वाराणसी, 18 जून 2025, बुधवार। वाराणसी के हृदय, गोदौलिया चौराहे के पास बसा है घोड़ा नाला, जो शाही नाले का एक अनमोल हिस्सा है। यह नाला केवल सीवर प्रणाली नहीं, बल्कि काशी की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। कभी राजेंद्र प्रसाद घाट को ‘घोड़ा घाट’ के नाम से जाना जाता था, और गोदौलिया चौराहे पर आज की मल्टीलेवल टू-व्हीलर पार्किंग की जगह तांगा स्टैंड की रौनक हुआ करती थी। यही कारण है कि इस नाले का नाम पड़ा ‘घोड़ा नाला’।
रोपवे निर्माण में क्षतिग्रस्त हुआ नाला, मरम्मत शुरू
हाल ही में, रोपवे की पाइलिंग के दौरान शनिवार देर रात घोड़ा नाला का 25 फीट हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। जल निगम ने तुरंत मरम्मत का बीड़ा उठाया और निर्माण की रूपरेखा तैयार की जा रही है। गिरजाघर से गोदौलिया का रास्ता बंद कर बैरिकेडिंग की गई है। आसपास की मिट्टी खिसकने के खतरे को देखते हुए पास के होटल ‘देवा इन’ को खाली करा लिया गया। यह नाला प्रतिदिन 30 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवर डिस्चार्ज की क्षमता रखता है, जो अस्सी घाट से पंपिंग स्टेशन के रास्ते शाही नाले में मिलता है, और शहर की जलनिकासी में अहम भूमिका निभाता है।
मुगलकाल की शाही सुरंग: एक ऐतिहासिक चमत्कार
घोड़ा नाला और शाही नाला मुगलकाल में ‘शाही सुरंग’ के नाम से मशहूर थे। यह प्राचीन नाला आज भी वाराणसी के सीवर सिस्टम की रीढ़ है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसका नक्शा न तो नगर निगम के पास है, न ही जलकल विभाग के पास। शहर की घनी बस्तियों के नीचे से गुजरने वाला यह नाला पूरी तरह भूमिगत है और काशी की प्राचीन जलनिकासी व्यवस्था का गवाह है। पुराने निवासियों की मानें तो कई छोटे-बड़े नाले इससे जुड़े हैं, लेकिन इसकी सटीक स्थिति का पता न होने से मरम्मत में चुनौतियां आती हैं।
शाही नाले की अनूठी विशेषताएं
शहर के बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजों ने इसी शाही सुरंग के सहारे वाराणसी की सीवर समस्या का समाधान शुरू किया। मशहूर इंजीनियर जेम्स प्रिंसेप की कल्पना से 1827 में इसका निर्माण पूरा हुआ। लाखौरी ईंटों और बरी मसाले से निर्मित यह नाला शिवाला से खिड़किया घाट और कोनिया तक 24 किलोमीटर की दूरी तय करता है। यह आज भी अपने अस्तित्व को बनाए हुए है, लेकिन इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में सटीक जानकारी का अभाव है। यह नाला न केवल इंजीनियरिंग का नमूना है, बल्कि काशी की गौरवशाली इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज भी है।
काशी की गलियों में छिपा इंजीनियरिंग का चमत्कार
घोड़ा नाला और शाही नाला वाराणसी की उन धरोहरों में से हैं, जो आधुनिकता और इतिहास के बीच सेतु का काम करते हैं। इसकी मरम्मत और संरक्षण न केवल शहर की जलनिकासी के लिए जरूरी है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का भी एक कदम है। यह नाला हमें याद दिलाता है कि काशी की गलियों में सिर्फ भक्ति और संस्कृति ही नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग के चमत्कार भी छिपे हैं।