नई दिल्ली, 14 अप्रैल 2025, सोमवार। पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद इन दिनों सुर्खियों में है, लेकिन वजह बेहद चिंताजनक है। हाल ही में हुई हिंसा ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को डराया, बल्कि राज्य और केंद्रीय जांच एजेंसियों को भी चौकन्ना कर दिया। सूत्रों की मानें तो इस अशांति के पीछे एक गहरी साजिश है, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और बांग्लादेशी आतंकी समूहों का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। आखिर क्या है इस हिंसा का सच? चलिए, इसे करीब से समझते हैं।
सुनियोजित साजिश का खुलासा
खुफिया एजेंसियों का कहना है कि मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा कोई अचानक भड़की घटना नहीं थी। इसके पीछे महीनों की प्लानिंग थी। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को हथियार बनाकर अराजकता फैलाने की कोशिश की गई। सूत्रों के मुताबिक, बांग्लादेश से सीमा पार कर आए युवा, जो ज्यादातर 18 साल से कम उम्र के हैं, इस साजिश का हिस्सा थे। इन्हें छात्रों के भेष में भारत लाया गया और मुर्शिदाबाद के सीमावर्ती इलाकों में बने कुछ अवैध मदरसों में ठहराया गया।
बंगाल की खुफिया एजेंसी का दावा है कि इन युवाओं को पहले से दिमागी तौर पर तैयार किया गया था। उन्हें बताया गया कि वक्फ कानून अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है। इस झूठ का सहारा लेकर उन्हें हिंसा के लिए उकसाया गया। हैरानी की बात यह है कि इनमें से कई युवा बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) से जुड़े हैं।
सीमा पार से घुसपैठ और ट्रेनिंग
सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में कैसे दाखिल हुए और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को इसकी भनक तक नहीं लगी? खुफिया सूत्रों का कहना है कि सुती, समशेरगंज, धूलियान और लालगोला जैसे इलाकों को खास तौर पर निशाना बनाया गया। इन क्षेत्रों में कुछ अनधिकृत मदरसों में चरणबद्ध तरीके से बैठकें हुईं, जहां पुलिस और सुरक्षा बलों पर हमले की योजना बनाई गई।
बताया जा रहा है कि इन साजिशकर्ताओं में 20 मौलवी भी शामिल हैं, जिन्होंने युवाओं को ट्रेनिंग दी। उनका मकसद था पुलिस को चारों तरफ से घेरकर उन पर हमला करना, ताकि इलाके में दहशत फैल जाए। रघुनाथगंज में हुई हिंसा इसका जीता-जागता सबूत है, जहां हमलावरों की संख्या पुलिस से कहीं ज्यादा थी।
बांग्लादेशी कनेक्शन और आईएसआई की भूमिका
हिंसा के तार बांग्लादेश से भी जुड़े हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद वहां लूटपाट, हत्या और पुलिस पर हमलों का जो पैटर्न देखा गया, वही सिलसिला मुर्शिदाबाद के समशेरगंज, सुती और धूलियान में दोहराया गया। खुफिया एजेंसियों को शक है कि जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन इस हिंसा को हवा दे रहे हैं।
स्थानीय पुलिस का कहना है कि हिंसा में शामिल ज्यादातर लोग बाहरी थे। उन्हें न तो स्थानीय लोग जानते थे और न ही इलाके के जनप्रतिनिधि। ये लोग प्रदर्शनों में सबसे आगे रहकर उत्पात मचाते थे। बीएसएफ की एक रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यह हिंसा बाहरी तत्वों द्वारा भड़काई गई थी, जिसमें कट्टरपंथी संगठनों की गहरी साजिश झलकती है।
सवाल और चुनौतियां
इस पूरे मामले ने कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, इतनी बड़ी साजिश को अंजाम देने के लिए घुसपैठिए इतनी आसानी से सीमा कैसे पार कर गए? दूसरा, क्या स्थानीय स्तर पर खुफिया तंत्र पूरी तरह नाकाम रहा? और तीसरा, क्या यह सिर्फ मुर्शिदाबाद तक सीमित है या बंगाल के दूसरे हिस्सों में भी ऐसी साजिशें पनप रही हैं?
सीमा पार नहीं, हमारे बीच छिपा है दुश्मन
मुर्शिदाबाद की हिंसा ने एक बार फिर भारत की आंतरिक सुरक्षा को लेकर चेतावनी दी है। अगर खुफिया एजेंसियों की बात सच है, तो यह सिर्फ एक इलाके की घटना नहीं, बल्कि राष्ट्र की स्थिरता को चुनौती देने की साजिश है। जरूरत है सख्त निगरानी, बेहतर समन्वय और त्वरित कार्रवाई की, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। यह वक्त है सतर्क रहने का, क्योंकि दुश्मन सीमा पार से नहीं, बल्कि हमारे बीच छिपकर वार कर रहा है।