नई दिल्ली, 15 मई 2025, गुरुवार। चमोली के सुदूर माणा गांव में बसा केशव प्रयाग, बारह वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर आध्यात्मिक उत्साह से सराबोर है। अलकनंदा और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर पुष्कर कुंभ का भव्य आयोजन शुरू हो चुका है। यह धार्मिक महोत्सव न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने वाला एक जीवंत प्रतीक भी है।
12 वर्षों बाद जागा आध्यात्मिक उल्लास
पुष्कर कुंभ का आयोजन तब होता है, जब बृहस्पति ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश करता है। इस बार माणा गांव में यह पवित्र अवसर बारह साल बाद आया है, जिसने बदरीनाथ धाम और माणा गांव को तीर्थयात्रियों की आस्था से गुलजार कर दिया है। खास तौर पर दक्षिण भारत के वैष्णव मतावलंबी इस कुंभ में बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं, जो केशव प्रयाग के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन कर रहे हैं।

केशव प्रयाग: जहां रची गई थी महाभारत
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, केशव प्रयाग वह पवित्र स्थल है जहां महर्षि वेदव्यास ने तपस्या कर महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की थी। यह भी माना जाता है कि दक्षिण भारत के महान आचार्य रामानुजाचार्य और माध्वाचार्य ने यहीं मां सरस्वती से ज्ञान अर्जित किया। यही कारण है कि यह स्थान वैष्णव समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। श्रद्धालु यहां स्नान और पूजा-अर्चना कर अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को संजोते हैं।
जिला प्रशासन की पुख्ता व्यवस्था
पुष्कर कुंभ के सुचारु आयोजन के लिए जिला प्रशासन और पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जिलाधिकारी संदीप तिवारी के अनुसार, पैदल मार्गों का सुधारीकरण किया गया है और विभिन्न भाषाओं में साइन बोर्ड लगाए गए हैं। संगम तट पर एसडीआरएफ के जवान और पैदल मार्ग पर पुलिस की तैनाती श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है। तहसील प्रशासन को भी व्यवस्थाओं की नियमित निगरानी के निर्देश दिए गए हैं, ताकि तीर्थयात्रियों को किसी असुविधा का सामना न करना पड़े।

‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का प्रतीक
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस आयोजन को देश की एकता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “तीर्थ स्थल हमारी धार्मिक आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक एकजुटता के भी केंद्र हैं। पुष्कर कुंभ जैसे आयोजन उत्तर और दक्षिण भारत को एक सूत्र में बांधते हैं, जो ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को साकार करते हैं।”

आस्था और संस्कृति का अनुपम मेल
माणा गांव का पुष्कर कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता का उत्सव है। यह पवित्र स्थल, जहां नदियां मिलती हैं, वहां देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु भी एक-दूसरे के साथ आस्था के बंधन में बंधते हैं। जैसे ही केशव प्रयाग का जल श्रद्धालुओं के आध्यात्मिक विश्वास को पवित्र करता है, वैसे ही यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक धरोहर को और समृद्ध करता है।