N/A
Total Visitor
33.1 C
Delhi
Monday, June 23, 2025

संत कबीर दास जयंती: एक प्रेरक जीवन और अमर रचनाओं का उत्सव

वाराणसी, 9 जून 2025, सोमवार: संत कबीर दास, भारत के उन महान संतों, समाज सुधारकों और कवियों में से एक हैं, जिनके विचार और रचनाएँ आज भी दिलों को छूती हैं और समाज को प्रेरित करती हैं। उनकी कालजयी रचनाएँ और गहन दर्शन न केवल आध्यात्मिक मार्ग दिखाते हैं, बल्कि सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज भी बुलंद करते हैं। हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को कबीर दास जयंती के रूप में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस साल, 10 जून 2025 को यह पावन दिन मनाया जाएगा, जब हम उनके अमर दोहों, शिक्षाओं और जीवन दर्शन को याद करेंगे। आइए, संत कबीर के जीवन, उनकी रचनाओं और उनके विचारों के महत्व को और करीब से जानें।

कबीर दास का प्रेरक जीवन

15वीं शताब्दी में काशी (आधुनिक वाराणसी) में जन्मे कबीर दास का जीवन सादगी और सत्य का प्रतीक था। उनका पालन-पोषण एक जुलाहा परिवार में नीरू और नीमा ने किया। बचपन से ही कबीर ने अंधविश्वास, पाखंड, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता का डटकर विरोध किया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता, मानवता और आध्यात्मिकता को अपने जीवन का आधार बनाया। संत रामानंद को उन्होंने अपना गुरु माना, जिनके मार्गदर्शन में उनकी आध्यात्मिक यात्रा ने नया आयाम लिया। गृहस्थ जीवन जीते हुए भी कबीर ने सादगी और सच्चाई का दामन कभी नहीं छोड़ा। उनके विचारों ने समाज को नई दिशा दी और कुरीतियों के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठाई।

कबीर की अमर रचनाएँ

कबीर की रचनाएँ उनकी गहरी सोच और सरल शब्दों का अनमोल संगम हैं। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से साखी, दोहे और रमैनी के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये रचनाएँ छोटे-छोटे शब्दों में गूढ़ ज्ञान समेटे हुए हैं, जो सीधे दिल और आत्मा को छू लेती हैं। कबीर के दोहे सामाजिक पाखंड, अंधविश्वास और बाहरी दिखावे पर करारा प्रहार करते हैं। कहा जाता है कि कबीर स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी वाणी में इतनी गहराई थी कि उनके शिष्यों ने उनकी रचनाओं को संकलित कर दुनिया तक पहुँचाया। उनके दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे। जैसे:

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”

यह दोहा हमें आत्म-चिंतन और स्वयं को सुधारने की प्रेरणा देता है।

कबीर दास जयंती का महत्व

कबीर दास जयंती केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि उनके विचारों और शिक्षाओं को जीवंत करने का अवसर है। यह दिन हमें उनके संदेशों—सत्य, प्रेम, भक्ति और मानवता—के करीब लाता है। कबीर ने हमेशा अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक पाखंड का विरोध किया। उनके लिए भक्ति का अर्थ था मन की शुद्धता और सच्चाई का मार्ग। इस दिन उनके दोहों और शिक्षाओं को याद कर लोग सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक जागरूकता की ओर प्रेरित होते हैं। कबीर ने तर्कहीन परंपराओं और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई, जिसके कारण उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। फिर भी, उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »