नई दिल्ली, 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार। केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखा है। इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में सरकार ने स्पष्ट किया कि यह संशोधन न केवल संवैधानिक रूप से वैध है, बल्कि यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में बताया कि पिछले एक सदी से वक्फ संपत्तियों की मान्यता केवल पंजीकरण के आधार पर ही दी जाती है, न कि मौखिक दावों के आधार पर। यह संशोधन किसी भी व्यक्ति के वक्फ बनाने के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि इसका उद्देश्य प्रशासन को और अधिक सुचारू और समावेशी बनाना है। उदाहरण के लिए, वक्फ परिषद और औकाफ बोर्ड में 22 सदस्यों में से अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे, जो न केवल समावेशिता को बढ़ावा देगा, बल्कि प्रशासन में किसी भी तरह के हस्तक्षेप को रोकने में भी मदद करेगा।
केंद्र ने यह भी जोर दिया कि वक्फ कोई धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक वैधानिक निकाय है, और मुतवल्ली की भूमिका धर्मनिरपेक्ष है। इस कानून को संसद में व्यापक बहस और संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की सिफारिशों के आधार पर पारित किया गया। समिति ने 36 बैठकें आयोजित कीं, 97 लाख से अधिक हितधारकों के सुझावों को ध्यान में रखा और देश के दस प्रमुख शहरों में जाकर जनता की राय जानी। यह प्रक्रिया इस कानून की लोकतांत्रिक और समावेशी प्रकृति को दर्शाती है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह इस कानून के किसी भी प्रावधान पर अंतरिम रोक न लगाए। सरकार का कहना है कि यह संशोधन गलत तरीके से वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज सरकारी भूमि को राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर सुधारने का काम करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी भूमि को किसी धार्मिक समुदाय की संपत्ति के रूप में गलत तरीके से दावा न किया जाए।
वक्फ संशोधन कानून 2025 न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को और अधिक पारदर्शी बनाता है, बल्कि यह देश के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भावनाओं को भी प्रतिबिंबित करता है। यह कानून प्रशासनिक सुधारों और समावेशी शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत के विविधतापूर्ण समाज में सभी समुदायों के हितों को संतुलित करने का प्रयास करता है।