वाराणसी, 15 जून 2025, रविवार। विश्वविख्यात कथावाचक मोरारी बापू की ‘मानस सिंदूर’ रामकथा शुरू होने से पहले ही काशी में विवाद का तूफान खड़ा हो गया है। पत्नी के निधन के महज तीन दिन बाद काशी पहुंचकर रामकथा की व्यासपीठ संभालने और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने वाले मोरारी बापू के खिलाफ संत समाज ने मोर्चा खोल दिया है। काशी के शंकराचार्य, वैष्णव संत, तीर्थ पुरोहित और संत समुदाय में सूतक के नियमों की अवहेलना को लेकर गुस्सा फूट पड़ा है।
धर्मशास्त्रों की दलील, संतों का आक्रोश
काशी के विद्वान और धर्मसिंधु के जानकार विशेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने तीखा प्रहार करते हुए कहा, “धर्मसिंधु स्पष्ट कहता है कि सात पीढ़ियों तक सूतक लागू होता है। चाहे वैष्णव हों, शैव हों या शाक्त, कोई अपवाद नहीं। मसान (श्मशान) जाने से भी सूतक लगता है।” गोपाल मंदिर के शास्त्री विश्वंभर पाठक ने भी यही राग अलापा, “सनातन धर्म में जन्म और मृत्यु का शौच सभी पर लागू है। सूतक में मंदिर प्रवेश तक वर्जित है, फिर व्यासपीठ पर कथा कैसे? 16 दिन तक सूतक के नियम पालने जरूरी हैं।”
“पाखंड फैलाने की हद!”
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू पर निशाना साधते हुए कहा, “रामकथा के नाम पर कितना पाखंड? भगवान राम ने अपने पिता के निधन पर श्राद्ध किया, सूतक माना। मोरारी बापू बताएं, वह राजा हैं, योगी हैं, यति हैं या ब्रह्मचारी? इनमें से कोई नहीं, तो सूतक क्यों तोड़ा?” उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “अल्लाह हो अकबर की धुनी रमाने वाले सनातन धर्म पर ज्ञान न बघारें। ऐसे कथावाचक से कथा करवाकर यजमान काशी में अपने पतन का रास्ता खोल रहे हैं।”
ज्योतिषाचार्य और विद्वत परिषद की नाराजगी
ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने तारीखों का जिक्र करते हुए सवाल उठाया, “11 जून को पत्नी का निधन, 14 जून से काशी में रामकथा? सूतक में विश्वनाथ दर्शन? क्या यही है सनातन का आचार?” काशी विद्वत परिषद के प्रो. विनय पांडेय ने भी मोरारी बापू की कड़ी निंदा की, “ऐसा कृत्य जितनी भर्त्सना करें, कम है।”
पुराना विवाद, नया ठिकाना
यह पहली बार नहीं जब काशी विश्वनाथ मंदिर में सूतक का मामला गरमाया है। 2021 में अर्चक श्रीकांत मिश्र ने सूतक में पूजन कराया था, जिसके बाद उन्हें एक साल के लिए चंदौली भेज दिया गया। इस बार मोरारी बापू के दर्शन ने फिर से बहस छेड़ दी है।
मोरारी बापू का जवाब: “हम वैष्णव, हमें सूतक कहां?”
विवादों के बीच मोरारी बापू ने अपनी सफाई दी। उन्होंने कहा, “हम वैष्णव परंपरा के साधु हैं। न क्रिया करते हैं, न उत्तर-क्रिया। भगवान का भजन और कथा करना हमारा सुकून है, सूतक नहीं। विश्वनाथ दर्शन? हां, किए और क्या!” हालांकि, सूतक काल को लेकर चल रहे विवाद के बीच मोरारी बापू ने भरे मंच से काशी के संतों और मीडिया से माफी मांगी।
क्या कहता है काशी का मिजाज?
काशी की गलियों में अब सवाल गूंज रहे हैं- क्या मोरारी बापू का यह कदम सनातन परंपराओं पर चोट है या वैष्णव परंपरा की अलग व्याख्या? धर्मशास्त्रों और संतों की नाराजगी के बीच यह विवाद कथा से ज्यादा चर्चा बटोर रहा है। क्या काशी का संत समाज इस मुद्दे पर एकजुट होकर कोई बड़ा फैसला लेगा, या मोरारी बापू की कथा अपनी मधुर वाणी से सबको भुला देगी? वक्त ही बताएगा।