अमृतसर, 6 जून 2025, शुक्रवार: पवित्र स्वर्ण मंदिर में शुक्रवार को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी के मौके पर ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे गूंजे। इस दौरान भारी भीड़ स्वर्ण मंदिर परिसर में एकत्र हुई थी, जहां शिअद (मान गुट) के नेता सिमरनजीत सिंह मान की मौजूदगी में ये नारे लगाए गए। एक वायरल वीडियो में नारेबाजी की तीव्रता साफ झलक रही है, जिसने एक बार फिर इस संवेदनशील मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया।
“नारों में कुछ नया नहीं”
अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार जसबीर सिंह रोडे ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ये नारे कोई नई बात नहीं हैं। सिख समुदाय दशकों से अपने अधिकारों की आवाज उठाता रहा है। सरकार आज तक यह जवाब नहीं दे सकी कि सिखों के सबसे पवित्र स्थल पर सैन्य कार्रवाई क्यों की गई। यह हमला दुश्मन देशों पर होने वाले हमले जैसा था।”
ऑपरेशन ब्लू स्टार: एक जख्म जो आज भी ताजा
1984 में 1 से 8 जून तक चले ऑपरेशन ब्लू स्टार में भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे खालिस्तानी उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों को निशाना बनाया था। इस कार्रवाई का मकसद आतंकवाद पर लगाम लगाना था, लेकिन सिख समुदाय का एक बड़ा वर्ग इसे अपने पवित्र स्थल पर हमले के रूप में देखता है। यह घटना आज भी सिखों के लिए एक गहरा जख्म बनी हुई है।
अमृतसर में छावनी जैसे हालात
बरसी के मौके पर पंजाब पुलिस ने अमृतसर को छावनी में तब्दील कर दिया है। पुलिस आयुक्त गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि शहर के प्रवेश और निकास द्वारों पर कड़े चेकपॉइंट स्थापित किए गए हैं। स्वर्ण मंदिर के आसपास सुरक्षा व्यवस्था को और सघन किया गया है, जिसमें करीब 4,000 पुलिसकर्मी तैनात हैं। आने-जाने वालों की कड़ी जांच की जा रही है ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
दल खालसा का बंद और विरोध
इस बीच, सिख कट्टरपंथी संगठन दल खालसा ने अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज्ज के संबोधन पर आपत्ति जताई है। संगठन ने गुरुवार देर रात शहीदी मार्च निकाला और शुक्रवार को अमृतसर बंद का आह्वान किया। इस विरोध ने स्थानीय प्रशासन और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) को सतर्क कर दिया है।
तनाव के बीच सवाल
स्वर्ण मंदिर में नारेबाजी और तनावपूर्ण माहौल ने एक बार फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार की यादों को ताजा कर दिया है। यह घटना न केवल सिख समुदाय के दर्द को उजागर करती है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या इतिहास के इन जख्मों को भरने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?