नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। पंजाब के बहुचर्चित मोगा सेक्स स्कैंडल में आखिरकार 18 साल बाद इंसाफ की बयार बही। मोहाली की CBI कोर्ट ने चार पुलिस अधिकारियों को सजा सुनाकर एक लंबी कानूनी लड़ाई पर विराम लगा दिया। इस मामले ने न सिर्फ पंजाब की सियासत और पुलिस महकमे को हिलाकर रख दिया था, बल्कि यह भी दिखाया कि सत्ता और भ्रष्टाचार का गठजोड़ कितना खतरनाक हो सकता है। सजा पाने वालों में तत्कालीन SSP दविंदर सिंह गरचा, पूर्व SP हेडक्वार्टर मोगा परमदीप सिंह संधू, मोगा सिटी थाने के पूर्व SHO रमन कुमार और पूर्व इंस्पेक्टर अमरजीत सिंह शामिल हैं। लेकिन इस कहानी में जितने किरदार दिखते हैं, उससे कहीं ज्यादा परतें छिपी हैं।
सजा का हिसाब-किताब
CBI कोर्ट ने 29 मार्च को चारों आरोपियों को दोषी ठहराया और सजा का ऐलान किया। SSP दविंदर सिंह गरचा और SP परमदीप सिंह संधू को 5-5 साल की कैद और 2-2 लाख रुपये का जुर्माना। SHO रमन कुमार को 8 साल की सजा, जबकि इंस्पेक्टर अमरजीत सिंह को साढ़े छह साल की जेल और ढाई लाख रुपये का जुर्माना ठोका गया। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और IPC की धारा 384 (जबरन वसूली) जैसे संगीन आरोपों में इन्हें दोषी पाया गया। वहीं, अमरजीत सिंह पर IPC की धारा 511 (अपराध का प्रयास) का अतिरिक्त इल्जाम भी साबित हुआ। हालांकि, इस मामले में अकाली नेता तोता सिंह के बेटे बरजिंदर सिंह और सुखविंदर सिंह सबूतों के अभाव में बरी हो गए।
स्कैंडल की शुरुआत: एक नाबालिग की शिकायत
साल 2007 में मोगा सिटी थाने में एक नाबालिग लड़की की शिकायत ने इस तूफान की शुरुआत की। 18 अप्रैल को मनजीत कौर नाम की महिला उसे थाने लेकर आई। लड़की ने बताया कि एक महिला उससे देह व्यापार करवाती थी और करीब 50 लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया। पुलिस ने गैंगरेप का केस दर्ज किया, लेकिन जांच के नाम पर शुरू हुआ खेल कुछ और ही था। अधिकारियों ने इस मामले को हथियार बनाकर कारोबारियों और रईसों को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। फोन कॉल्स के जरिए धमकियां दी जाने लगीं कि “लड़की तुम्हारा नाम ले रही है।” कई बेकसूर लोग इस जाल में फंस गए।
ऑडियो ने खोली पोल
मामला तब और उछला जब मोगा के भागी गांव के रंजीत सिंह ने SHO अमरजीत सिंह की एक कॉल रिकॉर्ड कर ली। ऑडियो में अमरजीत 50 हजार रुपये की उगाही करते और न देने पर रेप केस में फंसाने की धमकी देते सुनाई दिए। रंजीत ने यह सबूत लेकर एडिशनल DGP से शिकायत की। इसके बाद मामला मीडिया की सुर्खियों में छा गया। 12 नवंबर 2007 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और जांच CBI को सौंप दी।
CBI की जांच और सनसनीखेज खुलासे
दिसंबर 2007 में CBI ने जांच शुरू की और जो सामने आया, वो चौंकाने वाला था। यह एक सुनियोजित साजिश थी, जिसमें पुलिस अधिकारी, कुछ महिलाएं और वकील मिलकर कारोबारियों को फंसाते थे। झूठी FIR दर्ज कर गिरफ्तारी का डर दिखाया जाता, फिर मोटी रकम वसूलकर “क्लीनचिट” दे दी जाती। फरवरी 2008 में CBI ने गरचा और संधू को गिरफ्तार किया। जांच में दो वकील रणवीर सिंह और करमजीत सिंह का नाम भी आया, जो बाद में सरकारी गवाह बन गए। एक नाबालिग लड़की भी इस खेल का हिस्सा थी, जो व्यापारियों से मिलने के बाद उगाही का रास्ता तैयार करती थी। वह भी गवाह बनी, लेकिन बाद में मुकर गई, जिसके चलते उस पर अलग केस चल रहा है।
मनजीत कौर का दुखद अंत
इस केस की मुख्य आरोपी मनजीत कौर सरकारी गवाह बनी और 2013 में जमानत पर रिहा हुई। उसने शादी कर नई जिंदगी शुरू की, लेकिन 2018 में उसकी और उसके पति की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस वक्त वह गर्भवती थी। यह हत्या आज तक रहस्य बनी हुई है।
18 साल की लंबी लड़ाई
इस मामले में चार FIR, नौ चार्जशीट और 112 गवाह थे। 95 गवाहों की पेशी हुई, लेकिन 15 मुकर गए। गवाहों के पलटने और कानूनी दांवपेचों के चलते यह केस 18 साल तक खिंचा। अब जाकर सजा का ऐलान हुआ, लेकिन सवाल वही है—क्या यह इंसाफ पूरा है? कई किरदार आज भी छाया में हैं, और मोगा सेक्स स्कैंडल की यह कहानी सिर्फ सजा के साथ खत्म नहीं होती। यह सिस्टम की सड़ांध और सत्ता के दुरुपयोग की एक कड़वी मिसाल है।