वाराणसी, 28 अप्रैल 2025, सोमवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के हिन्दी विभाग में पीएचडी प्रवेश को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। छात्रों का गुस्सा विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उबल पड़ा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेतृत्व में दर्जनों छात्र कुलपति कार्यालय पहुंचे और केंद्रीय कार्यालय के मुख्य द्वार को बंद कर जोरदार नारेबाजी की। प्रदर्शनकारी छात्रों का आरोप है कि विश्वविद्यालय ने नियमों को ताक पर रखकर और बाहरी दबाव में आकर एक छात्रा को गलत तरीके से प्रवेश दिया, जबकि कमेटी की रिपोर्ट में भास्करादित्य त्रिपाठी को नियमानुसार प्रवेश के लिए उपयुक्त माना गया था।
क्या है विवाद की जड़?
विवाद की शुरुआत ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) प्रमाणपत्र के सत्यापन से हुई। भास्करादित्य त्रिपाठी का कहना है कि प्रवेश प्रक्रिया के दौरान ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र की वैधता को लेकर नियम स्पष्ट हैं। उनका दावा है कि एक छात्रा ने गलत सत्यापन के आधार पर ईडब्ल्यूएस श्रेणी में प्रवेश हासिल किया। 28 मार्च को विभाग ने इस गलती को स्वीकार करते हुए छात्रा को सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया था। इसके बाद 18 अप्रैल को विश्वविद्यालय की प्रवेश समिति (यूएसीबी) ने भी माना कि ईडब्ल्यूएस और जाति प्रमाणपत्र के लिए अंडरटेकिंग स्वीकार करने का कोई प्रावधान नहीं है। समिति ने भास्करादित्य को नियमानुसार प्रवेश देने की सिफारिश की। लेकिन छात्रों का आरोप है कि बाहरी संगठनों और कुछ शिक्षकों की मिलीभगत के चलते इस फैसले को पलट दिया गया।
मिलीभगत और धांधली के गंभीर आरोप
छात्रों ने हिन्दी विभाग के कुछ प्रोफेसरों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। प्रदर्शनकारी छात्र अभय सिंह ने कहा कि श्री प्रकाश शुक्ल, जो प्रवेश समिति के सदस्य नहीं हैं, ने पूरी प्रवेश प्रक्रिया को अपने हाथ में लेकर अपने चहेतों को फायदा पहुंचाया। उन्होंने विश्वविद्यालय पर पारदर्शिता की कमी का भी आरोप लगाया और कहा कि प्रशासन इस मामले से जुड़े दस्तावेज और नियमों की जानकारी देने से बच रहा है।
वहीं, भास्करादित्य त्रिपाठी ने बताया कि एक प्रोफेसर ने छात्रा को बुलाकर बैक डेट में आवेदन लिखवाया और उसका ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र स्वीकार कर लिया। उन्होंने इसे नियमों का खुला उल्लंघन करार देते हुए कहा कि इस मिलीभगत के कारण उनका प्रवेश रुका हुआ है। भास्करादित्य ने विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
छात्रों का आक्रोश, पुलिस तैनात
छात्रों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस और पीएसी की तैनाती की। कुलपति आवास के बाहर धरने पर बैठे छात्रों ने नारेबाजी के जरिए अपनी मांगों को बुलंद किया। उनका कहना है कि जब तक नियमों के अनुसार प्रवेश प्रक्रिया पूरी नहीं होगी, वे पीछे नहीं हटेंगे।
क्या होगा आगे?
यह विवाद न केवल बीएचयू की प्रवेश प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की जवाबदेही पर भी उंगली उठाता है। छात्रों का कहना है कि नियमों की अनदेखी और मिलीभगत के खिलाफ उनकी लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक न्याय नहीं मिलता। दूसरी ओर, विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले पर चुप्पी साधे हुए है। क्या यह विवाद एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है, या फिर यह केवल एक और अनसुलझा मुद्दा बनकर रह जाएगा? यह तो वक्त ही बताएगा।