नई दिल्ली, 27 मई 2025, मंगलवार। भारत की मिठाइयों में एक नाम ऐसा है, जो स्वाद और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है—मैसूर पाक। लेकिन हाल ही में इस मिठाई का नाम बदलकर मैसूर श्री करने की कोशिश ने न केवल सुर्खियां बटोरीं, बल्कि एक भावनात्मक और ऐतिहासिक बहस को भी जन्म दे दिया। आखिर क्या है इस मिठाई का इतिहास? और क्यों इसके रचयिता काकासूर मडप्पा के वंशज इस बदलाव से नाराज़ हैं?
मैसूर पाक का जन्म: एक रसोई का प्रयोग
कहानी शुरू होती है मैसूर के शाही महल से, जहां 1902 से 1940 तक महाराजा नलवाड़ी कृष्णराज वोडेयार का शासन था। महाराजा न केवल एक दूरदर्शी शासक थे, बल्कि खाने के शौकीन भी थे। उनकी रसोई में नए-नए व्यंजनों का प्रयोग होता रहता था। इसी रसोई में काम करते थे काकासूर मडप्पा, एक रसोइया जिनकी रचनात्मकता ने इतिहास रच दिया।
एक दिन, जल्दबाजी में मडप्पा ने बेसन, शुद्ध घी और चाशनी को मिलाकर एक मिठाई बनाई। जब महाराजा ने इसका नाम पूछा, तो मडप्पा ने इसे ‘पाका’ कहा, जो कन्नड़ में चाशनी को दर्शाता है। लेकिन महाराजा को यह मिठाई इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे मैसूर पाक का नाम दे दिया। बस, यहीं से शुरू हुई एक ऐसी मिठाई की यात्रा, जो आज दक्षिण भारत की हर शादी, त्योहार और उत्सव की शान है।
मैसूर पाक की मिठास: स्वाद और परंपरा
मैसूर पाक बनाना कोई साधारण काम नहीं। यह मिठाई बेसन, घी और चाशनी के सटीक संतुलन का नतीजा है, जिसमें इलायची, गुलाब जल और शहद जैसे स्वाद मिलाकर इसे और भी खास बनाया जाता है। दक्षिण भारत में यह मिठाई शादियों, गोदभराई और त्योहारों का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत है, जो पांच पीढ़ियों से मडप्पा के परिवार द्वारा संजोई जा रही है।
मडप्पा के वंशज, एस. नटराज, बताते हैं कि उनके परिवार ने इस मिठाई को बनाए रखने के लिए न केवल मेहनत की, बल्कि इसे एक पहचान दी। उनके लिए मैसूर पाक सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि उनकी धरोहर और गर्व का प्रतीक है।
नाम बदलने का विवाद: मैसूर श्री क्यों?
हाल ही में, भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच जयपुर के कुछ मिठाई विक्रेताओं ने मैसूर पाक का नाम बदलकर मैसूर श्री करने का फैसला किया। उनका तर्क था कि ‘पाक’ शब्द को पाकिस्तान से जोड़कर गलत समझा जा सकता है। सोशल मीडिया पर इस बदलाव ने तूफान मचा दिया। कुछ लोगों ने इसे देशभक्ति का रंग दे दिया और सुझाव दिया कि इसे मैसूर भारत कहा जाए। लेकिन इस बदलाव ने मडप्पा के वंशजों का दिल तोड़ दिया।
एस. नटराज का कहना है, “कन्नड़ में ‘पाक’ का मतलब चाशनी है, इसका पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं। यह हमारी विरासत है, और कोई भी इसे बदलने का हकदार नहीं है।” उनके लिए यह मिठाई सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि उनकी पांच पीढ़ियों की मेहनत और मैसूर के शाही इतिहास का हिस्सा है।