नई दिल्ली, 22 अप्रैल 2025, मंगलवार। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे अपनी एक विवादित टिप्पणी के चलते सुर्खियों में हैं। सुप्रीम कोर्ट और देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना पर उनकी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई है, बल्कि अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। अगले हफ्ते इस मामले पर सुनवाई होने वाली है, और दुबे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग तेज हो रही है। आइए, इस पूरे विवाद को करीब से समझते हैं।
क्या है पूरा मामला?
निशिकांत दुबे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई संजीव खन्ना पर तीखा हमला बोला था। उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। इतना ही नहीं, उन्होंने सीजेआई को देश में “गृह युद्ध” के लिए जिम्मेदार ठहराया। यह टिप्पणी तब आई, जब केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों को लागू न करने का सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था। अदालत ने इन प्रावधानों पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद दुबे का यह बयान सामने आया।
दुबे की इस टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखा और दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की। वकील का आरोप है कि दुबे की टिप्पणी “बेहद निंदनीय” थी और इसका उद्देश्य शीर्ष अदालत की गरिमा को कम करना था।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का रास्ता
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अगले हफ्ते सुनवाई के लिए सहमति जताई। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता वकील से पूछा कि क्या वे अवमानना याचिका दायर करना चाहते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दुबे की टिप्पणी के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने के लिए किसी विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
याचिकाकर्ता वकील ने कोर्ट को बताया कि दुबे की टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं। उन्होंने मांग की कि कम से कम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को दुबे के उस वीडियो को हटाने का निर्देश दिया जाए। वकील ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, भले ही अटॉर्नी जनरल को इसकी जानकारी दी गई हो।
भाजपा ने बनाई दूरी
दुबे की टिप्पणी से जहां विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा, वहीं भाजपा ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया। पार्टी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने स्पष्ट किया कि दुबे की टिप्पणी उनका निजी विचार है और यह पार्टी का रुख नहीं दर्शाता। नड्डा ने न्यायपालिका को लोकतंत्र का अभिन्न अंग बताते हुए इसका सम्मान करने की बात कही। साथ ही, उन्होंने पार्टी नेताओं को ऐसी टिप्पणियों से बचने का निर्देश दिया।
क्या होगा आगे?
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के सामने है, और अगले हफ्ते होने वाली सुनवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं। क्या निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू होगी? क्या उनकी टिप्पणी को लेकर कोई कड़ा कदम उठाया जाएगा? इन सवालों के जवाब कोर्ट के फैसले पर निर्भर करते हैं।
एक गंभीर सवाल
निशिकांत दुबे का यह विवाद एक बड़े सवाल को जन्म देता है- क्या जनप्रतिनिधियों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते समय संस्थानों की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थान की आलोचना स्वस्थ लोकतंत्र का हिस्सा हो सकती है, लेकिन जब यह आलोचना अपमानजनक हो जाती है, तो क्या इसे बर्दाश्त किया जाना चाहिए? यह मामला न केवल निशिकांत दुबे के लिए, बल्कि पूरे राजनीतिक वर्ग के लिए एक सबक हो सकता है। अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस विवाद को नया मोड़ दे सकता है। तब तक, यह मामला राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना रहेगा।