नई दिल्ली, 15 अप्रैल 2025, मंगलवार। आगरा, उत्तर प्रदेश का वह शहर जो अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और ताजमहल के लिए विश्वविख्यात है, इन दिनों एक अलग ही वजह से सुर्खियों में है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन और करणी सेना के बीच चल रहा तीखा विवाद न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रहा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द पर भी सवाल उठा रहा है। सुमन ने हाल ही में करणी सेना को खुली चेतावनी दी है, जिसमें उन्होंने कहा, “19 अप्रैल को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आगरा आ रहे हैं। मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं कि मैदान तैयार है- दो-दो हाथ होंगे।” इस बयान ने पहले से गरमाए माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया है।
विवाद की जड़: राणा सांगा और ऐतिहासिक बयान
यह पूरा मामला 21 मार्च 2025 को शुरू हुआ, जब रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में मेवाड़ के प्रसिद्ध राजपूत राजा राणा सांगा को लेकर एक विवादित बयान दिया। उन्होंने दावा किया कि “बाबर को भारत में राणा सांगा ने बुलाया था” और बीजेपी के इस कथन पर पलटवार किया कि “मुसलमानों में बाबर का DNA है।” सुमन ने तंज कसते हुए कहा, “अगर आप कहते हैं कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर है, तो हम कहेंगे कि हर मंदिर के नीचे बौद्ध मठ है। गड़े मुर्दे मत उखाड़ो, वरना भारी पड़ जाएगा।” इस बयान ने करणी सेना और राजपूत संगठनों को आक्रोशित कर दिया, क्योंकि राणा सांगा को राजपूत इतिहास में एक वीर योद्धा और राष्ट्रभक्त के रूप में सम्मान दिया जाता है।
सुमन के इस बयान के बाद करणी सेना ने तीखी प्रतिक्रिया दी। 26 मार्च 2025 को संगठन के कार्यकर्ताओं ने आगरा में सुमन के आवास पर प्रदर्शन किया, जिसमें तोड़फोड़ और पथराव की घटनाएं हुईं। इस दौरान कई पुलिसकर्मी घायल हुए, और पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज कीं। सुमन ने इस हमले को “पिछड़ों, दलितों और शोषितों पर हमला” करार देते हुए बीजेपी पर इसे प्रायोजित करने का आरोप लगाया।
करणी सेना की स्वाभिमान रैली और सुमन का अडिग रुख
12 अप्रैल 2025 को राणा सांगा की जयंती पर करणी सेना ने आगरा में ‘रक्त स्वाभिमान रैली’ का आयोजन किया। इस रैली में हजारों लोग शामिल हुए, और प्रदर्शनकारियों ने तलवारें और लाठियां लहराते हुए सुमन से माफी की मांग की। करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज शेखावत ने चेतावनी दी कि अगर सुमन के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई, तो वे उनके आवास की ओर कूच करेंगे। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की, जिसमें रैपिड एक्शन फोर्स, पीएसी, और सीसीटीवी निगरानी शामिल थी।
इसके बावजूद, सुमन अपने बयान पर अडिग रहे। उन्होंने कहा, “मैं माफी नहीं मांगूंगा। यह हिंसा का रास्ता अपनाने वालों के सामने झुकने का सवाल ही नहीं है। यह हमला मुझ पर नहीं, बल्कि सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) पर है।” सुमन ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह इस विवाद को हवा देकर महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान भटका रही है।
अखिलेश यादव का आगमन और सियासी रणनीति
इस पूरे विवाद में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने सांसद का खुला समर्थन किया है। उन्होंने 19 अप्रैल को आगरा आने का ऐलान किया, जहां वे सुमन और उनके परिवार से मुलाकात करेंगे। अखिलेश ने करणी सेना को “बीजेपी की फौज” करार देते हुए कहा, “यह सेना-वेना सब नकली है। अगर कोई हमारे सांसद या कार्यकर्ता का अपमान करेगा, तो समाजवादी सड़कों पर उतरकर जवाब देंगे।”
अखिलेश का यह कदम सियासी रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि सपा इस विवाद को दलित बनाम सवर्ण और सामाजिक न्याय के मुद्दे के रूप में पेश कर रही है, ताकि अपने कोर वोट बैंक को मजबूत किया जा सके। दूसरी ओर, बीजेपी और करणी सेना इसे हिंदू भावनाओं और राजपूत गौरव से जोड़कर देख रहे हैं।
ऐतिहासिक दावों की सत्यता
राणा सांगा और बाबर के संबंध को लेकर सुमन का दावा इतिहासकारों के बीच भी विवादास्पद है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को कमजोर करने के लिए बाबर से संपर्क किया था, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत नहीं है कि उन्होंने बाबर को भारत बुलाया। बाबरनामा और अन्य समकालीन स्रोतों में भी इसकी पुष्टि नहीं होती। राणा सांगा ने 1527 में खानवा की लड़ाई में बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा, जिसमें वे घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
सुमन का यह बयान कि “हर मंदिर के नीचे बौद्ध मठ है” भी ऐतिहासिक तथ्यों से ज्यादा एक राजनीतिक कटाक्ष लगता है। भारत में कई मंदिरों के स्थल पर बौद्ध स्थलों के अवशेष मिले हैं, जैसे कि सांची और अजंता, लेकिन इसे व्यापक रूप से लागू करना तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
इस विवाद ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या ऐतिहासिक मुद्दों को उठाकर सामाजिक तनाव पैदा करना उचित है? दूसरा, क्या सुमन का बयान सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है? और तीसरा, क्या यह विवाद सपा और बीजेपी के बीच एक नई सियासी जंग की शुरुआत है? सपा इस मामले को अपने पीडीए फॉर्मूले के जरिए दलित और पिछड़े वर्गों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के अवसर के रूप में देख रही है। वहीं, बीजेपी और करणी सेना इसे हिंदुत्व और राजपूत गौरव के मुद्दे से जोड़कर सवर्ण वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।
आगरा की गरिमा बचाने की चुनौती: रामजी लाल सुमन और करणी सेना के बीच विवाद
रामजी लाल सुमन और करणी सेना के बीच का यह विवाद केवल एक बयान तक सीमित नहीं है। यह ऐतिहासिक दावों, सामाजिक तनाव, और राजनीतिक रणनीति का एक जटिल मिश्रण है। 19 अप्रैल को अखिलेश यादव के आगरा दौरे के साथ यह मामला और गर्म होने की संभावना है। ऐसे में जरूरी है कि सभी पक्ष संयम बरतें और बातचीत के जरिए इस विवाद को सुलझाने की कोशिश करें, ताकि आगरा जैसे ऐतिहासिक शहर की शांति और सौहार्द बरकरार रहे।