वाराणसी, 27 अप्रैल 2025, रविवार। नफरत और विभाजन की ठंडी हवाओं के बीच, जहां हिंदू-मुस्लिम का भेद मन को बांटता है, काशी की पावन धरती पर एक ऐसी मां की कहानी उभर रही है, जो प्रेम और शिक्षा की मशाल जलाए चल रही है। यह कहानी है सुंदरपुर की प्रतिभा सिंह की, जिन्होंने अपनी मां के नाम पर उर्मिला देवी मेमोरियल सोसायटी की स्थापना की और समाज के सबसे वंचित बच्चों के लिए शिक्षा का द्वार खोला। लेकिन इस कहानी की असली नायिका है माही, एक ऐसी बेटी जिसने सड़कों पर भीख मांगने से लेकर केंद्रीय विद्यालय बीएचयू में दाखिला पाने तक का अद्भुत सफर तय किया।
काशी, जहां ज्ञान की गंगा बहती है, वहां माही जैसी बच्ची का केंद्रीय विद्यालय बीएचयू में दाखिला कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। इस प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश के लिए कठिन परीक्षा को पार करना पड़ता है, और माही ने यह कर दिखाया। चार साल पहले तक माही के हाथ में कटोरा था, और उसका बचपन गंगा घाटों और मंदिरों के बाहर भीख मांगने में बीतता था। लेकिन प्रतिभा सिंह ने माही के हाथों से कटोरा छीनकर किताब, कॉपी और कलम थमा दी। यह सिर्फ एक बच्ची की जिंदगी बदलने की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज की तस्वीर है, जहां इंसानियत और शिक्षा भेदभाव की दीवारों को तोड़ सकती है।
प्रतिभा सिंह की पाठशाला कोई साधारण स्कूल नहीं है। यह वह जगह है जहां हिंदू और मुस्लिम बच्चे एक साथ बैठकर न सिर्फ हिंदी, अंग्रेजी और विज्ञान सीखते हैं, बल्कि संस्कृत और वेदों का ज्ञान भी अर्जित करते हैं। प्रतिभा ने इन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ किताबें, ड्रेस और बैग भी दिए। लेकिन यह राह आसान नहीं थी। प्रतिभा को समाज, परिवार और यहां तक कि बच्चों के परिजनों के विरोध का सामना करना पड़ा। माही के परिवार ने भी शुरुआत में प्रतिभा का विरोध किया, लेकिन उनकी दृढ़ता और प्यार भरे समझाने ने आखिरकार सभी को झुका दिया।
माही की कहानी प्रतिभा के इस संघर्ष की सबसे बड़ी जीत है। चार साल की मेहनत और लगन के बाद माही ने न सिर्फ पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल की, बल्कि केंद्रीय विद्यालय बीएचयू की कठिन प्रवेश परीक्षा को पास कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। जब माही का दाखिला हुआ, प्रतिभा की पाठशाला में खुशी की लहर दौड़ गई। बच्चों ने माही को बधाई दी, और मिठाइयों से उसका मुंह मीठा कराया। यह पल सिर्फ माही का नहीं, बल्कि उन तमाम बच्चों का उत्सव था, जो प्रतिभा की छत्रछाया में अपने सपनों को पंख लगा रहे हैं।
प्रतिभा का सपना बड़ा है। वे चाहती हैं कि काशी की सड़कों पर एक भी बच्चा भीख न मांगे। हर बच्चे के हाथ में किताब हो, और हर बच्चा अपने भविष्य को नई दिशा दे सके। माही की उपलब्धि इस सपने का एक चमकता सितारा है, जो यह साबित करता है कि अगर इरादे पक्के हों और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी मंजिल असंभव नहीं।
यह कहानी न सिर्फ माही और प्रतिभा की है, बल्कि उस काशी की है, जो ज्ञान, प्रेम और एकता का प्रतीक है। माही का यह सफर हर उस बच्चे के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किल हालात में भी अपने सपनों को सच करने की हिम्मत रखता है। और प्रतिभा सिंह का यह प्रयास हमें सिखाता है कि शिक्षा और इंसानियत के सामने कोई भेदभाव टिक नहीं सकता।