वाराणसी, 16 जून 2025, सोमवार। प्रख्यात राम कथा वाचक मुरारी बापू एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार कारण उनकी कथाओं की गूंज नहीं, बल्कि एक विवाद है। उनकी पत्नी नर्मदाबा के निधन के मात्र दो दिन बाद ही धार्मिक अनुष्ठान और काशी विश्वनाथ के दर्शन करने को लेकर सनातन धर्म के विद्वानों ने सवाल उठाए हैं। इस मुद्दे पर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने संयमित और संवेदनशील प्रतिक्रिया दी है, जिसमें उन्होंने संवाद के जरिए विवाद सुलझाने की अपील की है।
गाजियाबाद में एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए आचार्य प्रमोद ने मुरारी बापू की प्रशंसा करते हुए उन्हें “राम कथा का हिमालय” और सनातन धर्म का सच्चा सेवक बताया। उन्होंने बापू की पत्नी के निधन पर गहरा दुख जताया और प्रभु से उनके लिए धैर्य की प्रार्थना की। हालांकि, विवाद पर टिप्पणी करने से पहले उन्होंने पूरी जानकारी न होने की बात कही और सुझाव दिया कि काशी के विद्वत परिषद और मुरारी बापू के बीच संवाद से समाधान निकाला जाए।
विवाद की जड़ क्या है?
हिंदू धर्म में परंपरा है कि परिवार में किसी के निधन के बाद श्राद्ध कर्म होने तक सूतक दोष के कारण पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों से दूरी रखी जाती है। मुरारी बापू की पत्नी का निधन 11 जून 2025 को हुआ, लेकिन 14 जून को ही वे वाराणसी में राम कथा के लिए पहुंचे और काशी विश्वनाथ में दर्शन-पूजन किया। इस कदम पर काशी के विद्वानों ने आपत्ति जताई और इसे सनातन धर्म के नियमों की अवहेलना बताया। बद्रीनाथ-ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी बापू के इस कृत्य को धर्म का अनादर करार दिया।
मुरारी बापू का पक्ष और माफी
विवाद बढ़ने पर मुरारी बापू ने पहले खुद को वैष्णव संत बताकर सफाई देने की कोशिश की, लेकिन जब मामला तूल पकड़ा तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। उन्होंने कहा, “सूतक के दौरान राम कथा कहने से जिन्हें ठेस पहुंची, उन सभी से मैं क्षमा मांगता हूं।” हालांकि, काशी के विद्वानों का कहना है कि माफी से उनका अपराध कम नहीं होता, क्योंकि धर्म के नियम सभी के लिए समान हैं।