नई दिल्ली, 6 मई 2025, मंगलवार। दिल्ली के प्रख्यात अधिवक्ता और बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु ने इतिहास रचते हुए वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन (डब्ल्यूजेए) के प्रतिष्ठित ‘मेडल ऑफ ऑनर’ पुरस्कार को अपने नाम किया। वे इस सम्मान को हासिल करने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता बन गए हैं। डोमिनिकन रिपब्लिक में 4 से 6 मई, 2025 तक आयोजित वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में 70 देशों के 1500 से अधिक विधि विशेषज्ञों और 300 वक्ताओं की उपस्थिति में भुवन को बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए दो दशकों से अधिक समय तक किए गए उनके असाधारण कानूनी और सामाजिक प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया।
कानून को बनाया बच्चों की ढाल
भुवन ऋभु ने दिल्ली हाई कोर्ट से अपनी वकालत की शुरुआत की और तब से अब तक उन्होंने बाल अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी हस्तक्षेप को एक सशक्त हथियार बनाया। पिछले दो दशकों में उनकी 60 से अधिक जनहित याचिकाओं ने भारत में बाल संरक्षण के परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। बाल विवाह, बाल तस्करी, बाल श्रम और बाल यौन शोषण जैसे गंभीर मुद्दों पर उनके नेतृत्व में आए ऐतिहासिक फैसलों ने न केवल नीतिगत बदलाव किए, बल्कि लाखों बच्चों के जीवन को सुरक्षित करने में भी मदद की। हाल ही में बाल विवाह और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ उनकी याचिकाओं पर आए फैसले इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुए हैं।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन: वैश्विक आंदोलन का सूत्रपात
भुवन ऋभु ने बच्चों की सुरक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर सक्रिय नागरिक समाज संगठनों के सबसे बड़े नेटवर्क ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ (जेआरसी) की स्थापना की। यह नेटवर्क कानूनी और जमीनी स्तर पर बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक सशक्त मंच बन चुका है। उनकी किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू एंड चाइल्ड मैरेज’ में प्रस्तुत बाल विवाह उन्मूलन की रणनीति को सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में अपने दिशानिर्देशों में व्यापक मार्गदर्शिका के रूप में मान्यता दी।
वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन: एक गौरवशाली परंपरा
1963 में स्थापित वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन दुनिया का सबसे पुराना और प्रभावशाली विधिक संगठन है, जिसने विंस्टन चर्चिल, नेल्सन मंडेला, रूथ बेडर गिन्सबर्ग और स्पेन के राजा फेलिप षष्टम् जैसी विश्व-प्रसिद्ध हस्तियों को सम्मानित किया है। इस संगठन ने भुवन ऋभु के बच्चों और यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय की अथक लड़ाई को पहचानते हुए उन्हें यह सम्मान प्रदान किया। पुरस्कार ग्रहण करते हुए भुवन ने कहा, “न्याय की लड़ाई में बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए। कानून उनकी ढाल और न्याय उनका अधिकार होना चाहिए।”
ऐतिहासिक फैसलों के सूत्रधार
भुवन ऋभु की याचिकाओं के परिणामस्वरूप आए कई फैसलों ने भारत में बाल संरक्षण की दिशा को नया आयाम दिया। 2011 में उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मानव तस्करी को संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल के अनुरूप परिभाषित किया। 2013 में गुमशुदा बच्चों के मुद्दे पर आए फैसले ने इस समस्या से निपटने के लिए नीतिगत बदलावों को प्रेरित किया। इसके अलावा, ऑनलाइन और वास्तविक जीवन में बाल यौन शोषण के खिलाफ उनकी मुहिम ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री को देखने और डाउनलोड करने को अपराध घोषित करने जैसे कठोर कानूनी कदम उठाए।
बाल विवाह उन्मूलन की दिशा में अग्रणी
भुवन के नेतृत्व में भारत 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने की दिशा में निर्णायक कदम उठा रहा है। उनके वैश्विक आंदोलन ने न केवल भारत, बल्कि विश्व स्तर पर इस कुप्रथा के खिलाफ एक मजबूत लामबंदी को जन्म दिया है। डब्ल्यूजेए के अध्यक्ष जेवियर क्रेमाडेस ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा, “भुवन ऋभु का मानना है कि न्याय लोकतंत्र का सबसे मजबूत आधार है। उनके प्रयासों ने लाखों बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित करने के साथ-साथ एक ऐसा कानूनी ढांचा तैयार किया है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी सुरक्षा प्रदान करेगा।”
न्याय की राह पर एक प्रेरणा
दिल्ली में पले-बढ़े भुवन ऋभु ने अपने कानूनी और सामाजिक प्रयासों से न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मिसाल कायम की है। उनकी यह उपलब्धि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो न्याय और समानता के लिए संघर्ष कर रहा है। भुवन ऋभु का यह सम्मान न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित और बेहतर दुनिया बनाने के उनके मिशन का भी गौरव है।