हसमुख उवाच
छज्जूराम के दर्शन हमें बहुत दिनों के बाद हुए, चेहरे पर वही बनावटी गंभीरता, होंठों पर पहले जैसी कूटनीतिक मुस्कान! अंतर इतना ही था कि उनकी कनपटी के बालों पर सफेदी आ गई थी, औसत कद,सांवला रंग, झक्क सफेद धोती कुर्ते की वेशभूषा, पहले जैसी ही थी!नमस्कार और कुशल क्षेम के पश्चात हमने पूछा“मान्यवर,बड़े दिनों के बाद नजर आए, क्या चल रहा है? छज्जूराम ने कहा “पत्रकार जी,मै आपके पड़ोस में काफी समय रहा आपको पता होगा कि मेरा सपना बाहुबली बनने का था,दूसरी जगह शिफ्ट होने के बाद मैने अपने इस सपने को साकार करने के लिए प्रयास शुरू किया, कयी चमचों की टीम भी तैयार हो गई, वैध अवैघ हथियारों से लैस मैने कयी आदमी भी जुटा लिए थे,लेकिन?
लेकिन क्या मान्यवर? हमने उत्सुकता व्यक्त की
“लेकिन कानून के दुरुपयोग का मुझे शिकार होना पड़ा,
छज्जूराम ने गहरी शवांस छोड़ते हुए कहा!
आखिर आपने कानून का क्या दुरुपयोग कर दिया, हमारा सवाल था!
“मैने नही किया, छज्जूराम ने कहा ” जिन्होंने मुझे एस सी एस टी एक्ट में फंसाया उन्होंने किया, मैने तो एक एयरफोर्स महिला आफीसर जाति ही भाषण में बताई थी,बस,इसी को लेकर मुझ पर केस हो गया और चार साल की जेल हो गई! “ओह, तो इसलिए आप इतने दिन नजर नहीं आ सके,आपके जेल जाने का मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ! छज्जूराम ने हमारी बात पर ठहाका लगाते हुए कहा ” पत्रकार जी,जेल जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है, आप भी अफसोस मत कीजिए!
क्या मतलब? हमने हैरानी से पूछा!
“आपको तो पता ही हैं कि मेरे पिता जी ट्रेवल एजेन्सी चलाते थे,वो देश दुनिया की खूब सैर कर चुके थे, मै भी सब स्थानों पर घूम चुका था,बस जेल ही ऐसी जगह थी जहां मै नहीं जा सका था,सो अब वहां भी घूम आया!”
छज्जूराम ने मुस्कराते हुए कहा!
“छज्जूराम जी,अब आगे का क्या सोचा है?
हमारे पूछने पर छज्जूराम गहरी शवांस लेते हुए बोले_” बाहुबली बनने का सपना तो अब भी मेरी आखों के सामने तैरता रहता है, अपने इसी सपने को भविष्य में साकार करने का विचार है! “कहते कहते छज्जूराम की आंखों में एक चमक उभरी और होंठों पर कूटनीतिक मुस्कान और गहरी हो गई!
” तो अपने इस सपने को आप कैसे पूरा करेंगे? “
“जातीय गिरोह बना कर! “
“क्या? मतलब ये कि आप समाज को जातियों में बांटेगे? “
“पत्रकार जी, हम पर यह मिथ्या आरोप मत लगाइए,समाज तो अंग्रेजो की कृपा से बंटा बटाया पहले से ही है, हम तो केवल उनके बोए हुए बीजों की उगी फसल ही काट रहे हैँ! “
“लेकिन ये दिव्य ज्ञान आपको मिला किससे? ” हमने पूछा!
“जेल में रह कर!” छज्जूराम नेगंभीर स्वर में कहा!
जेल में रह कर? वो कैसे?
जब मै जेल में गया तब वहां मेरी मुलाकात कयी सामाजिक गिद्धों और ऐसे लोगो से भी हुई जो जुर्म के प्रोफेसर थे, उनसे ही मुझे यह अदभुत ज्ञान प्राप्त हुआ “!छज्जूराम ने खिलखिलाते हुए कहा!
” लेकिन छज्जूराम जी, हमने समझाते हुए कहा “ये जात पात की बातें देश हित में नहीं होती हैं! ” “लेकिन हम जैसों के हित में तो होतीं हैं ” छज्जूराम तुंरत बोले“इतने जातिवादी नेता देश में हैं, हर कोई अपनी जाति का झंडा उठाकर पद,प्रतिष्ठा, पैसा और सत्ता की साधना करता है! “
“जिसका जैसा स्तर है वह वैसा ही करता है! “
“बेशक!छज्जूराम ने कहा _” पत्रकार जी, अगर हम नहीं करेंगे तो वो यह सब करेंगे, वे सब जाति के प्लेयर बनकर जाति के कार्ड खेलेंगे, बड़े सयाने लोग हैं वो,उन्हें हाशिए पर लाने के लिए, उन्हें सता में आने से रोकने के लिए हमें भी जातियों के समीकरण बैठाने की मूरखता करनी ही पड़ेगी”
मूर्खता? “मै समझा नहीं!
हमारी बात सुन कर छज्जूराम हौले से मुस्कराते हुए बोले “पत्रकार जी, मै जानता हूं कि जातिवाद देश के लिए घातक है, ऊंच नीच, जात पात देश के लिए ठीक नहीं है,परंतु जाति कोई बुरी नहीं होती, उसके लोग बुरे होते है, और केवल जाति के आधार पर सत्ता भी पाना आसान नहीं होता, ऐसे जातिवादी नारों से बनी सत्ताएं सथाई नही हो सकतीं,वह सब एक दिन हाशिए पर चली जाती है, इस देश में सबको साथ लिए बिना किसी का गुजारा नहीं है! “लेकिन छज्जूराम जी, आप तो बाहुबली बनने —? ” हां पत्रकार जी, छज्जूराम ठहाका लगाते हुए बोले “मै बाहुबली बनना चाहता हूं, मेरा सपना है जाति का गिरोह बनाना,लेकिन मै विदेशी फंडिग सेपलने वाला बाहुबली मै नहीं बनना चाहता, ऐसे बाहुबलियों की अक्ल तेल लेने गयी हुई होती हैं, क्योंकि वे आग को कपड़े में लपेटने की कोशिश करते हैं! “
“आपकी बातें तो मेरी समझ से परे हैं छज्जूराम जी! ” मेरी बात सुन कर छज्जूराम जी ने फिर जोर का ठहाका लगाते हुए कहा “पत्रकार जी, हमारा देश हमेशा से राम भरोसे रहा है, जो नास्तिक है, वो भी यहाँ आस्तिक बन जाता है क्योंकि देश में हर काम देश विरोधी हो रहा है, भ्रष्टाचरण खूब फैल गया है, सिकुड़ता देश ही सही,पर देश आज भी बचा हुआ है,कहीं और ईश्वर हो या न हो पर हमारे देश में ईश्वर अवश्य है,जो राम विरोधी थे वो हाशिए पर हैँ, जो रामपंथी थे वो सत्ता में हैँ, हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या! “
इतना कहते हुए छज्जूराम जी नमस्ते करते हुए अपनी चिर परिचित मुस्कान लिए आगे बढ़ गये! मै तो अपनी खोपड़ी खुजाते उन्हें जाते देखता रह गया!
समाप्त