लखनऊ, 12 अप्रैल 2025, शनिवार। लखनऊ के बक्शी तालाब थाना क्षेत्र में बसा मवई खनतारी गांव 12 अप्रैल 2025 को उस समय सुर्खियों में आ गया, जब ग्राम समाज की जमीन पर डॉ. भीमराव आंबेडकर की मूर्ति स्थापना को लेकर ग्रामीणों और पुलिस के बीच तीखी झड़प हो गई। रातों-रात लगाई गई इस मूर्ति ने गांव में तनाव की ऐसी आग भड़काई कि बात पथराव और हिंसा तक जा पहुंची। कई पुलिसकर्मी और ग्रामीण घायल हुए, और मामला इतना बिगड़ गया कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा। यह घटना न केवल एक गांव की उलझन को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता और प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर भी सवाल उठाती है।
विवाद की जड़: रातों-रात मूर्ति स्थापना
मवई खनतारी गांव में ग्राम समाज की जमीन पर बाबा साहब की मूर्ति स्थापित करने का मामला तब शुरू हुआ, जब कुछ लोगों ने बिना प्रशासनिक अनुमति के रातों-रात यह मूर्ति लगा दी। यह जमीन लंबे समय से गांव के साप्ताहिक हाट-बाजार और वैवाहिक आयोजनों जैसे सामुदायिक कार्यों के लिए उपयोग होती रही है। ग्रामीणों का एक बड़ा वर्ग इस कदम से नाराज हो गया, जिनका कहना था कि न तो उनकी राय ली गई और न ही प्रशासन से कोई अनुमति प्राप्त की गई।
तीन दिन पहले ग्राम प्रधान के प्रस्ताव पर मूर्ति स्थापित होने की बात सामने आई, जिसके बाद ग्रामीणों में असंतोष बढ़ता गया। सैकड़ों लोग एकत्रित होकर मूर्ति हटाने की मांग करने लगे। उनकी शिकायत थी कि यह कदम गांव की साझा जमीन के उपयोग को प्रभावित करेगा और बिना सहमति के लिया गया यह निर्णय उनकी भावनाओं का अपमान है।
पुलिस का हस्तक्षेप और भड़का तनाव
जैसे ही मूर्ति स्थापना की खबर प्रशासन तक पहुंची, बक्शी तालाब पुलिस हरकत में आई। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम मूर्ति हटाने के लिए गांव पहुंची, लेकिन वहां का माहौल पहले से ही गर्म था। सैकड़ों ग्रामीण, जिनमें महिलाएं, बुजुर्ग और युवा शामिल थे, मूर्ति के आसपास जमा हो गए। पुलिस ने ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की, लेकिन बात बिगड़ती चली गई।
अचानक भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। ईंट-पत्थर और लोहे की छड़ों से किए गए हमले में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। बक्शी तालाब थाने के दरोगा रामेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल जय प्रकाश, लाल मोहम्मद, और शेष मणि मिश्रा को गंभीर चोटें आईं। कुछ ग्रामीण भी इस झड़प में घायल हुए, जिनमें सावित्री, पूजा, कोमल, रूबी, और मुन्नी शामिल हैं। स्थिति इतनी बेकाबू हो गई कि पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा।
प्रशासन की कार्रवाई: भारी पुलिस बल की तैनाती
पथराव और हिंसा की खबर फैलते ही लखनऊ के कई थानों—बीकेटी, इटौंजा, महिगवां, और मड़ियांव—की पुलिस के साथ-साथ पीएसी और महिला पुलिस बल मौके पर पहुंचा। बक्शी तालाब के उपजिलाधिकारी सतीश चंद्र त्रिपाठी भी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए गांव में मौजूद रहे। पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए फ्लैग मार्च किया और ग्रामीणों से शांति बनाए रखने की अपील की।
प्रशासन का कहना है कि ग्राम समाज की जमीन पर बिना अनुमति मूर्ति स्थापित करना कानून का उल्लंघन है। पुलिस ने गांव के प्रधान प्रतिनिधि को हिरासत में लिया, क्योंकि मूर्ति स्थापना उनके प्रस्ताव पर हुई थी। प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया कि मूर्ति का अनावरण तभी संभव है, जब उचित अनुमति प्राप्त हो।
ग्रामीणों का पक्ष: आस्था और असंतोष
ग्रामीणों का एक वर्ग मूर्ति को अपनी आस्था से जोड़कर देख रहा है। उनका कहना है कि बाबा साहब की मूर्ति सामाजिक समानता और सम्मान का प्रतीक है, और इसे हटाने की कार्रवाई उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। वहीं, दूसरा पक्ष इस बात पर अड़ा है कि सामुदायिक जमीन का उपयोग बिना सहमति के नहीं बदला जा सकता। यह विवाद गांव में दो धड़ों के बीच तनाव का कारण बन गया है।
घटना के बाद सड़कों पर बिखरे पत्थर और ईंट के टुकड़े उस उथल-पुथल की गवाही दे रहे थे, जो कुछ ही घंटों में गांव की शांति को भंग कर गई। पहाड़पुर चौराहे पर सैकड़ों ग्रामीण धरने पर बैठ गए, और उनकी मांग थी कि उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाए।
सामाजिक संवेदनशीलता और प्रशासनिक चुनौती
मवई खनतारी की यह घटना एक बार फिर उन चुनौतियों को उजागर करती है, जो सामाजिक संवेदनशीलता और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के बीच संतुलन बनाने में सामने आती हैं। बाबा साहब की मूर्ति न केवल एक संरचना है, बल्कि लाखों लोगों की आस्था और सामाजिक न्याय का प्रतीक भी है। ऐसे में, बिना संवाद और सहमति के उठाए गए कदम अक्सर तनाव को जन्म देते हैं।
प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह कानून का पालन सुनिश्चित करे, साथ ही ग्रामीणों की भावनाओं का भी सम्मान करे। इस घटना ने यह भी दिखाया कि छोटे से गांव में भी असंतोष की चिंगारी कितनी तेजी से हिंसा में बदल सकती है।
आगे की राह: शांति और संवाद
फिलहाल, मवई खनतारी में तनाव कम होने के संकेत हैं, लेकिन स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है। पुलिस और प्रशासन गांव में शांति बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। ग्रामीणों से अपील की जा रही है कि वे कानून को अपने हाथ में न लें और अपनी बात संवाद के जरिए रखें।
यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि सामुदायिक निर्णयों में सभी पक्षों की सहमति कितनी जरूरी है। मवई खनतारी का यह विवाद केवल एक मूर्ति तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक एकता, प्रशासनिक पारदर्शिता, और आपसी समझ की जरूरत को रेखांकित करता है।
मवई खनतारी गांव में हुए इस बवाल ने न केवल स्थानीय स्तर पर चर्चा छेड़ी है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक सबक भी है। बाबा साहब की मूर्ति, जो समानता और न्याय का प्रतीक है, को विवाद का केंद्र बनने से रोकने के लिए संवाद और सहमति ही एकमात्र रास्ता है। प्रशासन, ग्रामीण, और सामाजिक संगठनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं भविष्य में न हों। मवई खनतारी की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि शांति और समझदारी से ही हर विवाद का हल निकाला जा सकता है।