नई दिल्ली, 25 मई 2025, रविवार। हरियाणा के भाजपा राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने पहलगाम आतंकी हमले को लेकर एक विवादित बयान दिया है, जिसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। भिवानी में शनिवार को एक कार्यक्रम में पहुंचे जांगड़ा ने कहा कि अगर हमले के दौरान मौजूद सैलानी महिलाएं “झांसी की रानी” या “अहिल्याबाई होल्कर” की तरह आतंकियों का मुकाबला करतीं, तो कम लोग मरते। उनके इस बयान ने न केवल हमले की पीड़ित महिलाओं के जज्बे पर सवाल उठाए, बल्कि कई अन्य मुद्दों पर भी तीखी टिप्पणियां कीं।
“महिलाओं में वीरांगना का भाव नहीं था”
जांगड़ा ने कहा, “जिन महिलाओं ने अपना सुहाग खोया, अगर उन्होंने अहिल्याबाई होल्कर का इतिहास पढ़ा होता, तो उनके सामने उनके पति को कोई आतंकी नहीं मार सकता था। उनमें वीरांगना का जोश और जज्बा नहीं था, इसलिए 26 लोग गोली का शिकार बने।” उन्होंने दावा किया कि अगर यात्रियों के पास लाठी-डंडे भी होते और वे आतंकियों पर चारों तरफ से टूट पड़ते, तो शायद केवल 5-6 लोगों की जान जाती, और तीनों आतंकी भी मारे जाते। सांसद ने हमले के आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी के सवाल को टालते हुए कहा कि भले ही आरोपी न पकड़े गए हों, सेना ने आतंकियों के ठिकानों और उनके आकाओं को “नेस्तनाबूद” कर दिया है।
अग्निवीर योजना का जिक्र, राहुल गांधी पर निशाना
जांगड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अग्निवीर योजना की तारीफ करते हुए कहा कि यह योजना युवाओं में वीरता की भावना जगाने के लिए शुरू की गई है। उन्होंने दावा किया कि अगर यात्रियों को ऐसी ट्रेनिंग मिली होती, तो तीन आतंकवादी 26 लोगों को नहीं मार पाते। साथ ही, उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा, “राहुल विदेश जाकर अपने देश के बारे में गलत बोलते हैं, इसलिए उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता।” हालांकि, उन्होंने कांग्रेस नेता शशि थरूर की तारीफ की और कहा कि थरूर “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान की असलियत दुनिया के सामने ला रहे हैं।
दीपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस विधायक पर भी टिप्पणी
जांगड़ा ने रोहतक में कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा और डीसी के बीच प्रोटोकॉल को लेकर हुई बहस पर भी निशाना साधा। उन्होंने दीपेंद्र को “अहंकारी” बताते हुए कहा कि अगर वे समय पर मीटिंग में पहुंचे होते, तो डीसी उनका स्वागत जरूर करते। इसके अलावा, कुरुक्षेत्र में कांग्रेस विधायक अशोक अरोड़ा के साथ भाजपा पार्षद की मारपीट की घटना को गलत ठहराया, लेकिन साथ ही अरोड़ा की इस बात का समर्थन किया कि बैठकों में प्रतिनिधियों को नहीं आना चाहिए।
बयान पर विवाद, उठ रहे सवाल
जांगड़ा का यह बयान कई मायनों में विवादास्पद है। आतंकी हमले जैसी गंभीर घटना में पीड़ित महिलाओं के जज्बे पर सवाल उठाना और उन्हें “वीरांगना” बनने की सलाह देना संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। साथ ही, उनकी टिप्पणी कि लाठी-डंडों से आतंकियों का मुकाबला हो सकता था, ने भी कई सवाल खड़े किए हैं। क्या आम नागरिकों से ऐसी उम्मीद करना उचित है? क्या यह बयान पीड़ितों के दर्द को कम आंकने की कोशिश है?
यह बयान न केवल सियासी बहस को हवा देगा, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या जनप्रतिनिधियों को ऐसी संवेदनशील घटनाओं पर बोलते समय अधिक सावधानी बरतनी चाहिए।