नई दिल्ली, 8 जून 2025, रविवार: जम्मू-कश्मीर की खूबसूरत वादियों में, जहां चिनाब नदी अपने पूरे शबाब पर बहती है, वहां खड़ा है दुनिया का सबसे ऊंचा सिंगल-आर्च केबल ब्रिज—चिनाब रेल पुल! इस इंजीनियरिंग के अद्भुत नमूने को खड़ा करना कोई आसान काम नहीं था। यह कहानी सिर्फ पहाड़ों को चीरने और नदी के ऊपर विशाल संरचना खड़ी करने की नहीं, बल्कि एक ऐसी कानूनी जंग की भी है, जिसने इस सपने को कई सालों तक हिचकोले खाने पर मजबूर कर दिया।
पहाड़, नदी और कानूनी उलझनें
चिनाब रेल पुल, कटरा-बनिहाल रेल खंड का हिस्सा, सिर्फ इंजीनियरिंग की चुनौतियों से ही नहीं जूझा। इसके रास्ते में आईं जनहित याचिकाओं (PIL) की बाढ़ ने इसे और भी रोमांचक बना दिया। लागत, रास्ते (एलाइनमेंट), और कथित अनियमितताओं को लेकर कोर्ट में सवाल उठे। 2008-09 से शुरू हुआ यह कानूनी ड्रामा आठ साल तक चला, जिसने प्रोजेक्ट को अनिश्चितता के भंवर में फंसा रखा। काम चलता रहा, लेकिन रफ्तार ऐसी थी, मानो कोई घोड़ा नहीं, कछुआ दौड़ रहा हो!
2016: जब जीत का सूरज उगा
2016 में यह कानूनी तूफान थमा। दिल्ली हाई कोर्ट ने अप्रैल में रेलवे के पक्ष में फैसला सुनाया, और तीन महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी। इसके बाद चिनाब पुल का निर्माण फिर से रफ्तार पकड़ सका। उत्तरी रेलवे के दस्तावेज बताते हैं कि जुलाई 2016 से काम ने ऐसी रफ्तार पकड़ी, जैसे कोई सुपरफास्ट ट्रेन अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही हो!
ई. श्रीधरन का ट्विस्ट
कहानी में तब और मसाला जुड़ा, जब मशहूर मेट्रो मैन ई. श्रीधरन की अगुवाई वाली समिति ने रेलवे के प्रस्तावित एलाइनमेंट पर सवाल उठाए। बार-बार दायर होने वाली PIL ने प्रोजेक्ट को बार-बार झटके दिए। हालात ऐसे हो गए कि केंद्र सरकार को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह को कोर्ट में उतारना पड़ा, ताकि इस कानूनी जंगल से रास्ता निकाला जा सके। रेलवे बोर्ड ने भी हलफनामा दाखिल कर अपनी बात मजबूती से रखी, और आखिरकार हाई कोर्ट ने माना कि रेलवे का एलाइनमेंट और चिनाब पुल की डिजाइन सुरक्षा और तकनीकी मापदंडों पर खरी उतरती है।
इंजीनियरिंग का करिश्मा
चिनाब पुल को बनाना किसी जादू से कम नहीं था। दुर्गम पहाड़ों को काटना, नदी के ऊपर इतना विशाल ढांचा खड़ा करना—हर कदम पर इंजीनियरों की परीक्षा थी। लेकिन कानूनी उलझनों ने इस चुनौती को और रोमांचक बना दिया। बार-बार कोर्ट में सुनवाई, देरी, और बढ़ती लागत ने रेलवे की हिम्मत को बार-बार आजमाया। फिर भी, रेलवे ने न सिर्फ कानूनी जंग जीती, बल्कि इस पुल को इंजीनियरिंग का एक चमकता सितारा बना दिया।
कश्मीर को जोड़ने वाला सपना
आज यह पुल न सिर्फ दुनिया के सबसे ऊंचे रेल पुलों में शुमार है, बल्कि भारत के इंजीनियरिंग कौशल का प्रतीक भी है। यह कश्मीर घाटी को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने की एक मजबूत कड़ी है। इससे न सिर्फ यात्रा आसान होगी, बल्कि व्यापार और समृद्धि के नए द्वार भी खुलेंगे।
चिनाब रेल पुल की यह कहानी इंजीनियरिंग की जीत, हौसले की उड़ान, और कानूनी बाधाओं पर विजय की एक ऐसी गाथा है, जो हर भारतीय को गर्व से भर देती है। यह सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि भारत के सपनों को जोड़ने वाला एक सुनहरा रास्ता है!