नई दिल्ली, 21 जून 2025: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को कानूनी बिरादरी के तीखे विरोध और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आशंका के बीच अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं। ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रताप वेणुगोपाल और अरविंद दातार को जारी समन तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के कड़े रुख और मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई को लिखे पत्र के बाद आया।
ईडी ने मानी हार, जारी किया सर्कुलर
शुक्रवार को ईडी ने अपने क्षेत्रीय अधिकारियों के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए। नए सर्कुलर में कहा गया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 के तहत वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार का उल्लंघन करते हुए किसी भी वकील को समन जारी नहीं किया जाएगा। अपवाद के तौर पर समन जारी करने की स्थिति में भी ईडी निदेशक की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य होगी। ईडी ने यह कदम कानूनी बिरादरी के भारी दबाव और “न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमले” के आरोपों के बाद उठाया।
क्या थी विवाद की जड़?
18 जून को ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रताप वेणुगोपाल को समन जारी कर 24 जून को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत पेश होने को कहा था। यह समन केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड (सीएचआईएल) द्वारा रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व चेयरपर्सन डॉ. रश्मि सलूजा को कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ईएसओपी) देने से जुड़े मामले में था। वेणुगोपाल इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार की कानूनी राय के लिए एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड थे। दातार को भी पहले इसी मामले में समन जारी किया गया था, जिसे अब स्थगित कर दिया गया है।
ईडी ने सफाई दी कि वेणुगोपाल को समन उनकी वकालत की भूमिका में नहीं, बल्कि एक कंपनी के स्वतंत्र निदेशक के तौर पर जारी किया गया था। एजेंसी ने कहा कि अब वेणुगोपाल से जरूरी दस्तावेज ईमेल के जरिए मांगे जाएंगे।
कानूनी बिरादरी का गुस्सा, CJI से गुहार
ईडी की इस कार्रवाई से कानूनी बिरादरी में आक्रोश फैल गया। एससीएओआरए ने अध्यक्ष विपिन नायर के नेतृत्व में CJI गवई को पत्र लिखकर इसे “वकील-मुवक्किल गोपनीयता और न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला” करार दिया। पत्र में मुख्य न्यायाधीश से स्वतः संज्ञान लेने और भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों पर रोक लगाने की मांग की गई।
एससीबीए ने भी बयान जारी कर ईडी की निंदा की। अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा, “वकीलों को उनके पेशेवर कर्तव्यों के लिए निशाना बनाना लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर प्रहार है। यह न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप का गंभीर मामला है।”
ईडी के लिए सबक, कानूनी बिरादरी की जीत
यह घटनाक्रम ईडी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जबकि कानूनी बिरादरी इसे अपनी एकता और स्वतंत्रता की जीत के रूप में देख रही है। सुप्रीम कोर्ट के हलकों में चर्चा है कि यह मामला भविष्य में सरकारी एजेंसियों के लिए एक मिसाल बनेगा। फिलहाल, कानूनी बिरादरी की नजर CJI गवई के अगले कदम पर टिकी है, जो इस मामले में और सख्त दिशा-निर्देश जारी कर सकते हैं।