प्रयागराज, 11 अप्रैल 2025, शुक्रवार। न्याय के मंदिर में अनुशासन और सम्मान सर्वोपरि है, लेकिन जब एक वकील ही अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाए, तो कानून का कड़ा रुख अपनाना जरूरी हो जाता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वकील अशोक पांडे को जजों के खिलाफ अभद्र और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने के लिए 6 महीने की जेल की सजा सुनाई है। इसके साथ ही 2000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। कोर्ट ने इतने पर ही नहीं रुका, बल्कि यह भी विचार करने को कहा कि क्या पांडे को तीन साल तक हाई कोर्ट में वकालत करने से रोका जाए? इस मामले की अगली सुनवाई अब 1 मई को होगी।
जजों को ‘गुंडा’ कहने की सजा
मामला चार साल पुराना है, लेकिन इसकी गूंज ने अदालती गलियारों को फिर से हिलाकर रख दिया। 18 अगस्त 2021 को जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच के सामने वकील अशोक पांडे एक मामले की सुनवाई के लिए पेश हुए। लेकिन वह उस वक्त न तो वकीलों की निर्धारित वर्दी में थे, बल्कि सिविल ड्रेस में थे, जिसमें उनके शर्ट के बटन तक खुले हुए थे। कोर्ट ने उन्हें उचित वर्दी पहनने की सलाह दी, मगर पांडे ने न केवल इसे ठुकरा दिया, बल्कि बहस शुरू कर दी।
उन्होंने ड्रेस कोड पर सवाल उठाए, अदालती कार्यवाही में बाधा डाली और हद तो तब हो गई, जब उन्होंने जजों को ‘गुंडा’ कहकर संबोधित किया। इस व्यवहार ने कोर्ट की गरिमा को गहरी चोट पहुंचाई। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस बृज राज सिंह की बेंच ने पांडे को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई।
पांडे का पुराना इतिहास भी आया सामने
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अशोक पांडे का यह पहला कदाचार नहीं है। 2003 से 2017 तक उनके खिलाफ कई बार अनुशासनहीनता और कोर्ट की अवमानना के मामले दर्ज हुए हैं। कोर्ट ने माना कि पांडे न केवल गुमराह हैं, बल्कि जानबूझकर अदालत के अधिकार को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। वह बार-बार कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हैं और न तो अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं, न ही उनमें कोई सुधार दिखता है।
10 अप्रैल के आदेश में कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पांडे ने अपने खिलाफ लगे आरोपों का जवाब तक दाखिल नहीं किया। उनकी इस ढीठता ने कोर्ट को सजा सुनाने के लिए मजबूर कर दिया।
कोर्ट की गरिमा पर सवाल नहीं
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले से यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायालय की मर्यादा के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पांडे के व्यवहार को न केवल व्यक्तिगत अपमान, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र पर हमला माना गया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कृत्य न सिर्फ अदालत की कार्यवाही को बाधित करते हैं, बल्कि कानून के प्रति आम लोगों का भरोसा भी डगमगाते हैं।
क्या है आगे की राह?
यह सजा और संभावित प्रतिबंध पांडे के करियर पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। कोर्ट ने उनकी वकालत पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा है, जिस पर अंतिम फैसला 1 मई को होगा। यह मामला न सिर्फ वकीलों के लिए एक सबक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कानून सभी के लिए बराबर है, चाहे वह कोई वकील ही क्यों न हो।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला एक मजबूत संदेश देता है कि न्याय के मंदिर में अनुशासन और सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा। यह घटना हमें याद दिलाती है कि कानून का पालन करने की जिम्मेदारी उन लोगों पर सबसे ज्यादा है, जो इसे लागू करने का दावा करते हैं।