नई दिल्ली, 5 जून 2025, गुरुवार: हैदराबाद के चारमीनार की छांव से निकलकर राष्ट्रीय सियासत की चकाचौंध में अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद में जुटे असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM अब बिहार में नए रंग दिखाने को तैयार है। कभी सीमांचल की गलियों में सियासी तूफान खड़ा करने वाले ओवैसी अब इंडिया गठबंधन के साथ कंधे से कंधा मिलाने को बेताब क्यों हैं? क्या ये बीजेपी की “बी-टीम” का ठप्पा हटाने की चाल है, या फिर मुस्लिम वोटों के बिखरने का डर सता रहा है? आइए, इस सियासी ड्रामे की परतें उघाड़ते हैं!
सीमांचल का सुल्तान: ओवैसी का बिहार में दमखम
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने सबको चौंकाते हुए सीमांचल की पांच सीटों पर कब्जा जमाया था। मुस्लिम बहुल इलाकों में AIMIM का झंडा लहराने से कांग्रेस और आरजेडी को तगड़ा झटका लगा, और इसका सीधा फायदा एनडीए को मिला। लेकिन, कहानी में ट्विस्ट तब आया जब AIMIM के चार विधायकों ने पाला बदलकर आरजेडी का दामन थाम लिया। सिर्फ अख्तरुल ईमान ही ओवैसी के साथ डटे रहे, मानो सियासी समंदर में अकेले तैरते नाविक!
सीमांचल, जहां 40-55% मुस्लिम वोटर हैं, ओवैसी का गढ़ रहा है। कुछ सीटों पर तो 60% से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं! इस बार ओवैसी ने 50 सीटों पर ताल ठोकने का ऐलान किया है, लेकिन सियासी हवा बदलती दिख रही है। पहले तो उन्होंने आरजेडी को खुली चुनौती दी थी कि “4 विधायकों का हिसाब 25 सीटों से लेंगे,” मगर अब गठबंधन की बात कर रहे हैं। ये यू-टर्न क्यों? आइए, पर्दे के पीछे की कहानी देखें!
बी-टीम का तमगा: सियासी संदेश या मजबूरी?
कांग्रेस, सपा और आरजेडी जैसे दल लंबे समय से ओवैसी पर “बीजेपी की बी-टीम” होने का इल्जाम लगाते रहे हैं। 2020 में बिहार चुनाव में AIMIM के उतरने से विपक्षी वोट बंटे, और बीजेपी को सत्ता का रास्ता मिला। इस नैरेटिव ने मुस्लिम वोटरों के मन में ओवैसी को लेकर शक पैदा कर दिया। क्या ओवैसी सचमुच बीजेपी की मदद करते हैं? ये सवाल मुस्लिम समुदाय में गूंज रहा है, और यही ओवैसी की बेचैनी की जड़ है।
AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने गठबंधन की पेशकश कर एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। पहला, बीजेपी की बी-टीम का ठप्पा हटाना, और दूसरा, मुस्लिम वोटरों को ये दिखाना कि “हम तो सेकुलर ताकतों के साथ थे, पर वो हमें साथ नहीं ले रहे!” ओवैसी ये अच्छे से जानते हैं कि कांग्रेस और आरजेडी शायद ही उनके साथ आएं। फिर भी, गठबंधन की बात छेड़कर वो सियासी मैसेज दे रहे हैं: “हमने कोशिश की, अब फैसला उनके हाथ में है!”
मुस्लिम वोटों का टूटता तिलिस्म
बिहार में इस बार मुकाबला नीतीश कुमार (एनडीए) और तेजस्वी यादव (इंडिया गठबंधन) के बीच सिमट गया है। ऐसे में ओवैसी की राह कांटों भरी है. मुस्लिम वोटर, जो AIMIM का कोर बेस हैं, अब कांग्रेस और आरजेडी की तरफ झुक रहे हैं। वक्फ संशोधन कानून हो या मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हमले, कांग्रेस और आरजेडी ने ओवैसी से ज्यादा मुखर होकर आवाज उठाई है। 2020 में मुस्लिम वोटरों ने AIMIM को आजमाया, मगर अब उन्हें लगता है कि ओवैसी कुछ सीटें तो जीत सकते हैं, पर बीजेपी को सत्ता से रोकने की ताकत उनमें नहीं।
सीमांचल में AIMIM के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के पाला बदलने से भी ओवैसी की सियासी जमीन खिसकती दिख रही है। मुस्लिम वोटरों का “सॉफ्ट कॉर्नर” कांग्रेस-आरजेडी के साथ है, और यही ओवैसी की सबसे बड़ी चिंता है। क्या यही वजह है कि वो इंडिया गठबंधन के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं?
सियासी शतरंज का मास्टरस्ट्रोक?
ओवैसी की गठबंधन की पेशकश कोई नया दांव नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने यही चाल चली थी, पर कामयाबी नहीं मिली। वो जानते हैं कि सेकुलर दल उनके साथ आने से कतराते हैं, क्योंकि AIMIM का मुस्लिम-केंद्रित सियासी ब्रांड उनके वोटबैंक को नुकसान पहुंचा सकता है। फिर भी, ओवैसी का ये दांव सियासी संदेश देने का है: “हम गठबंधन को तैयार थे, पर वो नहीं माने!” इससे वो मुस्लिम वोटरों के बीच अपनी साख बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
क्या है ओवैसी का प्लान बी?
अगर गठबंधन नहीं बनता, तो ओवैसी सीमांचल और बिहार के अन्य हिस्सों में अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे। 50 सीटों पर लड़ने का ऐलान और मुस्लिम वोटरों को लुभाने की रणनीति उनकी सियासी जमीन बचाने की कोशिश है। लेकिन, तेजस्वी बनाम नीतीश की जंग में ओवैसी का रास्ता आसान नहीं। क्या वो फिर से सीमांचल में तूफान खड़ा करेंगे, या इस बार मुस्लिम वोटों का बिखराव उनकी सियासी स्क्रिप्ट बिगाड़ देगा?
तो क्या है ओवैसी की बेचैनी का राज? बीजेपी की बी-टीम का तमगा तोड़ने की चाह, मुस्लिम वोटों को अपने पाले में रखने की जुगत, या फिर बिहार की सियासत में नई कहानी लिखने का सपना? बिहार का सियासी रंगमंच तैयार है, और ओवैसी की अगली चाल का इंतजार हर कोई कर रहा है!