नई दिल्ली, 10 मई 2025, शनिवार: भारतीय रेलवे, देश की जीवन रेखा, आम दिनों में यात्रियों की सुविधा के लिए जानी जाती है, लेकिन जब बात देश की सुरक्षा और आपातकाल की आती है, तो रेलवेमैन अपनी जान की परवाह किए बिना हर चुनौती के लिए तैयार रहते हैं। ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी शिव गोपाल मिश्रा ने गर्व के साथ कहा, “रेलवे देश की दूसरी रक्षा पंक्ति है। रेलवेमैन ने हर बार विषम परिस्थितियों में अपनी वीरता और समर्पण साबित किया है।”
इतिहास इसका गवाह है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में जब चीनी सेना सीमा के भीतर घुस आई थी, तब पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के लुमडिंग डिविजन के कर्मचारियों ने अदम्य साहस दिखाया। सीमा पर जरूरी सामान लेकर गई ट्रेन फंस गई थी। जब स्टेशन मास्टर से पूछा गया कि सभी भाग गए, सेना पीछे हट गई, आप क्यों रुके हैं? उनका जवाब था, “हमारा साथी ट्रेन लेकर बॉर्डर गया है। जब तक वह वापस नहीं आता, हम नहीं जाएंगे।” यह रेलवेमैन की निष्ठा और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक है।
इसी तरह, 1965 के भारत-पाक युद्ध में गधरा रोड पर पाकिस्तानी सेना की बमबारी ने रेल पटरियों को तहस-नहस कर दिया था। लेकिन रेलवे के गैंगमैन डटकर मुकाबला करते रहे। बमबारी के बीच उन्होंने पटरियां दुरुस्त कीं और गोला-बारूद को सीमा तक पहुंचाया। अमृतसर और बाघा बॉर्डर पर भी रेलवेमैन ने रात-दिन काम कर देश की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।
आज भी रेलवेमैन का जज्बा वही है। शिव गोपाल मिश्रा कहते हैं, “संकट के समय हमें सिर्फ देश दिखता है। हम न काम के घंटे गिनते हैं, न ओवरटाइम मांगते हैं। गोला-बारूद, रसद या कोई भी जरूरी सामान—रेलवेमैन उसे सीमा तक पहुंचाने के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार हैं।” पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में एक ऑपरेशन के दौरान रेलवे ने 24 घंटे के भीतर देशभर से सैनिकों, हथियारों और रसद को सीमा तक पहुंचाकर अपनी ताकत दिखाई थी।
आज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में रेलवेमैन आतंकवाद और उसके समर्थकों के खिलाफ हर कदम पर देश के साथ खड़े हैं। मिश्रा का संदेश स्पष्ट है, “रेलवेमैन हर मोर्चे पर सबसे आगे रहकर देश के लिए बलिदान देने को तैयार हैं।” भारतीय रेलवे और उसके कर्मचारी न केवल देश की धड़कन हैं, बल्कि संकट की घड़ी में उसकी मजबूत ढाल भी।