नई दिल्ली, 12 अप्रैल 2025, शनिवार। तमिलनाडु की सियासत में 11 अप्रैल, 2025 को एक नया अध्याय जुड़ गया, जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चेन्नई में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के बीच गठबंधन की औपचारिक घोषणा की। शाह ने साफ किया कि 2026 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन AIADMK महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी (ईपीएस) के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इस ऐलान ने न केवल तमिलनाडु की राजनीति में हलचल मचा दी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की रणनीति को और मजबूत करने का संदेश दिया।
गठबंधन की घोषणा: एक नई शुरुआत
चेन्नई में आयोजित एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमित शाह ने AIADMK नेता ई. पलानीस्वामी और तमिलनाडु BJP अध्यक्ष के. अन्नामलाई के साथ मंच साझा किया। शाह ने कहा, “AIADMK और BJP के नेताओं ने फैसला किया है कि आगामी तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में दोनों दल NDA के बैनर तले सभी सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। यह चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य स्तर पर ई. पलानीस्वामी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।” इस घोषणा ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया, जो पिछले कई हफ्तों से दोनों दलों के बीच गठबंधन की संभावनाओं को लेकर चल रही थीं।
शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि गठबंधन को लेकर AIADMK ने कोई शर्त या मांग नहीं रखी है। उन्होंने कहा, “हम AIADMK के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। यह गठबंधन NDA और AIADMK दोनों के लिए फायदेमंद होगा।” सीटों के बंटवारे और सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल के वितरण जैसे मुद्दों पर बाद में चर्चा करने की बात कही गई, जो इस गठबंधन की लचीली और सहयोगात्मक प्रकृति को दर्शाता है।
पृष्ठभूमि: उतार-चढ़ाव भरा रहा है BJP-AIADMK का रिश्ता
BJP और AIADMK का रिश्ता हमेशा से उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। दोनों दलों ने पहली बार 1998 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया था, जब जे. जयललिता के नेतृत्व में AIADMK ने BJP के साथ मिलकर तमिलनाडु की 39 में से 30 सीटें जीती थीं। हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा समय तक टिक नहीं सका और 1999 में AIADMK ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 2004 और 2021 के चुनावों में भी दोनों दल साथ आए, लेकिन हर बार परिणाम मिश्रित रहे।
2023 में दोनों दलों के बीच दरार तब गहरी हो गई, जब तमिलनाडु BJP अध्यक्ष के. अन्नामलाई के कुछ बयानों को AIADMK ने अपने नेताओं जयललिता और सी.एन. अन्नादुराई के खिलाफ अपमानजनक माना। नतीजतन, AIADMK ने NDA से नाता तोड़ लिया और 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, लेकिन कोई भी सीट नहीं जीत सका। इस असफलता ने दोनों दलों को यह अहसास कराया कि डीएमके के खिलाफ मजबूत चुनौती पेश करने के लिए एकजुट होना जरूरी है।
ई. पलानीस्वामी का नेतृत्व: गठबंधन का चेहरा
अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ किया कि तमिलनाडु में NDA का नेतृत्व ई. पलानीस्वामी करेंगे, जिसे कई लोग मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर देख रहे हैं। हालांकि, BJP ने इस पर आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन शाह के बयान ने इस संभावना को बल दिया है। पलानीस्वामी, जो जयललिता के निधन के बाद AIADMK के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरे, ने अपनी संगठनात्मक क्षमता और क्षेत्रीय प्रभाव से पार्टी को एकजुट रखा है। उनकी अगुआई में गठबंधन का यह फैसला AIADMK कार्यकर्ताओं में नया जोश भर सकता है।
शाह ने यह भी कहा कि AIADMK 1998 से NDA का हिस्सा रही है और प्रधानमंत्री मोदी ने जयललिता के साथ मिलकर काम किया है। उन्होंने जोर देकर कहा, “हमारा गठबंधन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है। मुझे पूरा भरोसा है कि NDA तमिलनाडु में बड़ी जीत हासिल करेगा और यहाँ NDA की सरकार बनेगी।”
गठबंधन का महत्व: डीएमके को चुनौती
तमिलनाडु की राजनीति में गठबंधन हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। वर्तमान में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में DMK नीत INDIA गठबंधन ने राज्य की सभी 39 सीटें जीत लीं, जबकि BJP और AIADMK खाली हाथ रहे। इस स्थिति ने दोनों दलों को एकजुट होने के लिए मजबूर किया, ताकि वे डीएमके के खिलाफ एकजुट विपक्ष के रूप में उभर सकें।
शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीएमके सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “आगामी चुनाव में लोग डीएमके की भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था की बदहाली और दलितों व महिलाओं पर अत्याचार के मुद्दों पर वोट करेंगे।” यह बयान NDA की रणनीति को दर्शाता है, जो डीएमके के खिलाफ भ्रष्टाचार और शासन की विफलता को प्रमुख मुद्दा बनाने की कोशिश करेगी।
क्या हैं चुनौतियाँ?
हालांकि गठबंधन की घोषणा से दोनों दलों में उत्साह है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी चुनौती दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बिठाना है। 2023 में टूटे गठबंधन के बाद दोनों पक्षों में कड़वाहट थी, खासकर अन्नामलाई के बयानों को लेकर। हालांकि, अन्नामलाई के राज्य अध्यक्ष पद से हटने और नैनार नागेंद्रन की नियुक्ति ने इस तनाव को कुछ हद तक कम किया है।
दूसरी चुनौती सीटों का बंटवारा है। तमिलनाडु की 234 विधानसभा सीटों पर दोनों दलों को अपने प्रभाव क्षेत्र और कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ध्यान में रखकर समझौता करना होगा। इसके अलावा, अभिनेता विजय की TVK और सीमन की NTK जैसी नई पार्टियाँ वोटों का बंटवारा कर सकती हैं, जो गठबंधन की राह को और मुश्किल बना सकता है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
इस गठबंधन ने तमिलनाडु की सियासत में कई समीकरण बदल दिए हैं। AIADMK के लिए यह गठबंधन अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका है, वहीं BJP के लिए यह दक्षिण भारत में अपनी पैठ बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है। सोशल मीडिया पर इस घोषणा को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कुछ लोगों ने इसे डीएमके के खिलाफ मजबूत विकल्प के रूप में देखा, तो कुछ ने इसे AIADMK की मजबूरी करार दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस गठबंधन की सराहना की। उन्होंने X पर लिखा, “AIADMK के NDA परिवार में शामिल होने से हम तमिलनाडु को प्रगति की नई ऊँचाइयों पर ले जाएँगे। हम एक ऐसी सरकार सुनिश्चित करेंगे जो MGR और जयललिता जी के सपनों को पूरा करे।”
BJP और AIADMK का यह गठबंधन तमिलनाडु की राजनीति में एक नया मोड़ लाया है। ई. पलानीस्वामी के नेतृत्व में NDA की यह साझेदारी डीएमके के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकती है, बशर्ते दोनों दल अपनी रणनीति को जमीन पर प्रभावी ढंग से लागू कर सकें। सीटों के बंटवारे और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल जैसे मुद्दों पर अभी काम करना बाकी है, लेकिन अमित शाह का यह ऐलान साफ करता है कि NDA 2026 में तमिलनाडु में पूरे दमखम के साथ उतरेगी। अब सवाल यह है कि क्या यह गठबंधन तमिलनाडु की जनता का भरोसा जीत पाएगा और डीएमके के विजय रथ को रोक पाएगा? इसका जवाब तो वक्त ही देगा।