वाराणसी, 13 मई 2025, मंगलवार। वाराणसी की हवाओं में जल्द ही एक बार फिर वही पुरानी, दमदार गूंज सुनाई देगी, जो कभी युद्धकाल में खतरे की घंटी हुआ करती थी। शहर के 200 साल पुराने कलेक्ट्रेट भवन ने एक ऐतिहासिक पल को गले लगाया है—1965 के भारत-पाक युद्ध का प्रतीक, ‘एयर रेड सायरन’, 60 साल बाद फिर से ज़िंदा हो उठा है।
युद्धकाल की गूंज, अब नए ज़माने में
1965 में जब भारत-पाक युद्ध की आग भड़की थी, तब वाराणसी में हवाई हमलों से बचाव के लिए 12 एयर रेड सायरन लगाए गए थे। कलेक्ट्रेट, चेतगंज के सिविल डिफेंस ऑफिस और 10 थानों में ये सायरन हर खतरे पर शहर को सतर्क करते थे। लेकिन 1971 के युद्ध के बाद ये सायरन खामोश हो गए। समय के साथ धूल और जंग ने इन्हें जकड़ लिया, और ये इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गए।
मॉक ड्रिल ने खोला राज
हाल ही में आतंकी खतरों और आपात स्थिति की तैयारियों के लिए जब मॉक ड्रिल हुई, तो सच्चाई सामने आई—शहर के सारे सायरन खराब पड़े थे। लेकिन वाराणसी ने हार नहीं मानी। एक अनुभवी मिस्त्री की मदद से कलेक्ट्रेट का सायरन फिर से चालू कर दिया गया। 440 वोल्ट और 5 एम्पियर की ताकत वाला यह सायरन 3 से 4 किलोमीटर तक अपनी तेज़ आवाज़ से अलर्ट देने में सक्षम है। एक बार शुरू होने पर यह 4-5 मिनट तक गूंजता रहता है, जो किसी भी आपात स्थिति में लोगों को सावधान करने के लिए काफी है।
इतिहास की आवाज़, भविष्य की सुरक्षा
यह सायरन सिर्फ़ एक मशीन नहीं, बल्कि वाराणसी के उस दौर की कहानी है, जब शहर ने युद्ध की विभीषिका देखी थी। अब, जब वैश्विक और स्थानीय स्तर पर सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ रही हैं, इस सायरन का दोबारा सक्रिय होना एक मज़बूत संदेश देता है—वाराणसी तैयार है।
ADM सिटी आलोक वर्मा ने बताया कि बाकी सायरनों को भी जल्द ठीक करने की योजना है। सिविल डिफेंस के ये सायरन फिर से शहर की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाएंगे, ताकि ज़रूरत पड़ने पर हर नागरिक को समय पर अलर्ट मिल सके।
गूंजेगी वो पुरानी आवाज़, अब और मज़बूती के साथ!
कलेक्ट्रेट के इस सायरन की गूंज न सिर्फ़ इतिहास को ज़िंदा करती है, बल्कि भविष्य के लिए एक आश्वासन भी देती है। वाराणसी, जो अपनी गंगा, घाटों और संस्कृति के लिए जाना जाता है, अब इस पुराने सायरन की आवाज़ के साथ अपनी सुरक्षा की नई कहानी लिखने को तैयार है।
“इतिहास की गूंज, भविष्य की पुकार—वाराणसी है तैयार!”