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Saturday, April 19, 2025

गाय के दूध से मिली नई उम्मीद: आइबीडी के खिलाफ जंग में BHU की अनूठी पहल

वाराणसी, 9 अप्रैल 2025, बुधवार। क्या आपने कभी सोचा है कि गाय का दूध न सिर्फ पोषण का खजाना है, बल्कि गंभीर बीमारियों से लड़ने की ताकत भी दे सकता है? काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एक ऐसी क्रांतिकारी पहल शुरू हुई है, जो पेट की गंभीर बीमारी इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD) से जूझ रहे मरीजों के लिए नई उम्मीद की किरण बन रही है। यहां गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग ने देश में पहली बार गाय के दूध में पाए जाने वाले लैक्टोफेरिन को IBD के इलाज में इस्तेमाल करना शुरू किया है, और शुरुआती नतीजे बेहद उत्साहवर्धक हैं!

आइबीडी: पेट की वह आग जो पूरे शरीर को जलाती है

इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज यानी आइबीडी कोई साधारण पेट की समस्या नहीं है। यह एक ऐसी बीमारी है, जो आंतों में लंबे समय तक सूजन पैदा करती है और पाचन तंत्र को बुरी तरह प्रभावित करती है। मरीजों को पेट दर्द, दस्त, खून या म्यूकस के साथ दस्त, थकान, भूख न लगना और आंतों में छाले जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, लंबे समय तक इलाज न हो तो यह बीमारी एनीमिया, विटामिन डी और कैल्शियम की कमी, अल्सर और यहां तक कि कोलन कैंसर जैसी जानलेवा स्थिति तक ले जा सकती है।

डॉ. विनोद कुमार, BHU के गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग से जुड़े विशेषज्ञ, बताते हैं कि आइबीडी का मुख्य कारण आंतों की सूजन है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) वाले लोग इस बीमारी की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। पुरुषों में यह खतरा महिलाओं की तुलना में ज्यादा होता है। दवाएं इस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने और इसके बढ़ने से रोकने में मदद करती हैं, लेकिन असल चुनौती है शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना। यहीं पर लैक्टोफेरिन की भूमिका सामने आती है।

लैक्टोफेरिन: गाय के दूध का चमत्कारी तत्व

लैक्टोफेरिन गाय के दूध में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक ऐसा प्रोटीन है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। गाय के दूध में इसकी मात्रा भले ही कम (लगभग 0.2 मिलीग्राम प्रति लीटर) हो, लेकिन इसके प्रभाव गजब के हैं। BHU के गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग ने इस प्रोटीन को कैप्सूल के रूप में मरीजों को देना शुरू किया है। खास बात यह है कि शुद्ध और उच्च गुणवत्ता वाला लैक्टोफेरिन अमेरिका से मंगवाया गया है, जिसे विभागीय बजट के तहत तैयार करवाया गया।

विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवेश प्रकाश यादव के मुताबिक, अब तक 1500 से ज्यादा मरीजों का पंजीकरण हो चुका है, जिनमें से 30 मरीजों को लैक्टोफेरिन के परीक्षण के लिए चुना गया है। इनमें से 12 मरीजों को नियमित दवाओं के साथ-साथ लैक्टोफेरिन कैप्सूल दिए जा रहे हैं। मरीजों को तीन महीने तक लगातार यह कैप्सूल लेना है, और डॉक्टर उनकी स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। शुरुआती दो महीनों के परिणामों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है—मरीजों की इम्यूनिटी में सुधार हो रहा है और वे बीमारी से बेहतर तरीके से लड़ पा रहे हैं।

BHU का IBD क्लीनिक: मरीजों के लिए नया सहारा

BHU में IBD मरीजों के लिए खास देखभाल का इंतजाम भी है। साल 2021 से हर गुरुवार को देश का चौथा IBD क्लीनिक संचालित हो रहा है, जहां मरीजों को विशेषज्ञ चिकित्सा और परामर्श मिलता है। यह क्लीनिक न सिर्फ इलाज, बल्कि जागरूकता और शोध के क्षेत्र में भी अहम योगदान दे रहा है। लैक्टोफेरिन पर चल रहा यह शोध उसी दिशा में एक बड़ा कदम है।

एक नई शुरुआत, एक नई उम्मीद

BHU की यह पहल न केवल मेडिकल साइंस के लिए एक मील का पत्थर है, बल्कि उन लाखों मरीजों के लिए भी एक नई रोशनी है, जो IBD जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। गाय के दूध जैसे प्राकृतिक संसाधन का इस तरह उपयोग न सिर्फ हमारी परंपराओं को सम्मान देता है, बल्कि आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर चमत्कार भी रचता है। अगर यह शोध पूरी तरह सफल रहा, तो भविष्य में IBD का इलाज आसान, सस्ता और ज्यादा प्रभावी हो सकता है।

तो आइए, इस नई शुरुआत का स्वागत करें और उम्मीद करें कि जल्द ही IBD जैसी बीमारियों का डर हमारी जिंदगी से दूर हो जाएगा। BHU के इस प्रयास को सलाम, जो गाय के दूध की ताकत को दुनिया के सामने ला रहा है!

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