नई दिल्ली, 19 मई 2025, सोमवार। मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन ‘भारत फर्स्ट’ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 का समर्थन करते हुए इसे पारदर्शिता, जवाबदेही और जनहित की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। संगठन ने कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों जैसे मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों और दरगाहों के प्रबंधन में व्याप्त अनियमितताओं, मुकदमों और कुप्रबंधन को दूर करने के लिए व्यवस्थित समाधान प्रस्तुत करता है।

‘भारत फर्स्ट’ के राष्ट्रीय संयोजक और अधिवक्ता शीराज़ क़ुरैशी ने कहा कि कुछ मुस्लिम नेता इस विधेयक को लेकर समुदाय को गुमराह कर रहे हैं, दावा करते हुए कि सरकार वक्फ की जमीन हड़पना चाहती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धारा 91-ख में प्रावधान है कि वक्फ संपत्ति का अधिग्रहण केवल बोर्ड की मंजूरी और बाजार मूल्य पर वक्फ विकास कोष में राशि जमा होने पर ही संभव है, और मालिकाना हक राज्य को हस्तांतरित नहीं होता। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह विधेयक ऑडिट, डिजिटलीकरण और सीईओ की योग्यता जैसे प्रशासनिक सुधारों पर केंद्रित है, जो नमाज़, इमामत या मजहबी रस्मों में हस्तक्षेप नहीं करता। सुप्रीम कोर्ट ने भी 15 मई 2025 की सुनवाई में इस बात को रेखांकित किया कि वह केवल अंतरिम राहत पर विचार कर रहा है, न कि कानून के निलंबन पर।

क़ुरैशी ने मुस्लिम पहचान को खतरे के दावों को हास्यास्पद करार देते हुए कहा कि तुर्किये, मलेशिया और खाड़ी देशों में भी ऑनलाइन रजिस्टर और सामाजिक कल्याण कोटे जैसे प्रावधान लागू हैं, फिर भी वहां मुस्लिम पहचान को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने विधेयक के विरोध को राजनीतिक लाभ के लिए भावनाएं भड़काने की कोशिश बताया और कहा कि बोर्ड में पेशेवर भर्ती से उन लोगों की पकड़ कमजोर होगी जो बिना योग्यता के पदों पर काबिज हैं।

नए कानून में डिजिटल प्लेटफॉर्म, कैग ऑडिट और 50% सामाजिक व्यय जैसे प्रावधान शामिल हैं। ‘बेनामी’ प्रविष्टियों पर रोक लगेगी और आम नागरिक संपत्ति का सत्यापन कर सकेंगे। 100 करोड़ से अधिक आय वाले वक्फों का वार्षिक ऑडिट अब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा होगा। साथ ही, वक्फ की 50% आय को शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला स्वरोजगार और वजीफों जैसे सामुदायिक कार्यों पर खर्च करना अनिवार्य होगा, जिसके उल्लंघन पर दोगुना जुर्माना लगेगा।

विधेयक में ‘अमानत’ पुनर्स्थापना का प्रावधान भी है, जिसके तहत धार्मिक स्वरूप बदली गई संपत्ति को 30 दिनों में मूल रूप में लौटाना होगा, अन्यथा जिला मजिस्ट्रेट हस्तक्षेप करेगा। संगठन ने कहा कि यह कानून अनुच्छेद 25-30 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य की निगरानी को संतुलित करता है, जिससे भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन कम होगा। तुर्किये, मलेशिया और सऊदी अरब के औकाफ मॉडल भी ऐसी ही पारदर्शी व्यवस्थाओं का समर्थन करते हैं।

‘भारत फर्स्ट’ ने अपील की कि लोग इस विधेयक के प्रावधानों को समझें और गलत सूचनाओं से बचें, क्योंकि यह वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और समुदाय के कल्याण के लिए जरूरी है।