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Sunday, July 20, 2025

मेरठ CCS यूनिवर्सिटी विवाद: RSS पर सवाल, प्रोफेसर डिबार, और भड़का बवाल

नई दिल्ली, 4 अप्रैल 2025, शुक्रवार। चौधरी चरण सिंह (CCS) यूनिवर्सिटी, मेरठ एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह कोई शैक्षिक उपलब्धि नहीं, बल्कि एक ऐसा सवाल है जिसने राजनीति और शिक्षा के गलियारों में तूफान खड़ा कर दिया। राजनीति विज्ञान के दूसरे सेमेस्टर के प्रश्नपत्र में एक सवाल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर विवाद की आग भड़का दी। सवाल था: “निम्न में से किसे परमाणु समूह नहीं माना जाता है?” विकल्पों में नक्सली समूह, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, और दल खालसा शामिल थे। इस सवाल में RSS को कट्टरपंथी और आतंकी संगठनों के साथ जोड़ने की कोशिश ने न सिर्फ छात्रों और संगठन के समर्थकों को नाराज किया, बल्कि यूनिवर्सिटी प्रशासन को भी सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।

सवाल से शुरू हुआ तूफान

यह घटना उस वक्त सामने आई जब एमए राजनीति विज्ञान के छात्रों ने 4 अप्रैल 2025 को अपनी परीक्षा दी। प्रश्नपत्र में शामिल इस सवाल ने तुरंत विवाद को जन्म दिया। RSS, जो खुद को हिंदू राष्ट्रवादी और सामाजिक संगठन के तौर पर परिभाषित करता है, उसे नक्सलियों और आतंकी संगठनों की श्रेणी में रखे जाने पर संगठन के पदाधिकारियों और समर्थकों ने कड़ा एतराज जताया। सोशल मीडिया पर यह मुद्दा आग की तरह फैला, और देखते ही देखते यह अकादमिक मसला सियासी जंग का मैदान बन गया। लोगों ने सवाल उठाया कि आखिर एक शैक्षिक संस्थान में इस तरह का सवाल कैसे तैयार किया गया, और इसके पीछे की मंशा क्या थी?

यूनिवर्सिटी का एक्शन: प्रोफेसर पर गिरी गाज

विवाद बढ़ता देख CCS यूनिवर्सिटी प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की। जांच में पाया गया कि यह प्रश्नपत्र राजनीति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. सीमा पंवार ने तैयार किया था। यूनिवर्सिटी ने बिना वक्त गंवाए डॉ. सीमा को परीक्षा और मूल्यांकन कार्यों से आजीवन डिबार कर दिया। यह सजा न सिर्फ उनके करियर पर एक बड़ा धक्का है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि ऐसी गलतियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। डॉ. सीमा पंवार, जो विभागाध्यक्ष भी हैं और मशहूर कवि हरिओम पंवार की भाभी हैं, ने इस मामले में माफी मांगी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उनकी माफी विवाद को शांत करने में नाकाम रही, और कार्रवाई तय हो गई।

RSS की नाराजगी और सियासी हलचल

RSS पदाधिकारियों ने इस सवाल को संगठन की छवि को धूमिल करने की साजिश करार दिया। उनका कहना था कि एक राष्ट्रवादी संगठन, जो समाज सेवा और संस्कृति संरक्षण के लिए जाना जाता है, उसे आतंकी समूहों के साथ जोड़ना निंदनीय है। संगठन के समर्थकों ने इसे “वामपंथी एजेंडे” का हिस्सा बताया और यूनिवर्सिटी पर सवाल उठाए। दूसरी ओर, कुछ लोगों ने इसे अकादमिक स्वतंत्रता का मामला बताते हुए कार्रवाई को अतिशयोक्ति करार दिया। इस बीच, बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच भी यह मुद्दा सियासी रंग लेने लगा। जहां बीजेपी ने इसे हिंदू भावनाओं पर हमला बताया, वहीं विपक्ष ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार दिया।

प्रोफेसर सीमा पंवार कौन हैं?

डॉ. सीमा पंवार CCS यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग में एक जाना-पहचाना नाम हैं। विभागाध्यक्ष के तौर पर उनकी भूमिका अहम रही है, लेकिन यह विवाद उनके करियर पर एक बड़ा दाग बन गया। उनके पति के भाई हरिओम पंवार हिंदी साहित्य में एक प्रतिष्ठित कवि हैं, और इस नाते उनका परिवार भी चर्चा में आ गया। हालांकि, इस घटना ने उनकी शैक्षिक विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए हैं। क्या यह सवाल उनकी निजी विचारधारा का परिणाम था, या महज एक चूक? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

अकादमिक स्वतंत्रता या गैर-जिम्मेदारी?

यह घटना एक बड़े सवाल को जन्म देती है—क्या अकादमिक संस्थानों में सवालों को तैयार करते वक्त संवेदनशीलता का ध्यान रखना चाहिए, या यह शिक्षकों की स्वतंत्रता का हिस्सा है? कुछ का मानना है कि यह सवाल छात्रों को गंभीर विश्लेषण के लिए प्रेरित करने की कोशिश थी, लेकिन इसका तरीका गलत था। वहीं, RSS समर्थकों का कहना है कि यह जानबूझकर उनकी छवि खराब करने का प्रयास था। इस बीच, छात्र भी असमंजस में हैं कि क्या यह विवाद उनकी पढ़ाई को प्रभावित करेगा।

आगे क्या?

CCS यूनिवर्सिटी ने इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाने की कोशिश की है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम अभी बाकी हैं। प्रोफेसर सीमा पंवार पर लगी आजीवन पाबंदी एक सख्त संदेश है, लेकिन क्या यह विवाद यहीं थम जाएगा? या फिर यह सियासी और सामाजिक बहस को और हवा देगा? सोशल मीडिया पर चल रही बहस और संगठन की नाराजगी से साफ है कि यह मुद्दा अभी शांत होने वाला नहीं है।

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि शिक्षा और राजनीति का मेल कितना नाजुक हो सकता है। एक सवाल ने न सिर्फ एक प्रोफेसर का करियर दांव पर लगा दिया, बल्कि एक बड़े संस्थान को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। अब सबकी नजर इस बात पर है कि इस विवाद का अंत क्या होगा—सिर्फ माफी और सजा, या कुछ और बड़ा?

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