वाराणसी, 4 जून 2025, बुधवार: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के पूर्व को-चेयरमैन और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के प्रतिनिधि श्रीनाथ त्रिपाठी को दिल्ली हाईकोर्ट ने जबरदस्त राहत दी है। बीसीआई की ओर से उनकी सदस्यता रद्द करने के फैसले को हाईकोर्ट ने न सिर्फ गलत ठहराया, बल्कि स्टे ऑर्डर जारी कर उन्हें राष्ट्रीय टीम में सदस्य के रूप में बरकरार रखा। यह फैसला वाराणसी से लेकर देशभर के वकील समुदाय में उत्साह की लहर ला रहा है।
इस मामले में अधिवक्ता और सांसद कपिल सिब्बल की जोरदार दलीलों ने कोर्ट का ध्यान खींचा। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की विशेष खंडपीठ ने बीसीआई के अध्यक्ष को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है, साथ ही प्रतिउत्तर के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। अगली सुनवाई इस जवाब के बाद होगी।
क्या था पूरा मामला?
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में दिए गए भाषण के बाद बीसीआई चेयरमैन ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए श्रीनाथ त्रिपाठी को को-चेयरमैन पद से हटाने के साथ-साथ उनकी बीसीआई सदस्यता भी रद्द कर दी थी। इस कार्रवाई को त्रिपाठी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि यह कार्रवाई बीसीआई के नियमों का खुला उल्लंघन है। उन्होंने बताया कि त्रिपाठी को 2019 में हुए चुनावों में बीसीआई में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल का सदस्य प्रतिनिधि चुना गया था। फिर भी, बिना ठोस सबूत और उचित प्रक्रिया के उन्हें हटाने का प्रयास किया गया। सिब्बल ने कहा कि जनवरी में भी ऐसी कोशिश नाकाम रही थी, और अब दोबारा असंगत आरोपों के आधार पर कार्रवाई की गई।
कपिल सिब्बल ने खोली बीसीआई नियमावली की पोल
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में बीसीआई की नियमावली का हवाला देते हुए बताया कि 14 अगस्त 2020 की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, किसी सदस्य या पदाधिकारी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए सख्त नियम हैं। इसके लिए 2/3 सदस्यों का समर्थन, नैतिक अधमता का दोषी होना, या अनुशासनात्मक कार्रवाई में दोष सिद्ध होना जरूरी है। इतना ही नहीं, प्रस्ताव लाने से पहले 30 दिन की नोटिस और ठोस सबूत देना अनिवार्य है। यदि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, तो सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की जांच और सुनवाई का अवसर देना भी जरूरी है। सिब्बल ने तर्क दिया कि त्रिपाठी के खिलाफ की गई कार्रवाई में इनमें से किसी भी नियम का पालन नहीं हुआ।
कोर्ट का सख्त रुख, वकीलों में खुशी
हाईकोर्ट ने बीसीआई के फैसले पर स्टे लगाते हुए त्रिपाठी को तत्काल प्रभाव से सदस्य पद पर बहाल कर दिया। कोर्ट ने बीसीआई को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने और प्रतिउत्तर के लिए दो सप्ताह का समय दिया। श्रीनाथ त्रिपाठी ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए कहा, “दिल्ली हाईकोर्ट ने न्याय किया है। कपिल सिब्बल की दमदार पैरवी ने मेरे हक को स्थापित किया। मैं फिर से बीसीआई में अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हूं।”
वाराणसी में जश्न का माहौल
इस फैसले के बाद वाराणसी सेंट्रल बार एसोसिएशन और बनारस बार के वकीलों में उत्साह का माहौल है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह न सिर्फ श्रीनाथ त्रिपाठी की जीत है, बल्कि यह बीसीआई में पारदर्शिता और नियमों के पालन की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह मामला अब और रोचक हो गया है, क्योंकि अगली सुनवाई में बीसीआई के जवाब पर सबकी नजरें टिकी हैं।
यह फैसला न केवल कानूनी बिरादरी के लिए, बल्कि न्याय और पारदर्शिता की लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।