लखनऊ, 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक अहम निर्णय लेते हुए धर्मार्थ कार्य निदेशालय को वाराणसी से लखनऊ स्थानांतरित करने का फैसला किया है। गुरुवार को कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को बाई सर्कुलेशन के जरिए हरी झंडी दे दी। यह कदम प्रशासनिक सुगमता और कार्यकुशलता को बढ़ाने की दिशा में उठाया गया है, जिससे विभागीय कार्यों में तेजी आएगी और कर्मचारियों की भागदौड़ कम होगी।
क्यों पड़ा शिफ्टिंग का फैसला?
धर्मार्थ कार्य निदेशालय की स्थापना चार साल पहले दिसंबर 2020 में हुई थी, जब योगी सरकार ने इसे वाराणसी में शुरू करने का निर्णय लिया था। लेकिन, तब से लेकर अब तक निदेशालय के अधिकारियों और कर्मचारियों को कागजी औपचारिकताओं, बैठकों और अन्य कार्यों के लिए वाराणसी और लखनऊ के बीच बार-बार यात्रा करनी पड़ रही थी। इस अनावश्यक दौड़धूप ने प्रशासनिक कार्यों में देरी और असुविधा को जन्म दिया। इसे देखते हुए सरकार ने निदेशालय को राजधानी लखनऊ में लाने का फैसला किया, जहां प्रशासनिक कार्यों का केंद्र होने के कारण सभी गतिविधियां अधिक सुचारु रूप से संचालित हो सकेंगी।
धर्मार्थ कार्य विभाग का बढ़ता दायरा
धर्मार्थ कार्य विभाग की नींव साल 1985 में रखी गई थी, लेकिन तब इसका दायरा काफी सीमित था। योगी सरकार के कार्यकाल में धार्मिक पर्यटन और आस्था केंद्रों के विकास पर विशेष जोर दिया गया, जिसके चलते विभाग का कद और जिम्मेदारियां दोनों बढ़ीं। धार्मिक स्थलों का विकास और रखरखाव, तीर्थ क्षेत्र विकास परिषदों का गठन, तीर्थ यात्राओं के लिए अनुदान जैसी नई योजनाओं ने विभाग के कामकाज को विस्तार दिया। इसी विस्तार को संभालने के लिए 2020 में धर्मार्थ कार्य निदेशालय का गठन किया गया, जिसमें दो संयुक्त निदेशक, लेखाधिकारी, कार्यालय अधीक्षक, स्टेनो, स्थापना सहायक, कंप्यूटर सहायक, अनुसेवक और ड्राइवर जैसे पद सृजित किए गए।