जिससे अफ्रीका से तेल आता है। लेकिन इस पर ईरान समर्थित हूथियों ने कब्जा कर लिया है। इसका मतलब है कि अब तेल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी और महंगाई पूरी दुनिया में आग की तरह फैल सकती है।अमेरिका तो सर्वाइव कर जाएगा क्योंकि उसके पास तेल भंडार है। लेकिन पूरे यूरोप का क्या होगा ये सबसे बड़ा सवाल बनता जा रहा है । अगर स्थिति ज्यादा बिगड़ती है, तो यह पूरी दुनिया के लिए आर्थिक आपदा बन सकती है। कई देश जहां पहले से ही आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, उनके लिए यह एक झटका होगा।महंगाई, मंदी और अस्थिरता एक साथ आएगी मानों बड़ती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था की हत्या कर दी गई हो।
सवाल ये है कि क्या भारत इससे अछूता रह पाएगा । तो यहाँ यह जानना जरूरी है कि क्या भारत सरकार ने पहले ही इन खतरों को भांप लिया था। जब बाकी देश तेल के लिए लड़ाई में उलझे थे, तब भारत ने चुपचाप अपनी रणनीति बना ली थी। भारत रूस और अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल मंगवा रहा था , वो भी भारी छूट पर। रोज़ाना 2.2 मिलियन बैरल से भी ज्यादा क्रूड ऑयल भारत में आ रहा है, जो पिछले दो सालों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। यही नहीं रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों ने भारत पर दबाव डाला था कि वह रूस से तेल न खरीदे। लेकिन भारत ने इस दबाव को सिरे से खारिज कर दिया था और रूस से भारत ने सस्ते दामों पर भरी मात्र में तेल ख़रीदे थे । नतीजा यह है कि आज जब दुनिया परेशानी में है, भारत के पास तेल का भरपूर स्टॉक है और तेल का दाम भी काबू में हैं।इतना ही नहीं, भारत ने 40 अलग-अलग देशों से तेल आपूर्ति के विकल्प बनाए हैं। इससे यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई एक देश आपूर्ति रोक भी दे, तो भारत की ऊर्जा जरूरतें प्रभावित न हों। आज भारत न सिर्फ इस वैश्विक संकट से सुरक्षित है, बल्कि अपने फैसलों से दुनिया को रास्ता भी दिखा रहा है।