26 मई 2025, सोमवार को वट सावित्री व्रत का पावन पर्व मनाया जाएगा। यह विशेष दिन सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जब वे अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और संतान सुख की कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन बरगद के पेड़ (वटवृक्ष) की पूजा का विशेष महत्व है, जहां महिलाएं पेड़ की परिक्रमा करते हुए सात बार कच्चा सूत लपेटती हैं। आइए, जानते हैं इस परंपरा के पीछे के गहरे अर्थ और इस पर्व की महिमा।
वट सावित्री व्रत: एक पवित्र परंपरा
हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व पति-पत्नी के अटूट रिश्ते और दांपत्य जीवन की खुशहाली का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और वटवृक्ष की पूजा के लिए सज-धजकर तैयार होती हैं। बरगद का पेड़, जो दीर्घायु और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है, इस पूजा का केंद्र होता है।
7 बार कच्चा सूत बांधने का रहस्य
वट सावित्री व्रत की सबसे खास परंपरा है वटवृक्ष की परिक्रमा करते हुए सात बार कच्चा सूत लपेटना। इसके पीछे धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएं गहरे अर्थ लिए हुए हैं:
सप्तपदी की स्मृति: हिन्दू विवाह में सात फेरे सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन होते हैं। ठीक उसी तरह, सात बार सूत लपेटना पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती और सात जन्मों की एकता का प्रतीक है। यह प्रथा वैवाहिक बंधन को और भी गहरा बनाती है।
सप्त लोकों का प्रतीक: सात परिक्रमाएं सात लोकों—भू, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः और सत्य—का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह जीवन के हर क्षेत्र में सुख, शांति और समृद्धि की कामना को दर्शाता है।
रक्षा का सूत्र: कच्चा सूत एक रक्षा कवच की तरह कार्य करता है। यह नकारात्मक ऊर्जा से बचाव करता है और दांपत्य जीवन को हर बाधा से सुरक्षित रखता है।
सावित्री-सत्यवान की कथा से प्रेरणा: यह परंपरा सावित्री की उस अद्भुत तपस्या और दृढ़ संकल्प को याद करती है, जिसके बल पर उन्होंने यमराज से अपने पति सत्यवान को पुनर्जनम दिलवाया। सात बार सूत बांधना सावित्री के अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक है।
सावित्री-सत्यवान की कथा: प्रेम और तपस्या की मिसाल
वट सावित्री व्रत की कथा सावित्री और सत्यवान के अटूट प्रेम और विश्वास से जुड़ी है। सावित्री ने अपनी भक्ति, बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से यमराज को प्रसन्न कर अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस ला खड़ा किया। यह कथा न केवल महिलाओं को अपने पति के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती है, बल्कि विश्वास और तप की शक्ति को भी उजागर करती है।
सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व
वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक जीवंत हिस्सा है। सात बार कच्चा सूत बांधना जीवन के सात रंगों को एक सूत्र में पिरोने का प्रतीक है। यह परंपरा आज भी लाखों महिलाओं के विश्वास और आस्था का आधार है, जो अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत पूरे श्रद्धा-भाव से रखती हैं।