वाराणसी, 10 अप्रैल 2025, गुरुवार। वाराणसी, जहां गंगा की लहरें और भक्ति की धुनें एक-दूसरे से गूंथी हुई हैं, वहां एक बार फिर संगीत और आस्था का अनूठा मेला सजने जा रहा है। 11 अप्रैल से शुरू होने वाला शीतला माता संगीत समारोह न सिर्फ काशी की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करेगा, बल्कि भक्तों और संगीत प्रेमियों के लिए भी एक अविस्मरणीय अनुभव लेकर आएगा। इस पांच दिवसीय समारोह की शुरुआत मशहूर भोजपुरी गायक, अभिनेता और भाजपा सांसद मनोज तिवारी के मधुर भजनों से होगी, जबकि समापन भोजपुरी संगीत के सम्राट भरत शर्मा और नंदु मिश्रा की शानदार प्रस्तुति से होगा।
श्रीयंत्र पीठम समिति के तत्वावधान में आयोजित यह समारोह दशाश्वमेध घाट पर स्थित शीतला मंदिर में होगा, जहां 108 कलाकार अपनी कला से माता को संगीतांजलि अर्पित करेंगे। मंदिर के महंत पं. शिव प्रसाद पांडेय और संयोजक कन्हैया दूबे केडी ने बताया कि 11 अप्रैल की रात 2:30 बजे होने वाली प्रसिद्ध विराट आरती के साथ इस संगीत महोत्सव की शुरुआत होगी। हर दिन माता का भव्य शृंगार होगा, जिसके बाद कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से समां बांधेंगे। पहले दिन मनोज तिवारी की भक्ति भरी आवाज गूंजेगी, जो निश्चित रूप से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देगी।
इस संगीत समारोह में दुर्गा प्रसन्ना की शहनाई, ममता टंडन का गायन, माता प्रसाद मिश्र और रविशंकर मिश्र का कथक नृत्य, गायक डॉ. विजय पूर, डॉ. अमलेश शुक्ल, अर्चना तिवारी, राजन तिवारी, शैलबाला और यथार्थ दूबे जैसे कलाकार अपनी कला का जादू बिखेरेंगे। गायन, वादन और नृत्य का यह संगम माता के चरणों में एक अनुपम भेंट होगा।
मनोज तिवारी: संघर्ष से शोहरत तक का सफर
मनोज तिवारी का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं। 1 फरवरी, 1971 को वाराणसी में जन्मे मनोज ने कठिन परिश्रम और अटूट लगन से अपनी पहचान बनाई। एक सांसद, अभिनेता और गायक के रूप में देश भर में मशहूर मनोज का यह सफर आसान नहीं था। उनकी जिंदगी का एक किस्सा उनकी मेहनत और जुनून को बयां करता है। एक बार महावीर मंदिर में जागरण के दौरान उनके सिर से खून बहने लगा, लेकिन उन्होंने गाना नहीं रोका। यह घटना 1993-94 की है, जब सावन के नागपंचमी के दिन वह प्रस्तुति दे रहे थे। खून बहता रहा, लेकिन मनोज की आवाज नहीं रुकी। उनकी इस लगन को देखकर ही उन्हें बाद में फिल्मों और भक्ति एल्बमों के ऑफर मिलने शुरू हुए।
मनोज का करियर शीतला घाट और अर्दली बाजार के महावीर मंदिर से शुरू हुआ था। 1991 में उन्हें पहली बार गंगा आरती में प्रस्तुति का मौका मिला। उस वक्त उनके पास कोई बड़ा मंच नहीं था, लेकिन 1995 तक छोटे-मोटे कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा चमकने लगी। उसी साल उनका भक्ति गीत “शीतला घाट पे काशी में का गीत बाड़ी शेर पर सवार” आया, जिसने धूम मचा दी। इस गाने ने उन्हें रातोंरात लोकप्रिय बना दिया और भक्ति एल्बमों के ऑफर की झड़ी लग गई। आज वह एक सुपरस्टार और सफल राजनेता हैं, लेकिन वह शीतला घाट को अपनी सफलता का आधार मानते हैं। यही वजह है कि वह हर साल इस महोत्सव में शिरकत करने वाराणसी जरूर आते हैं।
एक अनूठा आयोजन
यह संगीत समारोह न सिर्फ काशी की सांस्कृतिक विरासत को सहेजता है, बल्कि भक्ति और कला के माध्यम से लोगों को जोड़ता है। मनोज तिवारी की शुरुआती प्रस्तुति से लेकर भरत शर्मा और नंदु मिश्रा के समापन तक, यह आयोजन हर किसी के लिए यादगार होगा। तो तैयार हो जाइए, 11 अप्रैल से शुरू होने वाले इस भक्ति और संगीत के महाकुंभ का हिस्सा बनने के लिए। काशी की पावन धरती पर माता शीतला के चरणों में संगीत की स्वरलहरियां आपका इंतजार कर रही हैं!