तेहरान/वॉशिंगटन, 21 जून 2025: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव ने मध्य पूर्व में हलचल मचा दी है। ईरान ने इजरायल पर लगातार मिसाइल हमले तेज कर दिए हैं, जिससे तेल अवीव और हाइफा जैसे शहरों में भारी तबाही मची है। इस बीच, ईरान की धमकी कि वह अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाएगा, ने वॉशिंगटन को सतर्क कर दिया है। नतीजतन, अमेरिका ने कतर के अल उदीद एयरबेस, जो मध्य पूर्व में उसका सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है, से करीब 40 सैन्य विमानों को हटा लिया है। सैटेलाइट तस्वीरों ने इस बड़े कदम का खुलासा किया है।
सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा
प्लैनेट लैब्स पीबीसी की 5 जून से 19 जून के बीच की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि अल उदीद एयरबेस, जो कभी C-130 हरक्यूलिस परिवहन विमानों और उन्नत टोही जेटों से खचाखच भरा रहता था, अब लगभग खाली हो चुका है। 5 जून को बेस पर करीब 40 विमान दिखाई दे रहे थे, लेकिन 19 जून की तस्वीरों में केवल तीन विमान बचे हैं। ओपन-सोर्स डेटा के विश्लेषण से यह भी सामने आया है कि 15 से 18 जून के बीच 27 सैन्य ईंधन टैंकर विमान (केसी-46ए पेगासस और केसी-135 स्ट्रेटोटैंकर) अमेरिका से यूरोप भेजे गए। इनमें से केवल दो विमान अमेरिका लौटे, जबकि 25 यूरोप में ही रुके हुए हैं। यह संकेत देता है कि अमेरिका लंबी दूरी के हवाई अभियानों की तैयारी कर रहा हो सकता है।
ट्रंप की उलझन: युद्ध या शांति?
ईरान-इजरायल तनाव के बीच अमेरिका अभी तक युद्ध में सीधे शामिल नहीं हुआ है। व्हाइट हाउस ने 19 जून को कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले दो सप्ताह में इस मुद्दे पर फैसला लेंगे। ट्रंप की नीतियां हमेशा से अनिश्चितता और विरोधाभासों से भरी रही हैं। एक तरफ उन्होंने ईरान के साथ कूटनीतिक समाधान की वकालत की, तो दूसरी तरफ इजरायल के हमलों का समर्थन किया। ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने ईरान को परमाणु समझौते के लिए 60 दिन का समय दिया था, जो 13 जून को खत्म हो गया। इसके बावजूद, इजरायल के हमले की योजना से उनकी पूरी वाकफियत थी।
शांति का मसीहा बनने की चाह
ट्रंप खुद को शांति के मसीहा के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। वह नोबेल शांति पुरस्कार के लिए लालायित हैं और भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर का श्रेय लेने के लिए कई बार बयान दे चुके हैं। हालांकि, वैश्विक समुदाय ने उनकी इन कोशिशों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। ट्रंप ने चुनावी वादा किया था कि वह सत्ता में आने के पहले दिन ही रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करा देंगे, लेकिन यह वादा भी अधूरा रहा। अब अगर अमेरिका ईरान के साथ युद्ध में फंसता है, तो ट्रंप के लिए अपने देश की जनता को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
अमेरिका की कमजोर पड़ती पकड़?
अमेरिका की आर्थिक स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही कि वह अनावश्यक युद्धों में उलझ सके। अफगानिस्तान और इराक में भारी नुकसान झेल चुका अमेरिका, ईरान जैसे युद्ध में फंसने से बचना चाहता है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप जानते हैं कि ईरान के साथ युद्ध में फंसने का मतलब लंबा और जटिल संघर्ष होगा, जिससे निकलना आसान नहीं होगा। मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य अड्डों की सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंता और विमानों की वापसी इस बात का संकेत है कि अमेरिका रक्षात्मक रुख अपना रहा है।
क्या मध्य पूर्व में कमजोर पड़ रहा है अमेरिका?
दुनिया को लग रहा था कि अमेरिका जल्द ही इस युद्ध में खुलकर शामिल हो जाएगा, लेकिन विमानों की वापसी और ट्रंप की अनिश्चित नीतियों ने सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या मध्य पूर्व में अमेरिका की पकड़ कमजोर पड़ रही है? यह सवाल वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बन गया है।