हसमुख उवाच
हिंदू धर्म में शक्तियो की अनेक प्रतीक हैं, हिंदू इन्हें माता कह कर पुकारते हैं, जैसे सरस्वती, लक्ष्मी, महाकाली,इत्यादि, इसी प्रकार सेक्युलर राजनीतिक संप्रदाय भी भारत में है,जो तुष्टीकरण माता को मानता है, सन१९२० में, तब, जब खिलाफत आंदोलन गांधी जी ने समर्थन दिया था, उसी समय तुष्टीकरण माता प्रकट हुई थी गांधी जी का खिलाफत को समर्थन ऐसा ही था जैसे ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ‘
खैर, जो भी था निशिचत ही तुष्टीकरण माता साकार और निराकार रूप में भारत में विराजमान हो गई, इनकी आराधना की कृपा से पाकिस्तान बना, देश के टुकड़े हो गये, लाखों हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया, परंतु देश के तत्कालीन कर्णधारों ने तुष्टीकरण माता की साधना का त्याग नहीं किया, आजादी के बाद भी तुष्टीकरण माता का कीर्तन चलता रहा, फलस्वरूप,तुष्टीकरण माता अनेक लोगों को प्रधानमंत्री, सांसद विधायक, मुख्यमंत्री के पद प्रदान किए, वरदान में घोटाले दिए, करोडों की कमाई दी, वोट बैंक नाम का ऐसा अक्षय पात्र प्रदान किया जिसमे वोटों का खजाना हाथ लगता तो हर नेता की वल्ले वलले होती चली जाती!
तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पिता! ये दोनों माता पिता अपने सेक्युलर पुत्रों सनेहपूर्वक पालन पोषण भारत में करते रहे हैँ, जो भी इनकी शरण में आता है उसे अनिवार्य रूप से सेक्युलर बनना पड़ता है, यदि कोई साधक सेक्युलर नही बनता तो तुष्टीकरण माता रूठ जाती हैं, वोट बैंक पापा का भी मूड खराब हो जाता है, इसलिए तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पिता को खुश रखना पड़ता है, इन दोनो मम्मी पापा को खुश रखने के लिए जात पात का नारा देकर समाज को विभाजित करने का कार्य करना होता है, हिंदुओं को नफरती बताना होता है, इनसे तुष्टीकरण नाम वाली मम्मी प्रसन होती हैं, वोट बैंक नाम के पापा भी गदगद हो उठते हैं!
भारत में चुनाव का खेल हर पांच साल में जब होता है तब तब वोट बैंक के स्वासथय और तुष्टीकरण माता की ओर विशेष ध्यान चला जाता है सेवा परिचर्या के करमकाडं सेक्युलर संप्रदाय के लोग करने लगते हैं, वैसे तो तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पापा को खुश रखने के लिए सेक्युलर संप्रदाय के अनुयायिओं में प्रतियोगिताएं चलती रहती हैं, क्योंकि सेक्युलर संप्रदाय वालों के लिए तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पिता की चुनाव के समय प्रसनता अनिवार्य है!
तुष्टीकरण माता की उपासना से वोट बैंक सुरक्षित रहता है, तुष्टीकरण माता के साधकों को धर्म, संस्कृति, नैतिकता, निष्पक्षता के त्याग का व्रत पूरी निष्ठा से अपनाना पड़ता है, और यदि इसके साधक को तुष्टीकरण माता की कृपा से सरकार बनाने का वरदान मिल गया तो देश के साधु संतो को झूठे मुकदमों में जेल के भीतर भेजना कर्तव्य होता है, उन्हें यातना देना आवश्यक होता है!
सेक्युलर खून जिनकी रगो में दौड़ रहा होता है वह तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पापा के अनन्य भक्त होते हैं, भारत में “पाकिस्तान जिंदाबाद ” का नारा यदि कोई लगाता है तो उनके कानों में विकार आ जाता है, इसलिए उन्हें सुनाई नहीं देता, लेकिन तुष्टीकरण माता के परम भक्त को यदि ‘जय श्री राम का जय कारा सुनाई दे जाय तो उनके कानों में सुनने की शक्ति तेज हो जाती है!
विकार यह पैदा होता है कि वह विक्षिप्त होकर श्री राम, श्री राम के अस्तित्व श्री राम के मंदिर का विरोध करने लगता है कि श्री राम काल्पनिक चरित्र है, लेकिन भारत विरोधी कोई नारा हो तो सेक्युलर प्रजाति का पुन:मम्मी तुष्टीकरण का भक्त, वोट बैंक पापा का सेवक ,बहरा हो जाता है, भारत के कथित लोकतंत्र में तुष्टीकरण माता की अपार महिमा है!
देश में कोई भी सेक्युलर नसल का इस बात को नही मानता कि तुष्टीकरण और वोट बैंक रूपी मम्मी पापा इस देश के लिए अभिशाप है, ये दोनों मम्मी पापा देश की महान विरासत शीतल और शान्तिदायक जल को सोख रहे हैँ, इसी न मानने के कारण सेक्युलर नेताओें की दशा पाकिस्तान जैसी दुर्दशा को प्राप्त हो गई और सेक्युलर दलों के कार्य कर्ताओं की दशा पाकिस्तान की जनता जैसी हो गई, जब से सेक्युलर प्राणी तुष्टीकरण मम्मी और वोट बैंक पापा पर फिदा हो गये, तब से उनके बहारों के दिन विदा हो गये! सपने आज भी हैं,सत्ता के लिए, मगर सपने कहां सच होते हैं, सेक्युलर दल शून्य में विचरण कर रहे हैँ, समाधि कैसे लगेगी क्योंकि देश के प्रति सेक्यूलर दलों का चित्त आज भी चंचल है, बस कामनाएं ही चंचल किशोरी की तरह मोह रही है!
तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पिता ने एक नेता को ९९सीटें दे दी,इस कृपा प्रसाद को ग्रहण कर वह नेता फूला नहीं समा रहा है, उसे पता नहीं कि साप सीढ़ी के खेल में जब कोई ९९पर पहुंचता है तब वह कितनी तेजी से नीचे आता है, फिर भी तुष्टीकरण माता और वोट बैंक पिता का कीर्तन जारी है, यह जानते हुए भी कि जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नही आते!
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