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Monday, August 11, 2025

वाराणसी जेल घोटाला: फर्जी रिहाई के खेल में अधीक्षक निलंबित, डिप्टी जेलर भी कार्रवाई के घेरे में

वाराणसी, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। उत्तर प्रदेश की जेल व्यवस्था में एक सनसनीखेज घोटाले ने हड़कंप मचा दिया है। वाराणसी जेल के पूर्व अधीक्षक और वर्तमान में सोनभद्र जिला जेल के अधीक्षक उमेश सिंह को शासन ने निलंबित कर दिया है। उनके साथ ही तत्कालीन डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया भी इस कार्रवाई की चपेट में आई हैं। आरोप है कि उमेश सिंह ने एक विचाराधीन कैदी को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट के आदेश के बिना रिहा कर दिया था। इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब रिहा हुआ कैदी कुछ दिनों बाद सामने आया और फर्जी रिहाई आदेश की पोल खुल गई।

फर्जीवाड़े की परतें खुलीं, जांच में पुष्टि

मामला तब और गंभीर हो गया जब जांच में यह साफ हुआ कि वाराणसी जेल में बंद हाथरस निवासी सुनील कुमार को उमेश सिंह ने फर्जी तरीके से आजाद करवाया था। इस घोटाले की भनक सबसे पहले समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के जरिए लगी। इसके बाद वाराणसी परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक (कारागार) ने गहन जांच शुरू की। जांच रिपोर्ट में उमेश सिंह प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए। रिपोर्ट में उनके खिलाफ तत्काल निलंबन और उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली-1999 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई। निलंबन के दौरान उन्हें कारागार मुख्यालय, उत्तर प्रदेश से संबद्ध किया गया है। यह आदेश कारागार प्रशासन के संयुक्त सचिव ने जारी किया।

डिप्टी जेलर भी लपेटे में

इस मामले में तत्कालीन डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, जिसके चलते उन्हें भी निलंबित कर दिया गया। इससे पहले पूर्व डिप्टी जेलर रतन प्रिया ने उमेश सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे, जिसकी जांच के बाद कारागार प्रशासन ने यह कड़ा कदम उठाया।

बेटी की गुहार: “इच्छा मृत्यु या कार्रवाई”

इस पूरे प्रकरण में एक भावनात्मक मोड़ तब आया जब निलंबन से ठीक पहले रविवार को मीना कन्नौजिया की बेटी नेहा शाह ने इच्छा मृत्यु की मांग उठाई। नेहा ने आरोप लगाया कि उनकी मां को वाराणसी जेल में उमेश सिंह लगातार प्रताड़ित करते थे। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2024 में कारागार मुख्यालय में शिकायत की गई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद मीडिया और थाने का दरवाजा खटखटाया, पर वहां भी निराशा ही हाथ लगी। आखिरकार, नेहा ने कहा, “या तो मुझे इच्छा मृत्यु दी जाए, या उमेश सिंह को निलंबित किया जाए।” उनकी यह मांग पूरी हुई और उमेश सिंह पर कार्रवाई का डंडा चल गया।

सिस्टम पर सवाल

यह घटना जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े करती है। फर्जी दस्तावेजों से कैदी की रिहाई और शिकायतों पर देरी से कार्रवाई ने व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही को कटघरे में ला दिया है। अब देखना यह है कि इस मामले में आगे क्या खुलासे होते हैं और दोषियों को सजा का रास्ता कब तक साफ होता है। फिलहाल, उमेश सिंह और मीना कन्नौजिया पर लगे आरोपों ने जेल के सलाखों के पीछे की सच्चाई को उजागर कर दिया है।

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