N/A
Total Visitor
31.3 C
Delhi
Monday, June 30, 2025

नर्मदापुरम: 6 साल की मासूम को इंसाफ, रेप-हत्या के दोषी को फांसी, जज तबस्सुम खान की कविता ने छुआ दिल

नई दिल्ली, 12 अप्रैल 2025, शनिवार। मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले के सिवनी मालवा में एक 6 साल की बच्ची के साथ हुए जघन्य अपराध ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया था। लेकिन 11 अप्रैल, 2025 को प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश तबस्सुम खान ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। बच्ची के रेप और हत्या के दोषी अजय वडिवा को फांसी की सजा सुनाई गई, साथ ही 3000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। इस फैसले को और खास बनाया जज तबस्सुम खान की उस कविता ने, जिसमें उन्होंने मासूम की पीड़ा को शब्दों में पिरोया और समाज से सवाल किया। रिकॉर्ड 88 दिनों में सुनाए गए इस फैसले ने न केवल इंसाफ की मिसाल कायम की, बल्कि यह भी दिखाया कि न्याय व्यवस्था कितनी तत्परता से काम कर सकती है।

मामले की पृष्ठभूमि: एक दिल दहलाने वाली घटना

2 जनवरी, 2025 की रात को सिवनी मालवा के खाल खरदा गाँव में 6 साल की एक मासूम बच्ची उस समय अपने घर के पास खेल रही थी, जब अजय वडिवा ने उसका अपहरण कर लिया। आरोपी उसे पास की झाड़ियों में ले गया, जहाँ उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। जब बच्ची चिल्लाई और उसने विरोध किया, तो क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए अजय ने उसका मुँह दबाकर उसकी हत्या कर दी। इस घटना ने नर्मदापुरम ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में आक्रोश की लहर पैदा कर दी।

नर्मदापुरम पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार किया। पूछताछ में अजय ने अपना गुनाह कबूल कर लिया। अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में पुख्ता सबूत पेश किए, जिसमें डीएनए रिपोर्ट, फोरेंसिक साक्ष्य और गवाहों के बयान शामिल थे। इन साक्ष्यों ने सुनवाई को और मजबूत किया, जिसके आधार पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।

88 दिनों में इंसाफ: जज तबस्सुम खान की तत्परता

प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश तबस्सुम खान ने इस मामले को प्राथमिकता देते हुए मात्र 88 दिनों में सुनवाई पूरी की, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। यह न केवल न्यायिक प्रणाली की गति को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संवेदनशील मामलों में त्वरित कार्रवाई कितनी जरूरी है। जज तबस्सुम खान ने अपने फैसले में न केवल कानूनी दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी जगह दी।

उन्होंने बच्ची के परिवार को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति को कुछ हद तक सहारा मिल सके। इस फैसले ने समाज को यह संदेश दिया कि मासूमों के साथ अत्याचार करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

फैसले में कविता: “हां मैं हूं निर्भया”

जज तबस्सुम खान ने अपने फैसले को और मार्मिक बनाते हुए एक कविता लिखी, जिसने हर किसी का दिल छू लिया। उनकी कविता “हां मैं हूं निर्भया” बच्ची की पीड़ा और समाज से उसके सवाल को बयां करती है। कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

हां मैं हूं निर्भया,
हां फिर एक निर्भया।
एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूं।
जो नारी का अपमान करे,
क्या वो मर्द हो सकता है।
क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला,
वह मुझे मिल सकता है।

यह कविता न केवल उस मासूम की आवाज बनी, बल्कि उन तमाम निर्भयाओं की पुकार को भी सामने लाई, जो समाज में अन्याय का शिकार होती हैं। जज की इस कविता ने यह सवाल उठाया कि क्या इंसानियत को कुचलने वाले लोग वाकई मर्द कहलाने के हकदार हैं? यह कविता नर्मदापुरम के इस फैसले को ऐतिहासिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह फैसला भारतीय न्यायिक व्यवस्था के लिए एक मिसाल है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत दोषी को सजा सुनाई गई, जिसने यह साबित किया कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में कोई ढील नहीं बरती जाएगी। कोर्ट ने इस मामले को “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” श्रेणी में रखा, जिसके आधार पर फांसी की सजा दी गई।

सामाजिक स्तर पर इस फैसले ने लोगों में एक नई उम्मीद जगाई है। सोशल मीडिया पर लोग जज तबस्सुम खान की तारीफ कर रहे हैं और उनकी कविता को व्यापक रूप से साझा किया जा रहा है। कई लोगों ने इसे “न्याय की जीत” करार दिया, तो कुछ ने इसे समाज के लिए एक चेतावनी बताया कि बच्चों के साथ अत्याचार करने वालों को अब सख्त सजा मिलेगी।

पुलिस और अभियोजन की भूमिका

नर्मदापुरम पुलिस की त्वरित कार्रवाई और अभियोजन पक्ष की मजबूत पैरवी इस फैसले की नींव रही। पुलिस ने न केवल आरोपी को जल्दी गिरफ्तार किया, बल्कि साक्ष्यों को इस तरह संरक्षित किया कि कोर्ट में कोई सवाल ही नहीं उठा। डीएनए रिपोर्ट और फोरेंसिक सबूतों ने मामले को और पुख्ता किया। अभियोजन पक्ष ने 88 दिनों की सुनवाई में हर तथ्य को बारीकी से पेश किया, जिसके चलते दोषी को बचने का कोई मौका नहीं मिला।

नर्मदापुरम में दूसरी सजा: एक सख्त संदेश

गौरतलब है कि नर्मदापुरम जिले में पिछले 18 महीनों में यह दूसरा मौका है, जब रेप और हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई है। इससे पहले इटारसी कोर्ट ने एक 7 साल की बच्ची के साथ हुए अपराध के दोषी को 90 दिनों में फांसी की सजा दी थी। ये फैसले समाज को यह संदेश दे रहे हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराधों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

आगे की राह

यह फैसला भले ही एक मासूम को इंसाफ दिलाने में कामयाब रहा हो, लेकिन यह समाज के सामने कई सवाल भी छोड़ गया। आखिर क्यों बार-बार ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं? क्या समाज बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठा रहा है? जज तबस्सुम खान की कविता में उठाया गया सवाल—“क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता है?”—हर उस बच्ची की आवाज है, जो इस तरह के अपराधों का शिकार हो रही है।

नर्मदापुरम के इस फैसले ने न केवल एक मासूम को इंसाफ दिया, बल्कि समाज को यह विश्वास भी दिलाया कि न्यायिक व्यवस्था सही दिशा में काम कर रही है। जज तबस्सुम खान की तत्परता, उनकी कविता और इस रिकॉर्ड समय में सुनाया गया फैसला हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है। यह फैसला सिर्फ अजय वडिवा को सजा नहीं देता, बल्कि उन तमाम अपराधियों के लिए एक चेतावनी है, जो मासूमों को अपना शिकार बनाते हैं। “हां मैं हूं निर्भया” की यह पुकार समाज को जागरूक करने और बदलाव लाने का आह्वान है।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »