लखनऊ, 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार। कन्नौज के तिर्वा मेडिकल कॉलेज में गुरुवार को बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की स्मृति में आयोजित भाजपा का सम्मान समारोह उस वक्त विवादों में घिर गया, जब पार्टी के ही कार्यकर्ताओं ने अपने दलित मंत्री असीम अरुण को मंच से नारेबाजी कर भगा दिया। योगी सरकार में समाज कल्याण मंत्री और नौकरशाह से नेता बने असीम अरुण के संबोधन शुरू करते ही कुछ कार्यकर्ताओं ने “मुर्दाबाद-मुर्दाबाद” के नारे लगाए, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। पुलिस के हस्तक्षेप और धक्कामुक्की के बीच हंगामा बढ़ता गया, और अंततः मंत्री को कार्यक्रम छोड़कर जाना पड़ा।
प्रेम विवाद बना हंगामे की जड़
हंगामे की वजह एक प्रेम प्रसंग बताया जा रहा है। कुछ भाजपा कार्यकर्ता एक ओबीसी (लोधी राजपूत) युवती के मामले में नाराज थे, जो अपने दलित प्रेमी के साथ चली गई थी। पुलिस ने युवती को बरामद किया, लेकिन कोर्ट में युवती ने प्रेमी के साथ रहने और शादी की इच्छा जताई। दोनों बालिग होने के कारण कानून ने उनके फैसले का सम्मान किया। लेकिन कुछ कार्यकर्ता युवती को जबरन उसके परिजनों को सौंपने की मांग कर रहे थे और पुलिस पर सहयोग न करने का आरोप लगा रहे थे। इस मुद्दे ने अंबेडकर सम्मान जैसे गरिमामय मंच को सियासी रणक्षेत्र में बदल दिया।
मंच पर थीं तमाम हस्तियां, फिर भी बेकाबू हुआ माहौल
कार्यक्रम में जिले की प्रभारी मंत्री रजनी तिवारी, पूर्व सांसद सुब्रत पाठक, विधायक कैलाश राजपूत, भाजपा जिलाध्यक्ष वीर सिंह भदौरिया जैसे बड़े नेता मौजूद थे। सुब्रत पाठक के संबोधन के बाद असीम अरुण ने जैसे ही माइक संभाला, हंगामा शुरू हो गया। मंच से मंत्री ने शांति की अपील की और विवाद को नियमों के तहत सुलझाने का आश्वासन दिया, लेकिन कार्यकर्ता टस से मस नहीं हुए। अफरातफरी के बीच कुछ नेताओं ने माहौल संभालने की कोशिश की, मगर नाकाम रहे। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, हालांकि इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हुई है।
मंत्री का बयान: कानून का पालन जरूरी
घटना पर सफाई देते हुए मंत्री असीम अरुण ने कहा, “युवती और युवक दोनों बालिग हैं और साथ रहने को तैयार हैं। कोर्ट ने भी उनके बयान के आधार पर फैसला सुनाया। कानून में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। कुछ सजातीय कार्यकर्ताओं का हंगामा करना पूरी तरह गलत है।” उन्होंने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और इसे सामाजिक संकीर्णता से जोड़ा।
सियासी सवाल और सामाजिक संदेश
यह घटना न केवल भाजपा के आंतरिक मतभेदों को उजागर करती है, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर पार्टी की सोच पर भी सवाल उठाती है। एक तरफ दलित सशक्तिकरण का दावा करने वाली पार्टी के मंच पर दलित मंत्री का अपमान, दूसरी तरफ प्रेम विवाह जैसे निजी फैसले में हस्तक्षेप की मांग—यह विरोधाभास चर्चा का विषय बन गया है। क्या यह घटना सामाजिक रूढ़ियों और राजनीतिक अवसरवाद का टकराव है? या फिर यह महज एक स्थानीय विवाद का अतिरंजित रूप है? कन्नौज का यह प्रकरण निश्चित रूप से लंबे समय तक सियासी गलियारों में गूंजेगा।